सैनिक सेवाओं में महिलाओं की भागीदारी पर न्याय हो

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एक समय ऐसा भी था जब महिलाओं को सिर्फ आर्मी मेडिकल कोर में शामिल होने का बेहद सीमित मौका मिलता था। तब वे डाक्टर या नर्स के रूप में सेना के अस्पतालों में अपनी सेवा दिया करती थीं। अब भी वक्त के साथ जितना बदलाव होना चाहिए था, नहीं हो पाया। महिलाएं देश की रक्षा के लिए सेना के तीनों अंगों में शामिल होने के लिए तत्पर हैं। उनके शौर्य, मनोबल व नेतृत्व क्षमता की कोई कमी नहीं है। यह सरासर दकियानूसी विचार है कि किसी महिला अधिकारी के नेतृत्व में सेना के जवान काम नहीं कर पाएंगे या असहज महसूस करेंगे। 

ऐसा कुछ भी नहीं है। इतिहास गवाह है कि झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, गढ़ा मंडला की रानी दुर्गावती, महाकोशल की अवंतीबाई लोधी तथा कित्तूर की रानी चेनम्मा जैसी वीरांगनाओं ने सैन्य अभियानों का कुशल नेतृत्व किया था। अभी भी महिलाओं को सिर्फ शार्ट सर्विस कमीशन के लिए आवेदन करने की अनुमति है। दिल्ली हाईकोर्ट ने कुश कालरा की याचिका के आधार पर केंद्र सरकार से सवाल किया है कि क्या भारतीय सशस्त्र बल की इंडियन मिलिट्री एकेडमी, इंडियन नेवल एकेडमी और इंडियन एयरफोर्स एकेडमी में कम्बाइंड डिफेंस एग्जामिनेशन (सीडीएस) के जरिए महिलाओं को प्रवेश मिल सकता है? इस पर 8 सप्ताह में जवाब देने को कहा गया है।

याचिका में कहा गया कि योग्य महिला उम्मीदवारों को देश के सबसे बड़े ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट्स में ट्रेनिंग लेने का मौका न देना उनके समानता के मौलिक अधिकार का हनन है। केंद्र सरकार केवल अविवाहित पुरुष उम्मीदवारों को सीडीएस परीक्षा देने और इंडियन मिलिट्री एकेडमी, इंडियन नेवल एकेडमी और एयरफोर्स एकेडमी ज्वाइन करने की अनुमति देती है। याचिकाकर्ता कालरा ने कहा कि आईएमए, आईएनए और आईएएफ के नोटिफिकेशन में महिलाओं को उनके जेंडर के आधार पर अनुचित रूप से बाहर रखा गया है।

जब रक्षा मंत्रालय ने एनडीए एग्जाम में महिलाओं को एंट्री दे दी है और प्रतिवर्ष सेना में भर्ती होने वाली महिलाओं की तादाद बढ़ रही है तो सीडीएस एग्जाम के जरिए आईएमए, आईएनए और आईएएफ में महिलाओं की भर्ती नहीं करने का कोई कारण नजर नहीं आता। दिल्ली हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ जस्टिस मनमोहन और जस्टिस मनमीत पीएस अरोड़ा ने याचिका का निपटारा करते हुए केंद्र सरकार को आदेश दिया कि वह 8 सप्ताह में कानून के तहत सेना में महिलाओं के प्रतिनिधित्व को लेकर कोई निर्णय ले।