कौशल या हुनर की कमी की वजह से उच्च शिक्षित युवाओं को कम वेतन में काम करने को मजबूर होना पड़ता है. एडटेक स्टार्टअप संस्था ‘स्केलर’ के सर्वेक्षण में पाया गया कि युवाओं को उनकी शिक्षा के अनुसार सैलरी नहीं मिलती. इसकी वजह कौशल या स्किल का अभाव है. सर्वाधिक 2.2 लाख अभियंता साफ्टवेयर क्षेत्र में जाते हैं, फिर भी उन्हें केवल 3 से 5 लाख रुपए वार्षिक वेतन पर गुजारा करना पड़ता है. प्रति वर्ष डिग्री लेने वाले 15 लाख इंजीनियरों में से केवल 40,000 स्नातकों को 8 से 10 लाख रुपए का वार्षिक पैकेज मिलता है. कुल स्नातकों की तुलना में यह संख्या लगभग 3 प्रतिशत है.
उच्च पैकेज पाने वाले युवा इंजीनियर टियर-1 महाविद्यालयों के होते हैं. टियर-2 व टियर-3 महाविद्यालयों के विद्यार्थियों को अच्छा अवसर नहीं मिल पाता. नए डिग्रीधारी युवाओं की मुख्य समस्या हुनर का अभाव है. वे ऐसे नहीं हैं कि सीधे किसी उद्योग में उपयोगी हो सकें. उनका प्रैक्टिकल ज्ञान उतना नहीं होता. हालत ऐसी है कि 12.5 इंजीनियर नॉन-टेक्निकल नौकरी स्वीकार करने को मजबूर होते हैं. उन्हें जो नौकरी मिल जाती है, वही करने लग जाते हैं. उस नौकरी से उनकी पढ़ाई का कोई संबंध नहीं होता. छोटे शहरों के कालेजों से निकले स्नातकों की हालत तो और भी खराब है. इससे उन्हें हताशा घेर लेती है. इसे देखते हुए पाठ्यक्रम में समुचित बदलाव कर व्यावहारिक या प्रैक्टिकल शिक्षा पर जोर देना तथा उद्योगों की जरूरतों के मुताबिक छात्रों को तैयार करना आवश्यक है.
पाठ्यक्रम निर्धारित करते समय उद्योग जगत के शीर्ष लोगों की भी राय ली जानी चाहिए. अब ऐसा माना जा रहा है कि कोरोना महामारी के संकट के बाद रोजगार में वृद्धि होगी. कई छात्र इंजीनियरिंग पास करने के बाद एमबीए करने लगे हैं. भारतीय इंजीनियर अपना कौशल अधुनातन करने के प्रयास में हैं. आगामी समय में डेटा साइंस, कृत्रिम बुद्धिमत्ता (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस), मोबाइल डेवलपमेंट, बिजनेस टेक्नोलाजी जैसे क्षेत्रों में कुशलता महत्वपूर्ण रहेगी. इन स्थितियों में जो छात्र अपना स्किल बढ़ाएंगे, उनके लिए बेहतर अवसर सामने होंगे.