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चांद पर जमीन खरीदने की प्रक्रिया पूरी होने में लगभग डेढ़ वर्ष का समय लगा लेकिन डॉक्टर दंपति ने यह कर दिखाया.

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    पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, बिहार के मधुबनी जिले के झंझारपुर के डा. सुरविंदु झा और उनकी पत्नी डा. सुधा झा ने अपनी बेटी के जन्म को यादगार बनाने और बेटियों के प्रति समाज को रचनात्मक संदेश देने के लिए एक अनूठी पहल की. उन्होंने अपनी बेटी ‘आस्था’ के नाम पर चंद्रमा पर 1 एकड़ जमीन की रजिस्ट्री करवाई है. चांद पर जमीन खरीदने की प्रक्रिया पूरी होने में लगभग डेढ़ वर्ष का समय लगा लेकिन डॉक्टर दंपति ने यह कर दिखाया.’’

    हमने कहा, ‘‘इतनी खटपट करने की वजह क्या थी? यहां जमीन की कौन सी कमी है जो चांद पर जमीन खरीदी? जहां जाना नहीं, वहां जमीन खरीदकर कौन सा फायदा?’’

    पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जिंदगी फायदे-नुकसान से नहीं, भावनाओं से जी जाती है. डॉक्टर दंपति के इमोशन की कद्र कीजिए. उन्होंने चांद सी सलोनी बेटी को चांद पर जमीन भेंट की. उनकी खुशी का अंदाजा इस बात से लगाइए कि उनके खानदान में 7 पीढ़ियों से किसी बेटी का जन्म नहीं हुआ था. पहली बार कन्या रत्न का जन्म हुआ और बेटी की किलकारी गूंजी. इस वजह से सारा परिवार खुशी से झूम उठा.

    जहां तक चांद पर जमीन भेंट करने की बात है, चंद्रमा को साहित्य से लेकर फिल्मों तक महत्व दिया गया है. सूरदास ने कृष्ण भगवान की बाल लीला का वर्णन करते हुए कहा था- ‘मैया मैं तो चंद खिलौना लैहौं.’ राम ने भी बचपन में चांद मांगा था तो माता कौशल्या ने पानी की थाल में चांद का प्रतिबिम्ब दिखा दिया था. फिल्मों में चांद पर एक से एक बेहतरीन गीत हैं जैसे कि- तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, नहीं दिल का लगाना कोई दिल्लगी! चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, जो भी हो तुम खुदा की कसम लाजवाब हो!

    दम भर जो उधर मुंह फेरे ओ चंदा आ, मैं उनसे प्यार कर लूंगी, बातें हजार कर लूंगी! देखो तो चांद छुप-छुप कर करता है क्या इशारे, तुम हो गए हमारे, हम हो गए तुम्हारे! बाल गीत है- चंदा मामा दूर के, पुए पकाएं बूर के. प्रेमी भी प्रेमिका से कहता है- चलो दिलदार चलो, चांद के पार चलो.’’ पड़ोसी ने कहा, ‘‘चांद के बाद शायद मंगल पर जमीन भेंट करने की बारी आ सकती है.’