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    • 247 नवजात भी समाए मौत के मुह में

     भंडारा.सरकारी सूत्रों के अनुसार लगातार यह दावा किए जाने के बावजूद कि कुपोषण और बच्चों की मौतों की संख्या में कमी आई है, आंकड़े सरकारी दावे की पोल खोल रहे है. जिले में पिछले 12 महीनों में 141 की जन्म लेने के पहले ही मां के गर्भ में मृत्यु हो गई है.वहीं 247 नवजात मौत के मुह में समा गए है.

    इतना ही नहीं तो 289 बच्चों की भी इसी अवधी में मृत्यु हुई है.यह आंकडे चौकानेवाले तो है ही पूरे स्वास्थ्य महकमे को कटघरे में खडा कर रहे है.करोडों रुपये कुपोषण और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं पर खर्च किए जा रहे है.इसका कोई लाभ होता हुआ दिखाई नहीं दे रहा है.

    बाल मृत्यु दर 21.09,नवजात मृत्यु दर 17.51 

    जिला परिषद के महिला एवं बाल विकास विभाग के दस्तावेजों से मिली जानकारी के अनुसार अगस्त 2022 तक 1 से 6 वर्ष के आयु वर्ग में 289 बच्चों की मृत्यु हुई. इनमें 0 से 1 वर्ष के बीच 247 नवजात हैं. केंद्र सरकार के प्रजनन व बाल स्वास्थ्य विभाग से हर साल करोड़ों रुपये की फंडिंग के बावजूद शिशु, बाल और जन्मजात मृत्यु दर को कम करने के कोई भी प्रयास सफल होते हुए दिखाइ नहीं दे रहें है. मिली जानकारी के अनुसार जिले में औसत बाल मृत्यु दर 21.09 प्रति हजार दर्ज किया गया है, जबकि औसत नवजात मृत्यु दर 17.51 प्रति हजार है. 

    12 योजनाएं फिर भी बढ रहीं मौते

    गर्भवती माताओं को पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने, बच्चों के कुपोषण को रोकने, उनके स्वस्थ विकास, माताओं की बेहतर डिलीवरी तथा उन्हें आहार एवं देखभाल की जानकारी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से केन्द्र एवं राज्य सरकारों से धनराशि प्राप्त होती है. हालांकि यह भी सच है कि उपायों की तुलना में योजनाओं के प्रचार-प्रसार पर अधिक खर्च किया जा रहा है और उपाय कागजों पर ही रह गए हैं. मजे की बात यह है कि स्वास्थ्य की स्थिति में सुधार के साथ-साथ कुपोषण और बाल मृत्यु दर को कम करने के लिए सरकार की ओर से 12 योजनाएं लागू की गई हैं. हालांकि, बच्चों की मौत की बढ़ती संख्या इस बात को रेखांकित करती है कि इसका सकारात्मक प्रभाव नहीं हो रहा है. 

    कई कारण है जिम्मेदार

    जिले में इतनी बड़ी संख्या में बच्चों की मौत चिंताजनक है. इसके लिए विभिन्न कारक जिम्मेदार हैं, जैसे गर्भावस्था के दौरान मातृ पोषण, एनीमिया, समय से पहले प्रसव, स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी के कारण जटिलताएं, जन्म के समय कम वजन वाले बच्चे.जन्मजात और शिशु मृत्यु दर भी महत्वपूर्ण है.

    इनमें समय से पहले जन्म के समय कम वजन के बच्चे शामिल हैं और कम प्रतिरक्षा के कारण ऐसे शिशुओं में कीटाणु होने का खतरा होता है. अक्सर ऐसे बच्चों को अंतिम समय में निजी अस्पतालों से रेफर कर दिया जाता है, जिससे मौतों की संख्या बढ़ जाती है, खासकर नवजात गहन देखभाल इकाइयों की कमी भी सामने आती है.