गुंजेवाही में माता अंबिका और यल्लमा के प्राचीन मंदिर में नवरात्रि उत्सव शुरू

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    • 1964 में राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने दी थी भेट देकर लिए माता के दर्शन 

    सिंदेवाही: सिंदेवाही तहसील से 15 किमी की दूरी पर स्थित गुंजेवाही गांव के पास पहाड़ी पर प्राकृतिक जंगल से घिरा माता अंबिका और माता यल्लमा का एक प्राचीन मंदिर है.  ग्रामीणों का कहना है कि वनराज इस मंदिर में माता के दर्शन करने आते हैं. मंदिर प्रबंधन समिति और ग्रामीण की ओर से मंदिर में प्रतिवर्ष नवरात्रि पर्व बहुत ही हर्षोल्लास और भक्ति के साथ मनाया जाता है. इस वर्ष सोमवार को मंदिर में घट स्थापित कर नवरात्रि पर्व की शुरुआत की गई. 

    सिंदेवाही से गुंजवाही की ओर जाने वाले दोनों ओर घना जंगल है. गंजेवाही गांव भी जंगल के पास है और गांव की शुरुआत में गेट के पास दाहिनी ओर पहाड़ी पर प्राचीन काल का मां का पवित्र मंदिर है. इस स्थान पर मुख्य दो मंदिर है बडे मंदिर में माता अंबिका विराजमान है तो छोटे मंदिर में माता यल्लमा विराजमान है. इस मंदिर से सटे भगवान शंकर और विट्ठल रुक्माई का मंदिर है. 

    स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि मंदिर का निर्माण लगभग 200 साल पहले हुआ है, मंदिर का जीर्णोद्धार वर्ष 1993 में किया गया था और उसी के अनुसार एक नया निर्माण किया गया था. इस मंदिर में हमेशा भक्तों की भीड़ लगी रहती है. भक्तों का कहना है कि इस मंदिर में भक्तों की मनोकामना पूरी होती है. भक्त अक्सर कहते हैं कि उन्होंने इस मंदिर परिसर में वन राजा को देखा है. 

    ऐसा कहा जाता है कि राष्ट्रसंत तुकडोजी महाराज ने वर्ष 1964 में इस मंदिर को भेट दी थी. यह एक किंवदंती है कि भगवान परशुराम के समय में अंबिका माता और यल्लमा माता की स्थापना की गई थी. माँ की मूर्तियाँ गंडकी पत्थर से बनी हैं और उनका रूप सिंह के साथ अष्टभुजा के रूप में है. मां ने कई शस्त्र धारण किए हुवे है.

    और उनकी पीठ पर बाणों का भाता व मुकुट के बीच में शिवलिंग, दाहिनी ओर शेर और की छवि है. साध्वी को किनारे पर उकेरा गया है. यह करविर निवासी महालक्ष्मी का स्थान यह एक आदिशक्ति, आदिमाया, ब्रम्हस्वरूपनी का स्थान सक आद्यपीठ है. माता अंबिका और माता यल्लमा की मूर्तियां मन को स्थिर करनेवाली है. इस मंदिर में नौ दिनों तक एक बड़ा उत्सव मनाया जाता है. और महाप्रसादन कार्यक्रम का समापन होता है.