त्याग-तपस्या की निशानी, 2 साल से सैलरी नहीं ले रहे अंबानी

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, इसे कहते हैं त्याग और तपस्या की मिसाल! मुकेश अंबानी ने लगातार दूसरे वर्ष अपनी फर्म रिलायंस इंडस्ट्रीज से कोई सैलरी नहीं ली. उन्होंने पिछले वित्त वर्ष में ही कोरोना महामारी से अर्थव्यवस्था और व्यवसाय पर पड़े विपरीत प्रभाव को देखते हुए वेतन नहीं लेने का आदर्श संकल्प किया था, जिसे वे अभी तक निभा रहे हैं. उनका वेतन 15 करोड़ रुपए सालाना है. इसके पहले 2008-09 में भी उन्होंने त्याग की भावना दिखाते हुए स्वेच्छा से अपना वेतन-भत्ता 24 करोड़ रुपए वार्षिक से घटाकर 15 करोड़ कर लिया था.’’ 

    हमने कहा, ‘‘बड़े लोगों की बात बड़ी होती है. उन लोगों को अंबानी से कुछ सीखना चाहिए जो अपनी रिटायरमेंट एज तक मिलनेवाली सैलरी, इन्क्रीमेंट, प्राविडेंट फंड की रकम और ग्रेच्युटी का हिसाब या कैलकुलेशन करते रहने में समय बर्बाद करते हैं. ऐसी छोटी सोच रखने से ही इंसान तरक्की नहीं करता. पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने भी कहा था कि छोटे या तुच्छ सपने देखना पाप है. जिंदगी पैसों से नहीं, भावनाओं से जी जाती है.  अंबानी और अदानी जैसे उद्योगपतियों को देश के विकास की फिक्र है. नौकरीपेशा लोग पैसे-पैसे का हिसाब रखते हैं जबकि पीएम मोदी के मित्र 2-2 साल बगैर सैलरी लिए अपनी जिम्मेदारियां निभाते हैं.’’ 

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आपने देखा होगा कि बैंक कर्मचारी और शिक्षक अपनी संगठित ताकत के बल पर वेतन-भत्ता बढ़ाने के लिए समय-समय पर आंदोलन करते हैं. यह उनकी मिडिल क्लास मानसिकता को दर्शाता है. ऐसे लोग अंबानी के समान अपनी सैलरी छोड़ने की सोच भी नहीं सकते. नौकरीपेशा लोग मकान बनवाने की फिक्र और बेटी की शादी की चिंता में डूबे रहते हैं. 

    उन्हें 28 मंजिल ऊंची एंटीलिया बिल्डिंग में रहने वाले अंबानी जैसी ऊंची सोच रखनी चाहिए. उन्हें समझना चाहिए कि जीविका ही जीवन नहीं है. बाजार के बढ़ते मूल्यों की बजाय ऊंचे जीवनमूल्यों का चिंतन करना चाहिए. उन्हें गीता-सार पढ़ना चाहिए जिसमें लिखा है- तू अपने साथ क्या लाया था जो साथ लेकर जाएगा! महंगाई का रोना रोने वाले मध्यमवर्गीयों को समझना चाहिए कि जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान! अंबानी के त्याग का अनुसरण करें तो जिंदगी में आसानी महसूस करेंगे.’’