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    औरंगाबाद : राज्य की तत्कालीन फडणवीस सरकार (Fadnavis Government) द्वारा औरंगाबाद म्हाडा (Aurangabad MHADA) के चैयरमैन (Chairman) पद पर बीजेपी नेता संजय केणेकर (Sanjay Kenekar) की अंशकालिक नियुक्ति की गई थी। राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद ठाकरे सरकार ने एक अधिसूचना जारी कर उन्हें उक्त पद से हटाया था। इसके खिलाफ संजय केेणेकर ने मुंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद खंडपीठ में याचिका दायर की  थी। इस मामले पर अंतिम सुनवाई शुक्रवार को न्यायमूर्ति एसवी गंगापुरवाला और न्यायमूर्ति एसजी डिंगे के  सामने हुई। न्यायालय ने  केणेकर के अंशकालिक चेयरमैन पद को बरकरार रखा है। जिसके चलते केणेकर दूबारा म्हाडा के चैयरमैन का पदभार संभालेंगे।

    गौरतलब है कि राज्य सरकार ने 31 जनवरी 2020 को एक अधिसूचना जारी कर औरंगाबाद म्हाडा के चैयरमैन पद से संजय केणेकर को हटाया था। सरकार के इस निर्णय के खिलाफ केणेकर ने एड. अतुल कराड के माध्यम से हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया। एड. कराड ने हाईकोर्ट को बताया कि राज्य सरकार ने केणेकार की म्हाडा कानून के अनुसार नियुक्ति की थी। इस कानून की धारा 7 के अनुसार चेयरमैन पद का कार्यकाल तीन साल का होता है, या फिर सरकार के मर्जी तब तक रहता है। इसी कानून की धारा 12/2 नुसार सरकार को नियुक्ति रद्द करने के अधिकार है। लेकिन, नियुक्ति रद्द करने के लिए एक सम्मोहर कारण होना चाहिए था। कोई कारण न दिखाते हुए राज्य सरकार ने केणेकर की नियुक्ति रद्द की थी।

    विशेषकर, नियुक्ति के रद्द करते समय सरकार ने केणेकर को अपना पक्ष रखने का मौका न देेते हुए नैसर्गिक न्याय सिध्दांत का उल्लघंन किया। जनहितार्थ पद से कम करते समय सहीं कारण देना जरुरी था। वरना, केणेकर के भविष्य पर उसका विपरित परिणाम हो सकता। यह मुद्दे एड. कराड ने न्यायालय के सामने रखे थे। सारी स्थिति को जानने के बाद हाईकोर्ट ने साफ कहा कि केणेकर की नियुक्ति रद्द करते समय कोई कारण नहीं दिखाया गया। सही कारण दिखाए बिना इस तरह सरकार मनमानी तरीके से किसी को पद से नहीं हटा सकती। जनहितार्थ पद से किसी को हटाते समय उसका कारण  देना जरुरी है। यह निरीक्षण होईकोर्ट ने जताया। पैरवी में एड. कराड को एड. गिरीश कुलकर्णी और एड. गणेश केदार ने सहकार्य किया।