चंद्रपुर. पिछले कुछ महिनों ने केंद्र सरकार द्वारा किसानों पर लादे गए तीन कृषि कानून के खिलाफ दिल्ली पंजाब सीमा पर पिछले कुछ महिनों से आंदोलन चला रहा था. आंदोलन के दोरान कई किसानों का जान गवानी पडी. इस आंदोलन को बदनाम करने का प्रयास भी किया गया. परंतु किसानों ने डटकर आंदोलन को जारी रखा. अंतत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसान आंदोलन के सामने झुककर शुक्रवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान किया. करीबन वर्ष भर से चल रहे आंदोलन के आगे सरकार को झुकना पड़ा और तीनों कानूनों को निरस्त करना पड़ा.
केंद्र सरकार के इस निर्णय का जिले के किसान संगठन से जुडे प्रतिनिधियों ने अपनेअपने विचार व्यक्त किए.
आखिर झुकी तानाशाही सरकार – सांसद बालू धनोरकर
सांसद बालु धानोरकर के मुताबिक, दुनिया के लोगों के लिए भोजन की व्यवस्था कराने तथा उन्हे जिंदा रखने वाले किसानों के भविष्य के लिए खतरा बने तीन काले कानून को आखिरकार निरस्त किया गया. राजधानी की सीमा पर कई महीनों से ऐतिहासिक किसान आंदोलन चल रहा है. लेकिन इस अत्याचार को सहने के बाद भी हमारे किसानों ने हार नहीं मानी, वे आंदोलन में डटे रहे, संघर्ष जारी रहा और अंत में सरकार को उस संघर्ष के आगे झुकना पडा है. इससे देश के किसानों की जीत हुई है. किसान भाइयों की एकता की जीत हुई है.
कानून रद्द नही बल्की बदलाव आवश्यक था- वामनराव चटप
किसान संघ महाराष्ट्र के पूर्व अध्यक्ष तथा पूर्व विधायक वामनराव चटप के मुताबिक, हमने कृषि फसलों को उचित मूल्य दिलाने के लिए कई बार आंदोलन किए, कारावास भुगतना पड़ा. मौजूदा कृषि व्यापार और सरकारी नीतियां काफी हद तक किसानों के हितों के लिए हानिकारक हैं.
इसलिए, हमें उम्मीद थी कि नए अधिनियमित कृषि कानून कृषि क्षेत्र में निवेश को बढ़ावा देगा और बाजार में प्रतिस्पर्धा के माध्यम से किसानों को अधिक लाभ पहुंचाएगा. तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणा के साथ किसानों को निकट भविष्य में आर्थिक स्वतंत्रता के लिए अपनी लड़ाई तेज करनी होगी. संपूर्ण कानून को रद्द करना अनुकूल नहीं था इसके लिए कानून में आवश्यक बदलाव करना आवश्यक था.
अन्नदाताओं के सत्याग्रह के आगे झुकी अहंकारी सरकार : विधायक प्रतिभा धानोरकर
वरेारा_भद्रावती विधानसभा क्षेत्र की विधायक प्रतिभा धानोरकर के मुताबिक, कृषि क्षेत्र इस देश की आत्मा है. पिछले कई महीनों से चला आ रहा किसान आंदोलन काफी सफल रहा है. आज प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की है कि वह तीनों कृषि कानूनों को वापस ले रहे हैं. यह अहंकारी सरकार अन्नदाताओं के सत्याग्रह के आगे झुक गई है.
देश के विभिन्न हिस्सों में उपचुनावों और उत्तर प्रदेश समेत आगामी चुनावों में बीजेपी की नाकामी को देखते हुए यह फैसला लिया गया है. लेकिन शासकों को कोई भी निर्णय लेने में इतनी देर नहीं करनी चाहिए. यदि निर्णय पहले लिया जाता तो हजारों किसानों की जान बच जाती थी.
किसानों के हितों में था कृषि कानून- संजय गजपुरे
भाजपा जिला संगठन महामंत्री व जिप सदस्य संजय गजपुरे के मुताबिक, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानेा के हितों के लिए कृषि कानून तैयार किए थे. भारत कृषिप्रधान देश है. प्रत्येक क्षेत्र ने समय के अनुसार बदलाव किए है. परंतु इस आंदोलन से साबित हुआ कि खेती में किसी को भी बदलाव नही चाहिए इसके आगे कोई भी कृषि व्यवस्था में बदलाव नही लायेगा.
केंद्र सरकार किसान विरोधी – सतीश वारजुरकर
जिप कांग्रेस गुटनेता व सदस्य सतीश वारजुरकर के मुताबिक, केंद्र की सरकार किसान विरोधी है. कृषि कानून के खिलाफ किसानों ने संघर्ष जारी रखा. इसलिए सरकार ने आंदोलन के सामने झुककर यह निर्णय लिया.
कृषि अधिनियम को निरस्त करने का निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण – अनिल घनवट
स्वतंत्र भारत पक्ष के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल घनवट के मुताबिक, केंद्र सरकार द्वारा एक साल पहले पारित कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा कर सरकार ने किसानों के लिए व्यापार स्वतंत्रता के दरवाजे बंद कर दिए हैं. यह निर्णय दुर्भाग्यपूर्ण और किसानों और राज्य के लिए हानिकारक है. कुछ कृषि माल को आवश्यक वस्तुओं की सूची से बाहर रखा गया था. अनुबंध खेती को बढ़ावा देने वाले कानूनों के निरस्त होने से किसानों को आत्महत्या करने के लिए मजबूर करने वाले कानून अब तक लागू रहेंगे.
बलिदान के बाद झुकी सरकार – दिनेश चोखारे
कृषि उपज बाजार समिति के सभापति दिनेश चोखारे के मुताबिक, केंद्र सरकार ने 700 से ज्यादा किसानों के बलिदान के बाद केंद्र सरकार किसानेां के आगे झुकी. किसानों ने खलिस्तानी का आरोप भी सहा. किसानेां में दरारे डालने के लिए प्रयास किए गए. किसान एकता को सलाम आखिरकार किसान की जीत हुई है.