NCERT का यू-टर्न लेना व्यर्थ, पढ़ाया जाना चाहिए रामायण-महाभारत

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, रामायण और महाभारत हमारे महाकाव्य हैं जिन्हें हर देशवासी को अवश्य पढ़ना चाहिए. इन ग्रंथों से हमें जीवन के लिए उपयोगी मार्गदर्शन मिल सकता है. यदि बच्चे इन्हें नहीं पढ़ेंगे तो अपनी जड़ों से कट जाएंगे. उन्हें न राम-सीता का पता होगा, न कौरव-पांडवों की जानकारी होगी.’’

हमने कहा, ‘‘कुछ समय पहले एनसीईआरटी की 7 सदस्यीय उच्चस्तरीय समिति ने सिफारिश की थी कि सामाजिक विज्ञान की पाठ्यपुस्तकों में रामायण और महाभारत जैसे महाकाव्यों को शामिल किया जाना चाहिए. इस सिफारिश में कहा गया था कि छात्र किशोरावस्था में आत्मसम्मान, देशभक्ति और अपने राष्ट्र के प्रति गौरव का निर्माण करते हैं. प्रतिवर्ष हजारों छात्र भारत छोड़कर दूसरे देशों की नागरिकता चाहते हैं क्योंकि उनमें देशभक्ति की कमी है. इसलिए उन्हें अपनी जड़ों को समझना तथा अपने देश और संस्कृति के प्रति प्रेम विकसित करना बेहद महत्वपूर्ण है. आश्चर्य की बात है कि इतनी लंबी-चौड़ी और आदर्शवादी बातें करने के बाद अब एनसीईआरटी ने यूटर्न ले लिया है. इसका मतलब यह कि पाठ्यक्रम में रामायण-महाभारत नहीं होंगे.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज यह तो गलत बात हुई. पश्चिमी देशों और भारत की ईसाई संस्थाओं में बाइबिल पढ़ाई जाती है. जब ऐसा है तो हमारे यहां भी रामायण-महाभारत को कोर्स में रखा जाना चाहिए. मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान राम के आदर्श समूची मानवजाति के लिए प्रेरणादायी हैं. उन्होंने राजसिंहासन का मोह छोड़कर वनवास स्वीकारा. पिता के वचन का मान रखा. शबरी के जूठे बेर खाए, निषादराज को गले लगाया. ऋषि-मुनियों की सुरक्षा की. वानर भालुओं की सेना बनाकर महाशक्तिशाली रावण का अंत किया. महाभारत के शांति पर्व में गीता है, जिसमें अर्जुन का अंतर्द्वंद और श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन अद्वितीय है. महाभारत में समाज के अच्छे-बुरे पहलुओं का विवेचन और जीवन की सच्चाइयां हैं. महाभारत के आदर्श पात्रों की अपनी महत्ता है. ऐसे अनुपम ग्रंथों को सारांश में पढ़ाया जाए तो छात्र अपनी संस्कृति का महत्व समझेंगे. एनसीईआरटी को इस बारे में उचित निर्णय लेना चाहिए.’’