100 दिनों से ST हड़ताल, जनता हलाकान, क्या कर रही है सरकार

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    एसटी को महाराष्ट्र की लाइफ लाइन माना जाता रहा है. यह नारा हर किसी ने सुना है कि ‘जहां गांव, वहां एसटी.’ इतने पर भी एसटी कर्मचारियों की 100 दिनों से चल रही हड़ताल और सरकार द्वारा संकट को अब तक हल नहीं करने से राज्य की जनता बुरी तरह हलाकान हो रही है. मंत्री-विधायक कार में सफर करते हैं लेकिन सामान्य लोगों को कहीं भी आने-जाने के लिए एसटी बसें ही बहुत बड़ा सहारा हैं. आज हालत इतनी खराब है कि 92 प्रतिशत परिवहन बंद हैं.

    हड़ताल के इन 100 दिनों में 80 एसटी कर्मचारियों या उनके परिवारजनों ने आत्महत्या कर ली. यात्री अनाप-शनाप किराया देकर निजी ट्रैवल्स की बसों, वैन या टैक्सी में असुरक्षित और कष्टप्रद सफर करने को मजबूर हैं. इन निजी गाड़ियों में ठूंस-ठूंस कर यात्री भरे जाते हैं और गंतव्य तक न पहुंचाकर बीच में गाड़ी कहां रोक दी जाए, इसका कोई ठिकाना नहीं है. इसके विपरीत यदि एसटी की कोई बस रास्ते में बिगड़ जाती थी तो पीछे से आनेवाली दूसरी बस में इन सवारियों को ले लिया जाता था.

    पिछले लगभग साढ़े 3 महीने से एसटी बसें नहीं चलने से जनता भारी दिक्कतों से जूझ रही है. जनजीवन से जुड़ी इस ज्वलंत समस्या पर कोई गंभीरता से ध्यान ही नहीं दे रहा है. कोरोना नियंत्रण में आ जाने से राज्य के भीतर प्रवास और पर्यटन पर से बंदिश पूरी तरह हटा ली गई है. ग्रामीण क्षेत्रों में बच्चों की स्कूलें भी शुरू हो गई हैं लेकिन एसटी बसें बंद होने से यात्रियों के अलावा बच्चों को भी असुविधा हो रही है जो एक गांव से दूसरे गांव पढ़ने जाते हैं.

    एसटी महामंडल का राज्य सरकार में विलीनीकरण करने की मांग को लेकर एसटी कर्मचारियों का आंदोलन व हड़ताल लगातार जारी है. इस मुद्दे का निर्णय लेने के लिए हाईकोर्ट के मुख्य सचिव सहित 3 सदस्यों की समिति गठित की गई थी जिसे दी गई 12 सप्ताह की मुद्दत समाप्त हो गई है. इस समिति की रिपोर्ट पर मुख्यमंत्री अपनी राय हाईकोर्ट को देंगे. एसटी कर्मचारियों व जनता का ध्यान इस ओर लगा है कि समिति विलीनीकरण के मुद्दे पर क्या निर्णय लेती है.

    सरकार ने हड़ताली कर्मचारियों के खिलाफ कड़ा कदम उठाते हुए 6,156 कर्मियों को बर्खास्त कर दिया और 11,024 को निलंबित कर दिया. एसटी के 92,266 में से 27,127 हड़ताली कर्मचारी काम पर लौट आए. कर्मचारियों ने सरकार पर फूट डालने का आरोप लगाया और कहा कि ठेके के अप्रशिक्षित कर्मचारियों से बस चलवाकर जनता की जान खतरे में डाली जा रही है.