BABY-BUMP
Pic: Twitter/ Social Media

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नई दिल्ली. गुजरात (Gujarat) से मिल रहे एक खबर के अनुसार, अब गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat HC) ने एक नाबालिग रेप पीड़ित को एबॉर्शन की परमीशन देने से मना कर दिया। मामले पर कोर्ट ने कहा कि, लड़कियों के लिए कम उम्र में शादी करना और 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म देना सामान्य बात थी। इसका जिक्र मनुस्मृति में भी है।

दरअसल मामले पर जस्टिस समीर दवे ने बीते बुधवार को सुनवाई के दौरान कहा कि यदि लड़की और भ्रूण दोनों स्वस्थ हैं तो वह एबॉर्शन कराने वाली याचिका की अनुमति नहीं दे सकते हैं।

मिली जानकारी के अनुसार इस केस में रेप विक्टिम 16 साल 11 महीने की है और उसके गर्भ में सात महीने का बच्चा है। लड़की के पिता ने एबॉर्शन की परमीशन के लिए हाईकोर्ट का रुख किया था, क्योंकि 24 सप्ताह की प्रेग्नेंसी के बाद एबॉर्शन सिर्फ कोर्ट की परमीशन के बाद ही किया जा सकता है।

वहीं बुधवार को जब पीड़िता के वकील ने मामले की जल्द सुनवाई की अपील की और कहा कि लड़की की आयु के कारण परिवार चिंचित है। न्यायमूर्ति दवे ने कहा कि चिंता इसलिए है, क्योंकि “हम 21वीं सदी में जी रहे हैं।” उन्होंने पीड़िता से कहा, “अपनी मां या दादी से पूछिए। (शादी के लिए) अधिकतम आयु 14-15 होती थी और लड़कियां 17 साल की उम्र से पहले बच्चे को जन्म दे दिया करती थीं। यही नहीं, लड़कियां लड़कों से पहले परिपक्व हो जाती हैं… आपने भले ही नहीं पढ़ी होगी, लेकिन आप एक बार मनुस्मृति पढ़िए।”  

इसके साथ ही जस्टिस समीर दवे  ने वकील से कहा कि चूंकि, प्रसव की संभावित तिथि 16 अगस्त है, इसलिए उन्होंने अपने कक्ष में विशेषज्ञ चिकित्सकों से सलाह-मशविरा किया है। उन्होंने कहा, “अगर भ्रूण या लड़की के किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की बात सामने आती है, तभी यह अदालत (गर्भपात की अनुमति) पर विचार कर सकती है। लेकिन अगर दोनों स्वस्थ हैं, तो अदालत के लिए इस तरह का आदेश पारित करना मुश्किल होगा।”

वहीं जस्टिस समीर की कोर्ट ने राजकोट सिविल अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक को डॉक्टरों के एक पैनल द्वारा लड़की की जांच कराने का निर्देश दिया, ताकि यह पता लगाया जा सके कि गर्भ में पल रहा बच्चा पूरी तरह स्वस्थ है कि नहीं। वहीं जस्टिस दवे ने लड़की की मनोचिकित्सक जांच का भी आदेश दिया। साथ ही अस्पताल को सुनवाई की अगली तारीख 15 जून तक रिपोर्ट जमा करने को भी कहा गया है।