मुंबई: लोकसभा चुनाव के तारीखों का एलान हो गया है। इस बार के चुनाव में जहां बीजेपी 400 के जादुई आंकड़े को हासिल करने की जुगत में है। वहीं दूसरी तरफ विरोधी दल एक साथ होकर बीजेपी की रफ्तार को रोकने की भरपूर कोशिश कर रहे हैं। अगर महाराष्ट्र की बात करें तो इस बार के लोकसभा चुनाव की लड़ाई यहां बेहद दिलचस्प होने वाली है। एनसीपी-शिवसेना-बीजेपी अन्य दलों के साथ हैं, तो वहीं शरद पवार और उद्धव ठाकरे कांग्रेस के साथ मिलकर दूसरी तरफ खड़े हैं। इस बार के चुनाव में कई ऐसी सीटें है जिसपर सभी नजरें रहेंगी। इन्हीं सीटों में से एक है बारामती लोकसभा (Baramati Lok Sabha) सीट। देश की गिनी चुनी हाई प्रोफाइल सीटों में से एक बारामती है।
बारामती सीट का इतिहास
बारामती महाराष्ट्र का महत्वपूर्ण लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र है। भारत के लिए हुए पहले लोकसभा निर्वाचन के दौरान यह सीट नहीं थी। लेकिन साल 1957 में दूसरे संसदीय चुनाव के दौरान बारामती को लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र बनाया गया। इस सीट पर कांग्रेस के केशवराव जेधे ने चुनाव जीता था। उसके बाद साल 1960-67 में इस बार कांग्रेस का परचम गुलाबराव जेधे ने लहराया और सांसद बने। 1971 में भी इस सीट पर कांग्रेस को जीत मिली, लेकिन 1977 में गेम बदल गया और जनता पार्टी के संभाजीराव काकड़े ने कांग्रेस को हरा दिया। उसके बाद साल 1980 में कांग्रेस ने फिर से जीत हासिल की और जनता ने शंकरराव बाजीराव पाटिल सांसद चुना। बारामती क्षेत्र पुणे जिले का हिस्सा है। इसमें वर्तमान में 6 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। जिनमे दौंड, इंदापुर, बारामती, पुरंदर, भोर और खड़कवासला हैं। बारामती सीट पर साल 2019 चुनाव में 21,14,716 वोटर थे।
बारामती सीट है पवार का पॉवर
शरद पवार ने बारामती लोकसभा सीट से 1984 में भारतीय कांग्रेस (समाजवाद) पार्टी से चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। लेकिन महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें सीट छोड़ना पड़ा। जिसके बाद 1985 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ और जनता पार्टी के संभाजीराव काकड़े ने जीत हासिल की। उसके बाद कांग्रेस से शंकरराव पाटील 1989 में जीतकर आये और वहीं साल 1991 में अजीत पवार सांसद बने। उसके बाद से अब तक इस सीट पर पवार परिवार का कब्जा रहा है। बता दें कि शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले इस सीट से 2014 और 2019 में चुनाव लड़ी और जीत दर्ज की। सुप्रिया सुले वर्तमान में वही इस सीट सांसद हैं।
विवाद से बिगड़ सकता खेला
अजित पवार पिछले साल जुलाई में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी से अधिकतर विधायकों के साथ अलग हो गए थे और उन्होंने महाराष्ट्र में मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली बीजेपी-शिवसेना सरकार का समर्थन किया था। उसके बाद शरद पवार और अजित पवार के रिश्तों में खटास आ गई। पार्टी का चिन्ह पाने के लिए अजित पवार गुट ने आठ अन्य विधायकों के शिंदे सरकार में मंत्री पद की शपथ लेने से दो दिन पहले उन्होंने निर्वाचन आयोग में याचिका दायर की थी। चुनाव निकाय ने 140 पेज के आदेश में कहा कि इस आयोग का मानना है कि अजित पवार के नेतृत्व वाला गुट राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) है और वह उसका नाम तथा चुनाव चिन्ह घड़ी का उपयोग करने का हकदार है।
पवार बनाम पवार हुआ मुकबला
शरद पवार ने लोकसभा चुनावों को लेकर अपना पहला दांव चल दिया है। उन्होंने बारामती लोकसभा सीट से अपनी बेटी और मौजूदा सांसद सुप्रिया सुले को एक बार फिर से मैदान में उतारा है। वहीं अब सियासी खुसफुसाहट यह कह रही है कि अजित पवार अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को सुप्रिया के खिलाफ चुनावी मैदान में उतार सकते हैं। ऐसे में काफी समय से बारामती सीट को लेकर ये बात चल रही है कि इस सीट से ननद भाभी के बीच मुकबला देखने को मिलेगा। नतीजा चाहे जो भी हो लेकिन चुनावी रण में दंगल दिलचस्प होगा और इसी पर सबकी नज़र टिकी हुई है। ऐसे में ये कहा जा सकता है कि जिस सीट को पवार का पावर माना जाता था अब वहीं मुकाबला पवार बनाम पवार हो गया है। चुनाव के नतीजे में एक की हार भी तय है जिसकी जीत होगी बारामती का किंग वही माना जाएगा।