उन नेताओं का राजनीतिक संकट, जिन्हें पार्टी ने नहीं दिया टिकट

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पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, भारत के नेता और इजराइल के पीएम नेतन्याहू के बीच क्या फर्क है? क्या हमारा कोई नेता पुरानी फिल्म ‘जंगली’ के हीरो शम्मी कपूर के समान जोर से याह्यहू चिल्लाने लग जाए तो क्या वह नेतन्याहू बन जाएगा?’’ हमने कहा, ‘‘नेतन्याहू एक सख्त राजनेता हैं जो हमास के हमले का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं. हमारे नेता एक दूसरे पर शाब्दिक हमले करते हैं. जहां तक लड़ने की बात है, उन्हें चुनाव लड़ना बेहद पसंद है क्योंकि चुनाव जीतने से सत्ता की चाबी मिल जाती है. चुनाव तब लड़ा जाता है जब पार्टी का टिकट मिले. जो निर्दलीय लड़ता है वह दलदल में फंस जाता है.’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, जिन नेताओं को विधानसभा चुनाव में पार्टी ने टिकट नहीं दिया वे तो बेचारे अकेले या तन्हा रह गए. ऐसे में वे क्या करेंगे?’’

हमने कहा, ‘‘अकेलेपन से घबराने की जरूरत नहीं है. दुनिया में इंसान अकेला आता है और अकेला ही चला जाता है. आपको मालूम होना चाहिए कि कुछ कवि या शायर अपने नाम के साथ ‘तन्हा’ या ‘एकांत’ जैसा तखल्लुस या उपनाम लगा लेते हैं. उनसे कभी किसी ने नहीं पूछा कि अकेले-अकेले कहां जा रहे हो?’’

पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है. नेता तो और भी ज्यादा सामाजिक बनने का प्रयास करता है क्योंकि उसे अपना वोट बैंक संभालना पड़ता है. जब पार्टी किसी नेता की उपेक्षा करती है तो उसके कार्यकर्ता भी उससे किनारा करने लगते हैं. वे समझ जाते हैं कि ऐसी तिल किस काम की जिसमें तेल ही नहीं है. पार्टी द्वारा उपेक्षित नेता आइसोलेशन या एकांतवास में चला जाता है. वह पार्टी के लिए प्रचार भी नहीं करता और नेतृत्व से कहता है- हमसे आया ना गया, तुमसे बुलाया ना गया, फासला प्यार का दोनों से मिटाया ना गया!’’

हमने कहा, ‘‘अभी तो कुछ नहीं हुआ है. जब लोकसभा चुनाव आएगा तब देखना बीजेपी अपने कितने ही वर्तमान सांसदों के टिकट काट कर नए लोगों को उम्मीदवारी देगी. जिन्हें प्रत्याशी नहीं बनाया जाएगा, वे मन मसोसकर रह जाएंगे या बगावत करेंगे. बीजेपी के लिए कोई अनिवार्य नहीं है. वह पीएम मोदी के चेहरे पर चुनाव लड़ती है.’’