मुआवजे के लिए फिर विस्फोटक स्थिति; समस्या, पुनर्वसित 50 ग्रामवासी डोलार लौटे

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    अमरावती. मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प में आने वाले गांवों का पुनर्वास आदिवासियों के लिए जी का जंजाल बन गया है. वर्ष 2019, जनवरी में मेलघाट के कोर एरिया में घुस आने से जिस तरह 8 पुनर्वसित गांवों के 500 से 600 आदिवासियों के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया था. ठीक उसी तरह की विस्फोटक स्थिति फिर उत्पन्न होने का डर है. क्योंकि डोलारा के 50 से अधिक ग्रामवासी मुआवजे की मांग को लेकर फिर उजड़ चुके गांव (डोलारा) में गुरुवार की शाम लौट आए है.

    यह गांव 4 वर्ष पूर्व मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प ने पूरी तरह खाली करवाकर ग्रामवासियों का पथ्रोट के पास पुनर्वास कराया था. फारेस्ट के खिलाफ फिर भड़का यह असंतोष आगे जिला प्रशासन के लिए पिछली बार की तरह अत्यंत क्लेषदायी साबित हो सकता है.   

    मुआवजा मिलने तक हटने तैयार नहीं 

    जानकारी के अनुसार चिखलदरा तहसील के डोलार गांव का पुनर्वास अचलपुर तहसील के पथ्रोट निकट वागाडोह में पुनर्वास किया गया, लेकिन इन पुनर्वसित ग्रामवासियों ने अपने मूल गांव डोलार में मकान व खेतों का मुआवजा नहीं मिलने से लंबी प्रतीक्षा के बाद प्रशासन से थक-हारकर जंगल में डेरा आंदोलन शुरू कर दिया है. 50 से अधिक आदिवासी पूरी तैयारी से डोलार गांव लौट आने से मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प प्रशासन में फिर हड़कंप मच गया है.

    यह ग्रामवासी मुआवजा मिलने तक गांव से हटने तैयार नहीं है. अब यदि गांव में बाघ या कोई जंगली जानवर इन ग्रामवासियों पर हमला कर देता है तो कौन जिम्मेदार रहेगा. यह प्रश्न खड़ा हो गया है. जिससे फिर एक बार फारेस्ट के इस तूल पकड़ते मामले में ग्रामीण पुलिस की मदद ली जा सकती है. 

     करना पड़ा था लाठीचार्ज 

    उल्लेखनीय है कि जनवरी 2019 में सोमठाणा, केलपाणी, धारगड़ समेत 8 से अधिक पुनर्वसित गांवों के 500 से 600 आदिवासियों ने अपने उजड़ चुके गांवों में डेरा डाल दिया था. जिसके बाद 25 दिनों तक जबरदस्त तनाव के बीच प्रशासन के साथ संघर्ष चला. जिसमें पुलिस को लाठीजार्च तक करना पड़ा था. रात में कड़ाके की ठंड में जंगल में डेरा डाले बैठे कई आदिवासियों की सुरक्षा के लिए पुलिस को जबरदस्त टेंशन उठानी पड़ी थी. अब यही स्थिति बनती नजर आ रही है. उस समय विधायक राजकुमार पटेल में तत्कालीन सीएम देवेंद्र फडणवीस के साथ मुंबई मंत्रालय में मीटिंग कर पुनर्वसित आदिवासियों को तत्काल मुआवजा देने दबाव बनाया था. उसके बाद सत्ता परिवर्तन हो गया और मुआवजा का मामला भी ठंडे बस्ते में पड़ गया.    

     

    4 वर्षों बाद कैसे करें मूल्यांकन 

    मजे की बात है कि कार्यकारी अभियंता ने धारणी के उपअभियंता कुणाल पिंजरकर को फोन किया कि फारेस्ट का दबाव होने से पुराने डोलार में जाओ और वहां कितने मकान है, उसका मूल्यांकन करो. आदेश के अनुसार पुराने डोलार गांव पहुंचे उपअभियंता ने खाली जंगल जैसे क्षेत्र का फोटो निकालकर लौट गये. उन्होंने वरिष्ठों को बताया कि जहां पुराना डोलार गांव था, आज वहां एक भी मकान साबूत नहीं बचा है. जिससे मूल्यांकन कैसे करें? उल्लेखनीय है कि पुनर्वास को 4 वर्ष हो गया है. पुनर्वास के दौरान यह मूल्यांकन क्यों नहीं किया गया, यह प्रश्न उठाये जा रहे है. 

     

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    4-5 गांव के आदिवासी भी तैयारी में

    सूत्रों के अनुसार सोमठाणा, हरुखेड़ा, धारगड़ व केलपानी के ग्रामवासी भी दुबारा जंगल घुसने की तैयारी कर रहे है. शासन को पत्र व्यवहार कर थक गया. घर व खेती का मुआवजा अब तक नहीं मिला. उनका कहना है कि नया पुनर्वास करने फारेस्ट के पास 10 लाख रुपए है और हमारे खेती व मकान का मुआवजा देने शासन के पैसे क्यों नहीं है. 

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    कई गांवों में आधा पुनर्वास

    मेलघाट के दर्जनों गांव है, जिनका आधा अधूरा पुनर्वास हो पाया है. जिसमें मांग्या, रौरा, चौपन, मारुड जैसे गांवों का प्रमुख गांवों का समावेश हैं. धारणी व चिखलदरा तहसील के इन आधे अधूरे पुनर्वास से ना तो मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प का लक्ष्य पूरा हो रहा है और ना ही शासन का उद्देश्य पूर्ण हो पा रहा है. वर्षों से मामला अधर में लटका है. बार-बार आदिवासियों व प्रशासन के बीच संघर्ष की स्थिति निर्माण होना अत्यंत चिंताजनक है.  

     

     

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    मुआवजा दिलाने वर्षों से प्रयास 

    सोमवार को ही मेलघाट व्याघ्र प्रकल्प के अलावा जिलाधीश को निवेदन देकर डोलार समेत पुनर्वास में मुआवजे से वंचित आदिवासियों की व्यथा सुनाई थी. यह भी चिंता जताई थी कि यदि मुआवजा जल्द नहीं मिला तो यह पुनर्वसित ग्रामवासी वापस अपने मूल गांव लौट सकते है. शासन-प्रशासन से मैं लगातार पत्र-व्यवहार कर चुका हूं. अब ना तो आदिवासियों को जंगल से बाहर निकलने मनाने जाऊंगा और ना ही प्रशासन से बार-बार एक ही विषय पर बिनंती करता रहूंगा. 

    -राजकुमार पटेल, एमएलए 

    फोटो- 4 राजकुमार पटेल