चुनाव हो जाएंगे बिल्कुल राम भरोसे, ऐसे-ऐसे लोग हो गए कैसे-कैसे

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पड़ोसी ने हमसे कहा, “निशानेबाज, क्या आपने तय किया है कि इस बार चुनाव में किसे वोट देंगे? प्रचार से प्रभावित होंगे या उम्मीदवार के चाल, चेहरा और चरित्र को देखकर वोट देंगे?” 

हमने कहा, “यह इतना आसान नहीं है। जहां तक चाल का सवाल है, आपने कहावत सुनी होगी- कौआ चला हंस की चाल ! फिल्म ‘गंगा जमुना’ में दिलीपकुमार को गाते दिखाया गया था- मेरे पैरों में घुंघरू बंधा दे तो फिर मेरी चाल देख ले ! इसके अलावा मान लीजिए कि कोई उम्मीदवार लंगड़ा है तो उसकी चाल अन्य प्रत्याशियों से अलग होगी। रही बात चेहरे की तो आपने गजल सुनी होगी- एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग ! देश की एक खास पार्टी कहती है कि उम्मीदवार की बजाय उसके सबसे बड़े नेता का फोटो देखो और आंख मूंदकर वोट डाल दो। जब सामने गारंटी है तो दिमाग की घंटी बजाने की क्या आवश्यकता ? आपने चरित्र का मुद्दा उठाया तो संस्कृत में पुरानी सूक्ति है- ‘त्रिया चरित्रं, पुरुषस्य भाग्यम देवो न जानाति, कुतो मनुष्यः।’ इसका अर्थ है कि स्त्री  वोट दोका चरित्र और पुरुष का भाग्य देवता भी नहीं जानते तो असली चेहरा तो चुनाव के बाद दिखता है। । । !
सामान्य मनुष्य क्या जानेगा? भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से उपजे केजरीवाल को अन्ना हजारे भी कहने लगे हैं- ‘आप तो ऐसे न थे!’ कितने ही लोग नेताओं के चरित्र में झूठ, फरेब और वादाखिलाफी देखते हैं। चमत्कार से मक्कार नेता भी चुनकर आ जाते हैं। जैसे पारे की गोली इधर से उधर छिटक जाती है वैसे ही कितने ही नेता एक पार्टी से निकलकर दूसरी पार्टी में जा रहे हैं। सिद्धांतों की बात करनेवाली पार्टी अब मिक्सचर बनती जा रही है। ” 

पड़ोसी ने कहा, “निशानेबाज, हमारे यहां शरण मांगनेवाले को आश्रय दिया जाता है, ठुकराया नहीं जाता। UMESH। रामचरित मानस के सुंदरकांड में लिखा है- शरणागत कहुं जे तजहिं, निज अनहित अनुमानि, ते नर पांवर पापमय, तिनहि बिलोकत हानि! अर्थात जो अपना हित-अनहित सोचते हुए शरण मांगनेवाले को भगा देता है, वह पापी है। इसलिए यह मत सोचिए कि भाजपा विपक्ष के भ्रष्ट नेताओं को क्यों अपने कुनबे में शामिल कर रही है। दीन- दुखियों को शरण देना पुण्य का काम है। अब आप बताइए कि चुनाव कौन जीत सकता है?”

हमने कहा, “रामलला की प्राण प्रतिष्ठा हो गई, इसलिए मानकर चलिए कि चुनाव रामभरोसे है। “