Rabi Crop sowing

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अमरावती. रबी सीजन की तैयारी शुरू हो गई है. इसमें किसान गेहूं और चना की बुआई अधिक करते हैं. इसके अलावा किसानों ने सूरजमुखी, अलसी, तिल और ज्वार की फसलों से मुंह फेर लिया है. कृषि विभाग की उदासीनता के अलावा किसानों में जागरूकता की कमी के कारण इस दशक में तिलहन क्षेत्र अप्रचलित होता जा रहा है. इस साल नवंबर के अंत तक पश्चिम विदर्भ में केवल 36 फीसदी क्षेत्र में ही बुआई हुई है.

बुआई में तेजी आने की उम्मीद

बेमौसम बारिश से मिट्टी की नमी के आधार पर बुआई में तेजी आने की उम्मीद है. रबी सीजन का औसत क्षेत्रफल 7 लाख 46 हजार 396 हेक्टेयर है. वर्तमान में 2 लाख 67 हजार 510 हेक्टेयर में बुआई हो चुकी है. यह प्रतिशत 36 है. चने की खेती का औसत क्षेत्रफल 5 लाख 27 हजार 388 हेक्टेयर की तुलना में इस वर्ष अब तक 2 लाख 24 हजार 848 हेक्टेयर में चना बुआई हुई है, जबकि गेहूं का औसत क्षेत्रफल 1 लाख 83 हजार 427 हेक्टेयर है और इसके मुकाबले अभी तक सिर्फ 38 हजार 295 हेक्टेयर यानी सिर्फ 21 फीसदी क्षेत्र में ही बुआई हो पाई है.

तिलहन की खेती का क्षेत्रफल बहुत कम है. कृषि विभाग ने बताया कि तिलहन क्षेत्र अनेक कारणों से गिर रहा है. सिंचाई के लिए अधिक पानी की आवश्यकता, श्रमिकों की कमी, कीटों और बीमारियों का प्रकोप, मौसम के दौरान कीमतों में गिरावट, बड़े पैमाने पर कमी के कारण पक्षियों का उपद्रव बुआई, उत्पादन की ऊंची लागत, खराब मौसम के कारण नुकसान अनेक कारणों से तिलहन की खेती की ओर किसान मुंह फेर रहे हैं. वर्तमान में विभाग में 725 हेक्टेयर में ज्वार की बुआई की गई है. इसके अलावा क्षेत्र में 42 हेक्टेयर अलसी और 76 हेक्टेयर तिल की बुआई की गयी है. खरीफ सीजन में भी सोयाबीन को छोड़कर अन्य तिलहन का क्षेत्र भी कम हुआ है.

चने पर मर रोग का प्रकोप

इस वर्ष भी संभाग का अधिकांश क्षेत्र चने से ढका हुआ है. यवतमाल जिले में सर्वाधिक क्षेत्रफल चने का है तथा 72 प्रतिशत चने की बुआई हो चुकी है. उससे नीचे वाशिम में 60 प्रतिशत, अमरावती में 45 प्रतिशत, अकोला में 36 प्रतिशत और बुलढाना जिले में यही अनुपात 15 प्रतिशत है. क्षेत्र में गेहूं की बुआई जनवरी तक जारी रहने के कारण बुआई क्षेत्र बढ़ने की उम्मीद है.  कुछ स्थानों पर चने की फसल पर मर रोग का प्रकोप पाया जा रहा है.