छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव : राजनीतिक दल आदिवासी मतों को साधने की कोशिश में

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रायपुर: छत्तीसगढ़ में विधानसभा चुनाव होने हैं और सरकार बनाने में आदिवासी मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए राज्य के राजनीतिक दलों ने आदिवासी मतदाताओं को अपने पक्ष में करने की कोशिश शुरू कर दी है।    छत्तीसगढ़ में माना जाता है कि लगभग 32 फीसदी जनसंख्या वाले आदिवासी समुदाय के आशीर्वाद के बगैर राज्य में सरकार बनाना मुश्किल है।

राज्य में अब तक हुए विधानसभा चुनाव में जिस भी दल को आदिवासियों का साथ मिला है उसे सत्ता मिली है। 2018 के चुनाव में आदिवासी सीटों पर हार का सामना करने वाली भाजपा इस बार के चुनाव में आदिवासियों का समर्थन पाने की कोशिश में है।    चुनाव विशेषज्ञों के मुताबिक, आदिवासी क्षेत्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी प्रमुख जेपी नड्डा की हालिया रैलियां और आदिवासी इलाकों से पार्टी की दो परिवर्तन यात्राओं की शुरूआत को आदिवासियों को लुभाने के लिए भाजपा के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है।   

90 सदस्यीय छत्तीसगढ़ विधानसभा में 29 सीटें अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं।    वर्ष 2018 के चुनाव में कांग्रेस ने आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित सीटों में से 25 सीटें जीती थीं और सरकार बनाई थी। पार्टी को उम्मीद है कि सरकार की योजनाओं के कारण उसे एक बार फिर आदिवासियों का समर्थन हासिल होगा।   

चुनाव विश्लेषक आर कृष्णा दास कहते हैं, ”आदिवासी मतदाता राज्य में सरकार बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। वर्ष 2000 में राज्य बनने के बाद 2003 में छत्तीसगढ़ में हुए पहले चुनाव में भाजपा उन आदिवासियों के बीच गहरी पैठ बनाने में कामयाब रही जो कभी कांग्रेस के कट्टर समर्थक माने जाते थे। लेकिन अगले चुनावों में भाजपा उन पर पकड़ खोती गई।”   

दास ने कहा, ”सत्ता विरोधी लहर के अलावा, भाजपा के शीर्ष आदिवासी नेताओं और उनके क्षेत्र के स्थानीय पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच समन्वय की कमी तथा लंबे समय से चले आ रहे वामपंथी उग्रवाद के कारण पार्टी को आदिवासी क्षेत्र में परेशानी का सामना करना पड़ा।”   

राज्य में वर्ष 2003 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान 90 सदस्यीय सदन में 34 सीटें अनुसूचित जनजाति (एसटी) वर्ग के लिए आरक्षित थीं। भाजपा ने तत्कालीन मुख्यमंत्री अजीत जोगी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को हराकर इनमें से 25 सीटें जीती थी। भाजपा को तब 50 सीटें मिली थी। वहीं कांग्रेस को नौ आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी।    राज्य में परिसीमन के बाद आदिवासी सीटों की संख्या 29 हो गई। 2008 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 29 में से 19 सीटें जीती और एक बार फिर 50 सीटें जीतकर सरकार बनाई। इस चुनाव में कांग्रेस को 10 आदिवासी सीटों पर जीत मिली थी।     

बाद में 2013 के विधानसभा चुनाव में आदिवासी वोट कांग्रेस के पाले में चले गए और कांग्रेस को 29 आदिवासी सीटों में से 18 पर जीत मिली। हालांकि इसके बाद भी कांग्रेस सरकार नहीं बना सकी। कांग्रेस की संख्या 39 तक ही सीमित रहीं और भाजपा ने 11 आदिवासी सीटें जीतकर 49 विधायकों के साथ तीसरी बार सरकार बनाई।    2018 में कांग्रेस ने रमन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के 15 साल के शासन को समाप्त करते हुए 90 सदस्यीय विधानसभा में 68 सीटें जीतकर शानदार जीत दर्ज की। भाजपा को 15 सीटें, जेसीसी (जे) और बसपा को क्रमशः पांच और दो सीटें मिलीं।     

2018 में 29 अजजा सीटों में से कांग्रेस ने 25, भाजपा ने तीन और जेसीसी (जे) ने एक सीट जीतीं। बाद में कांग्रेस ने उपचुनावों में दो और अजजा आरक्षित सीट-दंतेवाड़ा और मरवाही जीत ली।    दास ने कहा कि राज्य में सत्ता में वापस आने के लिए भाजपा आदिवासी सीटों पर ध्यान केंद्रित कर रही है और इस बार अपने पुराने नेताओं को मैदान में उतारा है।     

भाजपा ने अब तक 86 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें सभी 29 एसटी सीटें भी शामिल हैं। राज्य के छह पूर्व मंत्री भाजपा के प्रमुख उम्मीदवारों में से हैं जिनमें एक मौजूदा विधायक, दो वर्तमान लोकसभा सांसद- जिनमें एक केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व केंद्रीय मंत्री, तीन पूर्व विधायक, एक पूर्व आईएएस अधिकारी हैं जो हाल ही में अपनी सेवा छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं।     

छत्तीसगढ़ में जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहा है भाजपा के स्टार प्रचारकों ने राज्य के आदिवासी बहुल इलाकों का दौरा करना शुरू कर दिया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने इस महीने बस्तर क्षेत्र में पार्टी की रैलियों को संबोधित किया। (एजेंसी)