पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, आम के मौसम में चल रहे आम चुनाव में राष्ट्रहित के मुद्दों पर आम राय क्यों नहीं बन पा रही है? पक्ष कहता है आम, तो विपक्ष कहता है इमली!’’ हमने कहा, ‘‘ऐसा होना स्वाभाविक है। आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल, मनीष सिसोदिया, सत्येंद्र जैन जेल में हैं। आम जनता महंगाई और बेरोजगारी की ज्वलंत समस्याओं से जूझ रही है। आपने आम राय की बात कही तो देखिए, रायबरेली से राहुल गांधी चुनाव में खड़े हो गए। राय, सलाह या मश्वरे का बहुत महत्व है तभी तो अंग्रेजों के जमाने में रायसाहब, रायबहादुर हुआ करते थे। अपने हिंदुस्तान में राजस्थान है। राष्ट्र के भीतर महाराष्ट्र ही नहीं सौराष्ट्र भी है।’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘आम चुनाव में कितने ही उम्मीदवार हापुस, लंगड़ा, चौसा, सफेदा, दशहरी, मलीहाबादी, कलमी, बैगनपल्ली आम खा रहे होंगे। आचार संहिता लागू है तो कितनी ही गृहिणियां आम का अचार डालने की तैयारी कर रही होंगे। विपक्षी इंडिया गठबंधन भी चूं-चूं का मुरब्बा बनाने में लगा है जिसमें मोदी को ललकार रहे नेताओं की भरमार है। चुनावी भाषणों की तकरार से अखबार भरा रहता है। कहीं-कहीं प्रचार का स्तर इसलिए गिर रहा है क्योंकि नेता एक दूसरे को नश्तर चुभो रहे हैं। बीजेपी की नैया के खिवैया मोदी हैं। वे तीसरी बार पीएम बनने की अदम्य इच्छा रखते हैं। चुनावी शोर में मोदी का मन कहता है- ये दिल मांगे मोर! इस बार राहुल ने अमेठी से चुनाव लड़ने का जोखिम नहीं उठाया तो मोदी ने उन्हें ‘भगोड़ा’ कह दिया।’’
हमने कहा, ‘‘कुछ तो लोग कहेंगे, लोगों का काम है कहना, छोड़ो बेकार की बातें, कहीं बीत ना जाए रैना! राहुल ने अमेठी छोड़कर अच्छा किया। वहां स्मृति ईरानी अपने नूरानी चेहरे के साथ चमक रही हैं। रही बात पुराना चुनाव क्षेत्र छोड़ने की तो भगवान कृष्ण ने भी तो बार-बार जरासंघ के आक्रमण से हो रही जनहानि को देखकर मथुरा छोड़ दी थी और सारी प्रजा को लेकर द्वारका रहने चले गए थे। चुनावी शतरंज का ग्रैंडमास्टर बनने के लिए हर चाल शातिर तरीके से चलनी पड़ती है।’’