- लोकल ट्रेन की मांग 12 साल से
सालेकसा. सालेकसा तहसील नक्सल प्रभावित व दुर्गम क्षेत्र में जानी जाती है. यहां रेल्वे स्टेशन से हर आठ घंटे में एक लोकल ट्रेन चलती हैं. इससे तहसील के नागरिकों को आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. दोपहर में लोकल ट्रेन शुरू करने के लिए कई बार सांसदों और मंत्रियों से संपर्क किया जाता हैं. नेता सिर्फ चुनाव के लिए वादे करके इसे भूल जाते हैं. परिणामस्वरूप आज भी तहसील वासियों की मांग जस की तस बनी हुई है. सालेकसा महाराष्ट्र के पूर्वी सिरे पर है. इस तहसील पर प्रकृति मुक्त संचार करती है. यहां जंगल, नाले, झरने, विश्व प्रसिद्ध गुफाएं हैं. मुंबई से हावड़ा रेलवे लाइन सालेकसा तहसील मुख्यालय से गुजरी है.
तहसील नक्सल, आदिवासी और पिछड़ेपन के कारण यहां की अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कृषि पर निर्भर है. यहां आने जाने के लिए सेवाएं उपलब्ध नहीं हैं. गांव रेलवे लाइन पर होने के कारण यहां के निवासियों के लिए रेल परिवहन मुख्य साधन है. यह तहसील हावड़ा-मुंबई रेलवे लाइन पर है, यहां पर्याप्त ट्रेनें उपलब्ध नहीं हैं.
यहां हर आठ घंटे में केवल एक ट्रेन रुकती है. ऐसे में नागरिकों को आने-जाने में भारी परेशानी का सामना करना पड़ता है. पिछले 12 वर्षों से यह मांग की जा रही है कि लोकल ट्रेन दोपहर के समय शुरू की जाए. लेकिन उस मांग को रेल प्रशासन और राजनीतिक नेताओं ने अनसुना कर दिया है. जहां तीसरी रेल लाइन बनाने का काम हाथ में लिया गया है, वहीं हैरानी की बात यह है कि प्रशासन पैसेंजर ट्रेन शुरू करने में नाकाम साबित हो रहा है.
छात्रों के साथ कर्मचारी परेशान
सालेकसा रेलवे स्टेशन से आमगांव, नागपुर, रायपुर, डोंगरगढ़ जाने वाले यात्रियों व छात्रों की काफी भीड़ रहती है. तहसील का 90 प्रश. भाग वनों से आच्छादित है. यहां पढ़ाई की भी कोई सुविधा नहीं है. इसलिए छात्र आमगांव, गोंदिया जाते हैं. लेकिन स्कूल और कॉलेज के समय में ट्रेन नहीं होने के कारण छात्रों को शहर में रहना पड़ता है. इससे उन पर आर्थिक दबाव पड़ता है. वहीं कर्मचारी भी समय से नहीं पहुंचते हैं.