बढ़ रहा पारा, सूख रही नदियां; जिले से सटी वैनगंगा नदी की जलधार हुई पतली

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    •  आगामी दिनों जलसंकट समस्या लेगी उग्र स्वरूप

    गड़चिरोली. जिले में मार्च महिने से ही धूपकाले की आहट महसूस हो रही है. बिते पखवाडे से सुरज अपनी तपीश बढाता नजर आ रहा है. जिसके चलते जिले में जलस्तर में व्यापक गिरावट नजर आ रही है. बतां दे कि, मार्च महिने में ही जिले के नदीयों से जलधाराएं विलुप्त होने का दृश्य नजर आ रहा है. अब अप्रैल माह प्रारंभ हुआ है.

    जिससे जिले में तापमान का पारा चढ़ रहा है, वहीं जीवनदायीनी नदीयां सुखती नजर आ रही है. जिले की प्रमुख नदी होनेवाली वैनगंगा नदी की जलधारा भी पतली नजर आ रही है. जिसके चलते गड़चिरोली जिले में आगामी दिनों जलसंकट के बादल मंडराने की संभावना व्यक्त हो रही है. 

     वैसे तो गड़चिरोली जिला वनसंपन्न होने के साथ ही जलसंपन्न भी है. गड़चिरोली जिले के सीमा से वैनगंगा, प्राणहिता, गोदावरी, इंद्रवती यह बारमासी नदीयां बहती है. इसके साथ ही जिले में कठाणी, पोटफोडी, गाढवी, खोब्रागडी, पाल, सती, दिना, पर्लकोटा, पामुलगौतम, बांडे आदि  नदीयां बहती है. बरसात के दिनों में यह नदीयां विकराल स्वरूप धारण करती है, वहीं धूपकाले दिनों में यहीं नदी सुखी बंजर जमीन की भांती नजर आती है.

    बिते मार्च महिने से जिले के नदीयों का दृश्य इसी तरह नजर आ रहा है. जिले की अधिकत्तर नदीयां सुख गई है, कुछ नदीयों में पतली सी धार बहती दिखाई दे रही है. जिसके कारण जिले में जलसंकट के आसार नजर आ रही है. बतां दे कि, जिले में यह समस्या प्रतिवर्ष की समस्या बन चूकिं है. जिससे जिले के नदीयों पर बांध निर्माण करने की आवश्यकता है. मात्र सरकार द्वारा इस संदर्भ में प्रयास होने नजर नहीं आ रहे है. 

    नल जलापूर्ति योजना प्रभावित

    जिले में बहनेवाली नदीयों पर प्रशासन द्वारा नल जलापूर्ति योजनाएं क्रियांन्वित किए गए है. बिते कुछ वर्षो में जिले में अनेक गांवों में यह योजना क्रियांन्वित हो चुकी है. किंतू धूपकाले के दिनों में यह योजना महज सफेद हाथी नजर आती है. धूपकाले में दिनों में नदीयों के सुखने के कारण यह योजना कार्य नहीं कर पाती है.

    जिससे अनेक गांवों में धूपकाले के नदी पानी की टंकीयां व घरों के समक्ष नल केवल शोपिस नजर आते है. बतां दे कि, मार्च महिने से ही तापमान में वृद्धि होने के कारण जिले की नदीयां सुख रहे है. ऐसे में कुछ गांवों में अभी से नल योजनाएं बंद हुई है, तो कुछ गांवों में बंद होने के कगार पर है. 

    बढ़ा सिंचाई क्षेत्र पर जलसंकट का साया

    बिते कुछ वर्षो में जिले के सिंचाई क्षेत्र में वृद्धि हुई है. जिसके कारण किसानों द्वारा भूगर्भ के जल के माध्यम से खेतों की सिंचाई की जा रही है. अनेक जगह बोरवेल लगाकर सिंचाई की जा रही है. जिसके कारण गांवों का भूजल स्तर में गिरावट होती है. जिससे गांव के कुए भी सुख जाते है, और हैन्डपंप भी दम तोड देते है. ऐसे में अनेक गांवों में ग्रामीणों को खेतों में स्थित बोरवेल से पानी लाना पड़ता है. आगामी 2 से 3 माह ग्रामीणों को पानी के लिए भटकना पडता है. 

    दुर्गम क्षेत्रों में इससे भी गंभीर स्थिती

    जिले के दुर्गम क्षेत्र में स्वाधिनता के 7 दशक बाद भी सुविधाएं नहीं पायी है. बुनियादी सुविधाओं के लिए भी आदिवासीयों को तरसना पडता है. धूपकाले के दिनों में दुर्गम क्षेत्र के नागरिकों को पानी के लिए व्यापक परिश्रम करना पडता है. अनेक लोगों को दुरदराज के झरने, नालों से पानी लाना पडता है.

    वहीं कुछ जगह नदी, नालों में गड्डा तैयार कर वहां से ग्रामीण पानी लाते है. दुर्गम गांवों में सौरउर्जा पर संचालित नल योजना क्रियांन्वित की गई है. किंतू देखभाल के अभाव में अनेक जगह यह योजना नादुरूस्त है. ऐसे में ग्रामीण प्रकृति द्वारा दिए गए जलस्त्रोतो पर से ही अपनी प्यास बुझा रहे है.