तैयार हैं दीप हैं, तैयार हैं मूर्तियां

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    • प्रकाश पर्व को लेकर उत्साह चरम पर

    भंडारा . दीपावली यानि हर्ष, आनंद, उल्साह, उमंग का पर्व, इस पर्व को मनाने के लिए शहरी तथ ग्रमीण दोनों ही क्षेत्रों के लोगों में जबर्दस्त उल्लास रहता है.य पिछले वर्ष कोरोना महामारी ने कारण आनंद यह पर्व नहीं बनाया जा सका था.

    इस पर्व पर प्रज्ज्वलित किए जाने वाले दीये तथा पूजी जाने वाली माता लक्ष्मी की मूर्ति को बनाकर उसे रंगरोगन करने का काम बड़ी तेजी से किया जा रहा है. मिट्टी की कलाकृति बनाने वाला समाज कुंभार समाज का परंपरागत व्यवसाय अब पहले की तुलना में बहुत घट गया है लेकिन कुंभारवाडा में रहने वाले चंद उम्रदराज लोग अपनी कला को जीवित रखने के लिए हर दीपावली पर ज्यादा दीये बनाते हैं. 

    घरों के पूजागृह में विराजित देवी-देवताओं के समक्ष मिट्टी के दीए तो अह बहुत कम लगाये जाते हैं, लेकिन मंदिरों, पीपल के वृक्ष नीचे मिट्टी के दीए आज भी लगाए जाते हैं. आज के दौर में दीपावली के मौके पर मिट्टी के दिए बहुत कम प्रज्ज्वलित किए जा रहे हैं, उनके स्थान पर बिजली की झालर लगाए जा रहे हैं, वैसे जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में मिट्टी के दीए तथा माता लक्ष्मी की मूर्तियां बनाने का काम जारी रहता है, लेकन लाखनी तहसील के पलांदूर परिसर में मिट्टी की कला संरक्षित रखने का काम जारी है. 

    मंहगाई कितनी भी बढ़े फिर भी पालांदूर के कुम्हार समाज के लोगों ने अपनी कला को मरने नहीं दिया. अपने रोजगार का सम्मान करते हुए यहां के कुम्हार समाज के लोगों का कहना है कि वे ग्राहकों के रेट से अपने द्वारा बनाए गए दीए को बेंचने में कोई गुरेज नहीं  करते.

    पालांदूर में कुंभार समाज के 25 परिवारों की बस्ती है, जहां पर लगभग हर घर में लक्षमी तथा दीए बनाए जाते हैं. दीए बनाकर उसे भट्टी में तपाया जाता है. दीए बनाने वालों का कहना है कि उन्हें बहुत ज्यादा कमाने की मंशा नहीं है, लेकिन मेहनत का पैसा जरुर मिलना चाहिए. कुंभारवाडे में तो दीए तथा लक्ष्मी जी की मूर्ति बनाने का पूरा होने को है, इसलिए अब इंतजार सिर्फ दीपावली के दिन का है.