अहेरी. एक तरफ सरकार मेक इन इंडिया का नारा देते हुए शहरों समेत गांवों का विकास करने की बात कह ढिंढ़ोरा पीट रही है. लेकिन दुसरी ओर राज्य के आखरी छोर पर बसे आदिवासी बहुल, नक्सल प्रभावित और पिछड़े जिले के रूप में परिचित गड़चिरोली जिले के ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्र में आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिये तरस रहे है.
वर्तमान स्थिति में आलम यह है कि, गड़चिरोली जिले के ग्रामीण और दुर्गम क्षेत्र में पानी की समस्स्या गंभीर होकर पानी के लिये लोगों को दर-दर भटकने की नौबत आन पड़ी है. जिले के अहेरी उपविभाग के दुर्गम और अतिदुर्गम क्षेत्र में बसे लोगों को शुध्द पिने का पानी नसिब नहीं हो रहा है. जिसके कारण इस क्षेत्र के लोग नदी, और झरने का पानी उपयोग करने में मजबूर हो गये है. जिससे अपनी बदहाली पर रोये या किस्मत पर को कोसे? ऐसा सवाल लोगों में उपस्थित हुआ है.
कुओं का घटा जलस्तर और हैन्डपंप हुए खराब
अहेरी उपविभाग की बात करें तो, इस उपविभाग में कुछ 5 तहसीले है. इनमें अहेरी, सिरोंचा, एटापल्ली, भामरागड़ और मुलचेरा तहसील का समावेश है. विशेषत: यह तहसीले पुरी तरह आदिवासी बहुल और जंगलों घिरी हुई है. इन तहसीलों में सर्वाधिक आदिवासी समुदाय होकर मेहनत मजदूरी कर अपना जीवनयापन कर रहे है. हालांकि सरकार व प्रशासन द्वारा अनेक गांवों में सरकारी कुएं और हैन्डपंपों का निर्माण किया गया है. लेकिन वर्तमान स्थिति में आलम यह है कि, अनेक कुओं का जलस्तर घट गया है. वहीं सैकड़ों की संख्या में हैन्डपंप बंद अवस्था में पड़े है. जिसका खामियाजा दुर्गम क्षेत्र के नागरिकों को नदी, नालों के पानी से अपनी प्यास बुझाने की नौबत आन पड़ी है.
पानी के लिये तय करनी पड़ती है लंबी दूरी
एक तरफ गड़चिरोली इस जिले में बारह माह बहनेवाली नदियां है. लेकिन आवश्यकता नुसार जलापुर्ति योजनाएं कार्यान्वित नहीं किए जाने के कारण प्रति वर्ष ग्रीष्मकाल के दिनों में जिले के नागरिकों को जलसंकट का सामना करना पड़ता है. इस वर्ष भी अहेरी उपविभाग समेत जिले की अन्य तहसीलों में जलसंकट दिखाई दे रहा है.
जिसका खामियाजा लोगों को कई किमी दुर जाकर पानी लाना पड़ रहा है. अहेरी और सिरोंचा तहसील के विरारघाट, देचलीपेठा, मादाराम, सिरकुंडा और मेटीगट्टा आदि गांवों के लोगों को नदी के पानी के लिये कई किमी की दूरी तय करनी पड़ रही है. महिलाएं सिर पर मटके लेकर नदी से पानी ला रहे है. जिसके इन क्षेत्र के नागरिकों को पिने के पानी के लिये भी संघर्ष करना पड़ रहा है.