अजीत से महंगा पड़ा दोस्ताना देवेंद्र फडणवीस को पड़ गया पछताना

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, अजीत पवार से दोस्ती कर देवेंद्र फडणवीस को पछताना पड़ा. इसलिए दोस्ती सोच-समझ कर करनी चाहिए वरना कहने की नौबत आती है- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत! जब इंसान दोस्ती में धोखा खा जाता है तो उसके दिल से आवाज उठती है- दोस्त-दोस्त ना रहा, प्यार-प्यार ना रहा, जिंदगी हमें तेरा, ऐतबार ना रहा.’’

    हमने कहा, ‘‘दोस्ती ऐसी होनी चाहिए जिसमें एक दूसरे के लिए बहुत कुछ कर गुजरने की भावना हो और व्यक्ति झूम-झूमकर गाने लगे- यारी है ईमान मेरा, यार मेरी जिंदगी. ये दोस्ती हम नहीं छोड़ेंगे, तोड़ेंगे दम मगर तेरा साथ ना छोड़ेंगे. ताराचंद बड़जात्या ने ‘दोस्ती’ नामक फिल्म बनाई थी जिसका गीत था- तेरी दोस्ती मेरा प्यार! दोस्ती पर एक अन्य गीत है- नादां की दोस्ती जी की जलन, जाने ना बालमा प्रीत की अगन. आपने बंदर और मगर की दोस्ती का किस्सा भी पढ़ा होगा.’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, व्यर्थ की बातें मत कीजिए. मित्रता की मिसाल बड़ी पुरानी है. कृष्ण-सुदामा की मैत्री अद्भुत थी. कृष्ण द्वारिकाधीश बन गए लेकिन उनका गुरुकुल का साथी सुदामा गरीब ही रहा. अपनी पत्नी सुशीला के बहुत जोर देने पर सुदामा द्वारिकापुरी गए लेकिन कुछ भी मांग नहीं पाए. नरोत्तमदास ने सुदामा चरित्र में लिखा है कि कृष्ण ने सुदामा के प्रति कैसा अपनापन दिखाया- ‘देख सुदामा की दीन दशा, करुणा करके करुणानिधि रोए, पानी परात को हाथ छुओ नहीं, नयनन के जल से पग धोए.’सुदामा जब खाली हाथ घर लौटे तो देखा कि उनकी झोपड़ी की जगह महल बन चुका है और अपार समृद्धि आ चुकी है.’’

    हमने कहा, ‘‘मित्रता सद्गुणी लोगों से करनी चाहिए. अत्यंत तेजस्वी व महादानी सूर्यपुत्र कर्ण को दुर्योधन की मैत्री ले डूबी. मित्रता निस्वार्थ होनी चाहिए. जब उसमें मतलबपरस्ती आ जाती है तो दोस्ती टूटते देर नहीं लगती. राजनीति की दोस्ती स्वार्थ की वजह से होती है जो स्थायी नहीं रहती.’’पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, राहुल गांधी से पूछिए. वे हमेशा बताते रहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी अपने ‘मित्रों’को लाभ पहुंचाने के लिए क्या-क्या कर रहे हैं. दोस्ती इसे ही कहते हैं कि किसी को अपना बना लो या खुद किसी के हो जाओ!’’