मध्यावधि चुनाव की अटकल, खुद की सरकार जाते ही पवार की टोलेबाजी

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    एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार का हताश होना स्वाभाविक है. वे जिस महाविकास आघाड़ी सरकार के शिल्पकार व संरक्षक थे, उसे बचा नहीं पाए. उद्धव ठाकरे सिर्फ नाम के सीएम थे, सरकार चलाने में मुख्य भूमिका एनसीपी की थी जिसके मंत्रियों के पास सभी महत्वपूर्ण विभाग थे. सरकार के 3 घटक दलों में सबसे ज्यादा फंड एनसीपी को मिलता था. विकास कार्य भी पुणे और बारामती में केंद्रित थे. इसलिए आघाड़ी सरकार गिरने से जितना दुख उद्धव ठाकरे को नहीं हुआ होगा, उससे ज्यादा गम शरद पवार को सता रहा होगा. 

    जिस तरह शरद पवार ने वसंतदादा पाटिल मंत्रिमंडल में रहते हुए बगावत की थी, वैसी ही बगावत एकनाथ शिंदे ने शिवसेना में कर दिखाई और सरकार बदल गई. देवेंद्र फडणवीस ने अपनी कुशल चालों से पवार जैसे अनुभवी नेता को हतप्रभ कर दिया. एकनाथ शिंदे का सीएम बन जाना पवार के लिए किसी आघात से कम नहीं है. खुद की सरकार जाते ही अब पवार की टोलेबाजी शुरू हो गई है. उन्होंने कहा कि राज्य में 5-6 महीने के भीतर मध्यावधि चुनाव की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता क्योंकि शिंदे गुट के विधायकों में मंत्रिपद को लेकर अभी से खींचतान शुरू हो गई है. 

    कुछ बागी विधायक पार्टी में वापस लौट सकते हैं. गुजरात के साथ महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव कराए जा सकते हैं. पवार ने शंका के बीज बोते हुए कहा कि बीजेपी और शिंदे गुट के विधायकों में खींचतान बहुत अधिक है, जिसकी वजह से यह सरकार बहुत अधिक दिनों तक नहीं चल सकती. लगता है कि पवार ‘कल्पना विश्व’ में खोए हुए हैं और अटकलें लगा रहे हैं. 

    जब शिंदे सरकार बीजेपी की मदद से बनी और बीजेपी ने शिंदे को सीएम बनाकर अपने लिए उपमुख्यमंत्री का दुय्यम पद रखा तो फिर खींचतान की बात कहां से आ गई? अभी तो मंत्रिमंडल गठन बाकी है. नई सरकार ने काम शुरू भी नहीं किया लेकिन अभी से पवार को मध्यावधि चुनाव का सपना दिखाई देने लगा. इस सरकार के पास कम से कम 2 वर्ष का कार्यकाल शेष है. 2024 में लोकसभा चुनाव के कुछ माह बाद महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव होंगे.