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(प्रतीकात्मक तस्वीर)

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    • बैंक मैनेजर सहीत चार आरोपी गिरफ्तार
    • 23 तक पीसीआर

    साकोली. कर्ज लेने बैंक पहुंचने वाले किसानों तथा ग्राहकों को कर्ज देकर उनके कोरे विड्रोल फॉर्म पर हस्ताक्षर लेकर बैंक मैनेजर द्वारा कर्ज दाताओं के खाते से अपने एवं सहयोगी के खाते में रुपए ट्रांसफर कर लाखों रुपए का गबन किया गया. 

    बैंक ऑफ महाराष्ट्र के सेदुरवाफा शाखा में वर्ष 2012 से 2015 के बीच हुए इस फर्जीवाड़े की जांच के दौरान पता चला कि इस मामले का मुख्य आरोपी तत्कालीन बैंक मैनेजर मोरेश्वर मेश्राम सहित अन्य आरोपी ने मिलकर होम लोन लेने वाले एक ग्राहक तथा अन्य 18 कर्ज दाता किसानों के साथ धोखाधड़ी करते हुए लगभग 32 लाख 70 हजार रुपए का गबन किया गया. 

    इस मामले की जांच करते हुए साकोली पुलिस विभाग को 7 साल लग गए. इस बीच इस मामले का मुख्य आरोपी बैंक मैनेजर लाखनी तहसील निवासी मोरेश्वर मेश्राम यह सेवानिवृत्त हो गया है. 

    इस मामले में साकोली के उप विभागीय पुलिस अधिकारी अरुण वायकर के नेतृत्व में पुलिस ने शुक्रवार 18 फरवरी को तत्कालीन बैंक मैनेजर सहित कर्मचारी राजू बनकर, गौतम चादेवार, डुड़ेश्वर सोनवाने को गिरफ्तार किया है. गिरफ्तार आरोपियों को न्यायालय में पेश किया गया जहां सभी आरोपियों को 23 फरवरी तक पुलिस हिरासत में भेज दिया है.

    प्राप्त जानकारी के अनुसार इस मामले की जांच दौरान पता चला है कि तत्कालीन बैंक मैनेजर ने भंडारा के साळा साथ गोंदिया जिले के कर्जदाता किसानों को अपना निशाना बनाया है. सितंबर 2012 में साकोली निवासी मोहन कापगते ने मकान की मरम्मत के लिए कर्ज लेने बैंक आफ महाराष्ट्र के मैनेजर मेश्राम के पास आवेदन किया था. 

    उस समय तत्कालीन बैंक मैनेजर ने कर्मचारी राजु बनकर को सभी दस्तावेज देने का कहा. कर्ज की प्रक्रिया दौरान दोनों ने मिलकर मोहन कापगते से सभी दस्तावेजों के साथ साथ कोरे विड्राल फार्म पर हस्ताक्षर कराए. इस बीच बैंक से कर्ज मंजूर कराया पर कर्जदाता कापगते को रूपये नहीं दिए. 

    इस बीच वर्ष 2013 में जब मोहन ने अपने बैंक पासबुक की प्रिंट ली तो वह चौक गए. उनके खाते में 22 नवंबर 2012 को पांच लाख 50 हजार रु. जमा हुए थे. जिसमें से बैंक मैनेजर मेश्राम ने खाते में तीन लाख 20 हजार रु. जमा कर नगद रुपये निकाल दिए गए. 

    इस मामले में दर्ज शिकायत परप साकोली पुलिस ने बैंक मैनेर मोरेश्वर मेश्राम तथा राजु बनकर के खिलाफ विविध धाराओं के तहत मामला दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया है. 

    इस मामले में जिला पुलिस अधीक्षक वसंत जाधव, अपर पुलिस अधिकारी अनिकेत भारती के मार्गदर्शन में उपविभागीय पुलिस अधिकारी अरूण वायकर के नेतृत्व में आगे की जांच शुरू है. 

    भंडारा के साथ गोंदिया के किसानों को भी बनाया गया निशाना

    बैंक मैनेजर ने साकोली के साथ-साथ गोंदिया जिले के कर्ज दाता किसानों को भी अपना निशाना बनाया. बैंक के कार्य क्षेत्र के बाहर किसानों के खेती के सात बारा दस्तावेज कर्ज लेने के लिए उपयोग में लाए गए इसमें कर्मचारियों की सहायता से शासन आदेश, कार्यालयीन परिपत्रक का उल्लंघन कर कर्ज के फर्जी प्रकरण तैयार किए गए. कृषि कर्ज के मामले मंजूर करने के लिए अलग अधिकारी होने के बावजूद मैनेजर मोरेश्वर मेश्राम ने स्वयं ही सभी कर्ज के मामले मंजूर किए.

    क्षमता से अधिक कर्ज किए मंजूर

    किसानों को प्रति एकड़ के पीछे कर्ज कितना देना है इसका अनुपात तय है. परंतु बैंक मैनेजर ने मनमर्जी से रकम बढ़ाकर क्षमता से अधिक कर्ज मंजूर किये. किसानों को बोरवेल बनाने के लिए कर्ज देने का दिखावा किया. कर्ज मंजूर कर खुद के एवं सहयोगियों के खाते में राशि जमा की. 

    कई बार आरोपी राजू बनकर यह खुद ही कर्ज लेने वालों का गारंटीदार बनता था. कृषि कर्ज से जुड़े मामले राजू बनकर से जुड़े हैं. वही बोअरवेल व्यवसायी गौतम चादेवार यह बोरवेल कर्ज का कोटेशन देखकर फ्रॉड का हिस्सा बने. उसने 12 लाख रुपए की गड़बड़ी की.

    बैंक कर्मी जांच में नहीं कर रहे सहयोग- अरूण वायकर 

    साकोली उपविभागीय पुलिस अधिकारी अरूण वायकर ने बताया कि बैंक मैनेजर इस मामले का मुख्य आरोपी होने से बैंक कर्मी जांच में सहयोग नहीं दे रहे थे. इसलिए जांच इतनी लंबी चली. इस मामले में सभी आरोपियों को गिरफ्तार कर न्यायालय के सामने पेश किया गया है. जहां न्यायालय ने उन्हें 23 फरवरी तक पुलिस हिरासत में भेजे जाने का आदेश दिया है.

    मामले की छह एसडीपीओ ने की है जांच

    वर्ष 2015 से 2022 तक इस मामले की जांच अब तक 6 उपविभागीय पुलिस अधिकारियों ने की. शुरुआत तत्कालीन उप विभागीय पुलिस अधिकारी मोहन दास से हुई थी. जिसके बाद श्रीकांत डिसले, विक्रम साली, प्रभाकर टिक्कस, टि. के. कांटे ने जांच कि. अब 19 जनवरी 2021 से इस मामले की जांच उपविभागीय पुलिस अधिकारी अरुण वायकर कर रहे हैं.

    किसे कितने का हुआ लाभ

    बैंक मैनेजर मोरेश्वर मेश्राम 10 लाख 65 हजार रुपए

    सहयोगी राजू बनकर 6 लाख 71 हजार रुपए

    व्यवसायी गौतम चंदेवार 12 लाख रुपए

    डुडेश्वर सोनवाने 1 लाख 60 हजार रुपए

    अन्य लाभार्थी 1 लाख 74 हजार रुपए 

    कुल घोटाला 32 लाख 70 हजार रुपए