मेडिकल शिक्षा के मामले में यूक्रेन, चीन और रूस का स्तर घटिया है.
यद्यपि यूक्रेन से लौटे हजारों मेडिकल छात्रों को भारत के मेडिकल कालेजों में जगह देना मानवीय और दयालुतापूर्ण कदम है लेकिन इससे देश में एक नया संकट उत्पन्न हो जाएगा जिसके परिणाम काफी घातक होंगे. विशेषज्ञों ने सरकारी अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे तत्काल कोई निर्णय न लेने की बजाय ‘देखो और प्रतीक्षा करो’ नीति अपनाएं. इन विशेषज्ञों का कहना है कि यूक्रेन के विश्वविद्यालयों की मेडिकल शिक्षा भारत की बराबरी नहीं कर सकती. दोनों में कोई समरूपता नहीं है.
मेडिकल शिक्षा के मामले में यूक्रेन, चीन और रूस का स्तर घटिया है. यूक्रेन से लाए गए अंडरग्रेजुएट छात्र जिस वर्ष या सीमेस्टर में पढ़ रहे थे, उसी में उनको यहां दाखिला देना एक बड़ा खतरा होगा क्योंकि ये डाक्टर भारत के सार्वजनिक अस्पतालों में काम करेंगे यह भी कहा गया कि यूक्रेन में इंटर्नशिप मिलाकर मेडिकल कोर्स साढे सात वर्ष का है जिसे वे 10 वर्षों में पूरा कर सकते है. इसे देखते हुए 3 वर्ष का समय मिलता है.
इस दौरान भारतीय विश्वविद्यालयों को जल्दबाजी करने की आवश्यकता नहीं है. ये छात्र स्थिति सुधरने तक इंतजार कर सकते हैं. एक राय यह भी है कि यूक्रेन से आए छात्र पोलैंड में पढ़ाई कर सकते है. वहां का कोर्स और फीस यूक्रेन के समान ही है. इस दौरान नेशनल मेडिकल कमीशन ने कहा कि यूक्रेन से लौटे जिन भारतीय छात्रों की डिग्री पूरी हो चुकी है, उन्हें भारत में इंटर्नशिप का मौका मिलेगा. उनके लिए इंटर्नशिप की 7.5 प्रतिशत सीटे तय की गई हैं. उन्हें किसी भी राज्य में इंटर्नशिप की फीस नहीं देनी होगी. एप्लाई करनेवाले छात्र को इंटर्नशिप पूरी करने से पहले फॉरेन मेडिकल ग्रेजुएट (एफएमजीई) स्क्रीनिंग टेस्ट पास करना होगा.