नमक हराम ड्योढ़ी - फोटो क्रेडिट: Facebook/Calcutta Karavan
नमक हराम ड्योढ़ी - फोटो क्रेडिट: Facebook/Calcutta Karavan

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नई दिल्ली: भारतीय इतिहास में मीर जाफ़र का विश्वासघात उसके नापाक मंसूबों की कहानी कहता है। मीर जाफ़र एक ऐसा व्यक्ति था जिसकी गद्दारी से भारत में भारी उथल-पुथल मच गई थी। यही कारण है कि मीर जाफ़र को इतिहास के सबसे बड़े ‘विश्वासघाती’ के रूप में याद किया जाता है। आख़िर मीर जाफ़र ने ऐसा किया ही था जिसने उसे देश का सबसे बड़ा गद्दार बना दिया. उसने किसे धोखा दिया था और उसका परिणाम क्या हुआ? अगर आप नहीं जानते तो आइए हम आपको बताते हैं भारत के सबसे बड़े गद्दार की हरकतें।नवाब की गद्दी पर थी।

नवाब की गद्दी पर थी नजर

मीर जाफ़र पहले बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला का सेनापति था, लेकिन उनका सपना तो कुछ और ही था। उनकी नजर बंगाल के नवाब की गद्दी पर थी। मीर जाफ़र दिन-रात नवाब की गद्दी पाने के सपने देखता रहता था। नवाब की गद्दी पाने के लिए वह छल-कपट से भी पीछे नहीं हट रहा था। इसी बीच ब्रिटिश अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव को मीर जाफर के सपनों की भनक लग गई और फिर उसने मीर जाफर को बंगाल का नवाब बनाने का सपना दिखाया। अपने सपने को पूरा करने के लिए मीर जाफर ने अंग्रेजों का साथ देने का फैसला किया और उसने नवाब सिराजुद्दौला से गद्दारी कर दी।

मीर जाफ़र के कारण भारत में घुसे अंग्रेज 

साल था 1757 और महीना था जून.. एक तरफ मुर्शिदाबाद से 22 मील दक्षिण में नदिया जिले में गंगा नदी के किनारे अंग्रेजी सेना खड़ी थी और दूसरी तरफ नवाब सिराजुद्दौला अपनी सेना के साथ खड़े थे। उन्हें यह भी पता नहीं था कि उनका सेनापति मीर जाफर उन्हें धोखा देकर अंग्रेजों से मिल गया है। प्लासी में दोनों सेनाओं के बीच भीषण युद्ध हुआ लेकिन मीर जाफ़र के विश्वासघात के कारण नवाब सिराजुद्दौला हार गया। उसके बाद मीर जाफ़र बंगाल का नवाब बना। इसके साथ ही अंग्रेजों ने भारत में अपना पैर पसारना शुरू कर दिया।

नमक हराम ड्योढ़ी

सन 1757 में प्लासी के युद्ध में हार के बाद सिराजुद्दौला ने सत्ता खो दी और मीर जाफ़र बंगाल का नवाब बन गया था। सिराजुद्दौला अधिक समय तक स्वतंत्र नहीं रह सका। मीर जाफ़र के सैनिकों ने सिराजुद्दौला को पटना से पकड़ लिया और मुर्शिदाबाद ले गये। मीर के बेटे मीरान ने सिराज को जान से मारने का हुक्म दिया। पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के लालबाग इलाके में बने एक हवेली थी, जिसका मालिक मीर जाफर ही था। मीर जाफर की गद्दारी के कारण ही पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद के लागबाग में बसी इस हवेली नमक हराम ड्योढ़ी के नाम से जाना जाता था। इसके बाद सिराज को 2 जुलाई 1757 को मुर्शिदाबाद के पास नमक हरम ड्योढ़ी के पास फांसी दे दी गई। सिराजुद्दौला के शव को हाथी पर बिठाकर मुर्शिदाबाद में घुमाया गया। उस दिन के बाद आज तक मीर जाफर का नाम गद्दारों की सूची में दर्ज है।