खुद के चक्रव्यूह में फंसे गिरीश महाजन? एकनाथ खडसे की वापसी महाजन के पर कतरने का संकेत !

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वाहिद काकर@नवभारत
जलगांव:
एक समय जलगांव जिले में ही नहीं राज्य में जिस नाम की तूती बोलती थी, जिनकी वजह से भाजपा (BJP) प्रदेश में इतनी ताकतवर बनी कि वह शिवसेना से आंख मिलाकर बात करने की स्थति में आई। ऐसे कद्दावर नेता एकनाथ खडसे (Eknath Khadse) एक दिन अचानक विवादों में क्या घिरे कि पार्टी से ही आउट हाे गए। उन्होंने इसके लिए देवेंद्र फडणवीस को जिम्मेदार ठहराया, लेकिन सूत्रों का कहना है कि पर्दे के पीछे से चालें चलते हुए मंत्री गिरीश महाजन (Girish Mahajan) ने एक-एक करके जिला ही नहीं, मनपा आदि सभी जगह से खडसे का कब्जा छीन लिया और उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। वजूद बचाने की कोशिश में वे शरद पवार के दर पर गए, तो कुछ दिन बाद उनकी भी सरकार चली गई, पार्टी ही टूट गई। लेकिन अब खड़से की घर वापसी के एलान के साथ ही महाराष्ट्र की राजनीति में बड़े बदलाव के संकेत मिल रहे हैं, ये चर्चा भी शुरू हो गई है कि क्या खड़से की वापसी से महाजन के पर कतरने की कोशिश बीजेपी आलाकमान कर रहे हैं।  

एक तीर से कई निशाने साधने की कोशिश में भाजपा शीर्ष नेतृत्व
इस परिदृश्य में हालांकि, पहली नजर में देखा जाए तो एकनाथ खडसे की भाजपा में फिर से वापसी की बिसात जो बिछी है, उसमें उनकी मजबूरी क्या ना कराए वाली भावना झलकती है। परंतु हकीकत क्या है? और वह भी ऐन लोकसभा चुनावों के बीच में? सूत्रों का कहना है कि एकनाथ खडसे की वापसी को हरी झंडी दिखाकर भाजपा का शीर्ष नेतृत्व एक तीर से कई निशाने साधने के साथ ही मंत्री गिरीश महाजन के एकछत्र राज पर लगाम कसना चाहता है। कट्टर विरोधियों को साथ में खड़ा कर भाजपा ने वही काम किया है, जिसकी नींव अजित पवार को साथ लाकर डाली गई थी।

खड़से की जगह महाजन को मिला स्थान 
दो दशक से राजनीति में वर्चस्व बनाने वाले एकनाथ खडसे ने कभी सोचा नहीं था कि वे भ्रष्टाचार के आरोपों के चलते उन्हीं के जूनियर गिरीश महाजन से मात खा जाएंगे। पहले उनसे उनका मुख्यमंत्री बनने का सपना छीना, फिर मंत्री पद और बाद में पार्टी और स्थानीय सभी निकाय भी। खडसे अचानक राजनीति के हाशिए पर कर दिए गए और गिरीश महाजन उत्तर महाराष्ट्र में भाजपा के सर्वेसर्वा के रूप में विख्यात ही नहीं हुए, जलगांव की राजनीति के साथ-साथ उत्तर महाराष्ट्र की राजनीति के केंद्रीय बिंदु भी बन गए। 

Eknath Khadse

खड़से ने नहीं मानी हार 
लेकिन, एकनाथ खडसे ने भी हार नहीं मानी। भाजपा की प्राथमिकता सदस्यता से इस्तीफा दिया और 20 माह पूर्व शरद पवार की राकांपा में शामिल हो गए। इस दौरान उन्होंने उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस, मंत्री गिरीश महाजन पर बेहद तीखे हमले बोले। यहां तक कहा कि देवेन्द्र ने ही उन्हें भोसरी मामले में फंसाया था। ईडी के विरुद्ध सीडी निकालने की धमकियां खुलेआम दीं, लेकिन उत्तर महाराष्ट्र की राजनीति में कुछ खास नहीं कर पाए। अलबत्ता शरद पवार को उनसे जरूर फायदा होता रहा।

खुद के चक्रव्यूह में फंसे महाजन 
लोकसभा चुनाव से पहले खड़से ने परिवार की लोकसभा सीट को बचाने के लिए भाजपा के सामने कड़ी चुनौती देते हुए स्वयं को लोकसभा चुनाव का प्रत्याशी घोषित किए जाने की चर्चाओं को बल दिया। वे भाजपा पर दबाव बनाने में कामयाब रहे। नहीं चाहते हुए भी मंत्री महाजन ने रावेर लोकसभा सीट पर एकनाथ खडसे की बहू रक्षा खड़से को उम्मीदवारी घोषित कर उन्हें चक्रव्यूह में घेरने की कोशिश की और वही फंस गए। सीट भी गई और अब खडसे भी आ रहे हैं मैदान में उनके सामने, भले ही साथ हों। 

महाजन के पर कतरने का संकेत 
इसी बीच भोसरी जमीन मामले में न्यायालय ने खडसे को राहत दी और 137 करोड़ रुपए राजस्व वसूली मामले में भी राहत प्रदान की। इसके चलते जिले में एक बार फिर एकनाथ खडसे की भाजपा घर वापसी की अटकलों ने जोर पकड़ा था। उन्होंने मुंबई में घोषणा की कि नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में वह भाजपा में घर वापसी करेंगे। इस घोषणा को अभी तक किसी ने नकारा नहीं है, विरोध नहीं किया है जिससे स्पष्ट हो गया है कि उत्तर महाराष्ट्र की राजनीति के समीकरण बदल रहे हैं और भाजपा के शीर्ष नेताओं ने ऐन लोकसभा चुनाव के समय भाजपा के संकटमोचक मंत्री गिरीश महाजन के पर कतरने का कार्य किया है।

क्या रंग लाएगी खड़से की घर वापसी 
राजनीतिक गलियारों में चर्चा गर्म है कि भाजपा में गिरीश महाजन की वर्चस्व की लड़ाई और टिकट काटा-काटी के खेल से नाराज होकर खडसे की घर वापसी को अमित शाह और मोदी ने शह दी और महाजन को बैकफुट पर ले आए। अब वक्त बताएगा कि यह मनोमिलन क्या रंग लाएगा और इस घर वापसी की कड़ियां किस-किस से जाकर जुड़ती हैं।