पड़ोसी ने हमसे कहा, ‘‘निशानेबाज, राहुल गांधी ने भारत जोड़ो यात्रा निकाली, अब उनकी बड़ी बहन प्रियंका महिला जोड़ो यात्रा निकालने की तैयारी में हैं. इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है?’’ हमने कहा, ‘‘महिलाओं को जोड़ने की क्या जरूरत है? वो तो पहले ही रिश्ते-नातों से जुड़ी रहती हैं जैसे कि सास-बहू, देवरानी-जेठानी, ननद-भाभी, मामी, चाची, मौसी, बुआ, नानी, दादी. सास के रूप में भी उनके कई प्रकार होते हैं जैसे ममिया सास, काकी सास, बुआ सास. कहीं-कहीं बड़ी साली को अक्कड़ सास भी कहते हैं. इसके अलावा महिलाएं उलझे हुए दूर के रिश्ते बताने में भी प्रवीण होती हैं जिन्हे पुरुष जल्दी समझ नहीं पाते. इसका अनुभव आपको जरूर आया होगा कि महिलाएं कैसे ढूंढ़ कर दूर की रिश्तेदारी निकाल लेती हैं. इस मामले में वे कंप्यूटर से बी तेज होती हैं.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, आप प्रियंका गांधी वाड्रा का उद्देश्य ही नहीं समझे. वो महिलाओं को एक साथ लाकर कांग्रेस से जोड़ना चाहती हैं. उन्होंने यूपी विधानसभा के पिछले चुनाव में ‘लड़की हूं लड़ सकती हूं’ का नारा देकर इसकी भूमिका बनाई थी.’’ हमने कहा, ‘‘महिलाओं का लड़ना कोई नई बात नहीं है. झांसी की रानी लक्ष्मीबाई, गढ़ा मंडला की रानी दुर्गावती, छत्तीसगढ़ की अवंतीबाई लोधी, दक्षिण भारत में कित्तूर की रानी चेनम्मा महान योद्धा थीं. आपने सुभद्रा कुमारी चौहान की कविता पढ़ी होगी- बुंदेले-हरबोलों से हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसीवाली रानी थी. आपको मालूम होना चाहिए कि संयुक्त परिवारों में महिलाएं आपस में बात-बात में झगड़ती हैं. गरीब बस्तियों में सार्वजनिक नल पर पहले पानी भरने को लेकर महिलाएं लड़ने लगती हैं.’’
पड़ोसी ने कहा, ‘‘निशानेबाज, ‘‘बात लड़ने की नहीं, बल्कि प्रियंका की महिला जोड़ो यात्रा की हो रही है. वे तमाम महिलाओं से कहेंगी कि फेविकाल के जोड़ के समान जुड़ जाओ. आप को मालूम होगा कि संघ परिवार ने राष्ट्रसेविका समिति और दुर्गावाहिनी के जरिए महिलाओं को जोड़ रखा है. कितनी ही महिलाएं किटी पार्टी से आपस में जुड़ी रहती हैं.’’ हमने कहा, ‘‘यदि मनोविज्ञान की बात करें तो अधिकांश महिलाएं एक-दूसरे से ईष्र्या करती हैं दो महिलाएं साथ बैठकर तीसरी की बुराई करती हैं. फिर उन्हें कैसे जोड़ा जा सकता है, यह प्रियंका को सोचना होगा.’’