Maharshtra News
IAS Nidhi Choudhary

Loading

आनंद मिश्र@नवभारत

  • अमूमन सब काम हो रहा पेपरलेस, ऑडिट को ऑनलाइन करने के लिए भी चल रहे हैं ट्रायल

मुंबई: 2012 बैच की आईएएस अधिकारी निधि चौधरी वास्तव में महिला सशक्तिकरण की जीती जागती मिसाल हैं। उनकी एक बहन आईपीएस तो भाई आईएएस भी अधिकारी हैं। आईएएस की परीक्षा पास करने से पहले निधि आरबीआई में बतौर मैनेजर काम रही थी। अपनी छोटी बहन आईपीएस विधि चौधरी को उन्होंने अपना रोल मॉडल बनाया और सटीक प्लानिंग तथा इच्छा शक्ति के दम पर आईएएस बनने का सपना साकार किया। 11 साल के करियर में निधि की जहाँ पोस्टिंग हुई, उन्होंने अपनी छाप छोडी।

निधि ने उन जगहों से अतिक्रमण को हटवाया जिसके बारे में बड़े से बड़े अधिकारी फैसला लेने से डरते थे। निधि की टॉप क्लास की पेंटर हैं और उनकी पेंटिंग से मिले पैसे को वे शहीदों के नाम कर देती हैं। एक कुशल प्रशासक के अलावा उन्हें एक मां, पत्नी, लेखिका, कवयित्री और बोल्ड अफसर के लिए भी जाना जाता है। फ़िलहाल वह जीएसटी (महाराष्ट्र) की जॉइंट कमिश्नर के पद पर कार्यरत हैं। नवरात्रि के इस मौके पर ’नवभारत’ के प्रतिनिधि ने उनसे विस्तार से चर्चा की।

प्रस्तुत है मुख्य अंश:

देश में GST कलेक्शन हर महीने एक नया रिकॉर्ड बना रहा है। इसकी क्या वजहें हैं ?

GST एक उपभोग आधारित टैक्स है, इसलिए इसका कलेक्शन बढ़ना देश की अर्थव्यवस्था में बढ़ती मांग और उपभोग की तरफ इशारा करता है जो मजबूती का भी संकेत है। जीएसटी में डिजिटल तकनीक के प्रभावी उपयोग के कारण टैक्स का दायरा भी बढ़ रहा है। पिछले कुछ वर्षों में भारत में मिडिल क्लास के लोग बढ़े हैं और नगरीकरण भी तेजी से बढ़ा है। सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से गरीबी में कमी आई है और लोगों की खरीदने की क्षमता भी बढ़ी है।

सबसे ज्यादा GST देने वाले महाराष्ट्र के टैक्स पेयरों को कुछ खास सहूलियत मिलने वाली है?

देश भर के पूरे जीएसटी कलेक्शन में लगभग 15 फीसदी हिस्सा महाराष्ट्र राज्य का है। GST का मूलतत्त्व ‘एक देश एक टैक्स’ होने के कारण देश भर में इसके कार्यान्वयन में समानता पाई जाती है। हाँ, महाराष्ट्र सरकार ने पुराने कायदों बीएसटी, वैट आदि के लिए अभय योजना जारी की है, जिसमें बकाया टैक्स में काफी सहूलियतें दी गई है। यह योजना 31 अक्टूबर तक लागू है।

GST के जटिल रूल्स को टैक्स पेयर फ्रेंडली बनाने के लिए क्या जतन किए जा रहे हैं ?

उत्तर- जीएसटी को अमूमन 6 साल ही हुए हैं. यह एक नया कानून है जिसे अलग-अलग राज्यों के अलग अलग टैक्सों की जगह एक टैक्स लाया गया है। इसलिए यह पुरानी व्यवस्था से अलग जरूर हो सकता है किन्तु जटिल बिल्कुल नहीं है। पहले हमारे ही देश में किसी वस्तु को एक राज्य से दूसरे राज्य में व्यवसाय करते समय व्यापारियों को अलग-अलग राज्यों की अलग-अलग टैक्स प्रणाली के अनुकूल काम करना पड़ता था। आज देश के 28 राज्यों और 9 केंद्र शासित प्रदेशों में बस एक ही टैक्स सिस्टम है. अनेक सर्वे में 90 फीसदी से अधिक व्यवसायी जीएसटी के प्रति सकारात्मक दिखे हैं। मुझे विश्वास है कि कुछ सालों में नियमों की जटिलता की चर्चा कम हो जाएगी. इसे और भी आसान बनाने के लिए कौंसिल नियमित तौर पर निर्णय लेती रहती है। जीएसटी का सारा कामकाज जीएसटीएन पर होने के कारण अब यह पेपरलेस भी गया । चूँकि कुछ टेक्नोलॉजी नई है इसलिए इसकी नवीनता को जटिलता समझा जा रहा है।

क्या जीएसटी डिपार्टमेंट यह पता लगाने की कोशिश करता है कि टैक्स पेयरों की क्या दिक्कतें या जरूरतें हैं ?

जीएसटी काउंसिल में सभी राज्यों के वित्त मंत्री सहभागी होते हैं जो अपने-अपने राज्यों में आम नागरिकों के मुद्दों पर चर्चा करते हैं। जहां तक महाराष्ट्र जीएसटी विभाग का प्रश्न है, हमारे कार्यालय में जीएसटी प्रैक्टिशनर्स एसोसिएशन को जगह दी गई है तथा ICAI  के सभी ब्रान्चेस के साथ बहुत सहयोगात्मक तरीके से विभाग काम करता है। आम जनता, चार्टर्ड अकाउंटेंट्स तथा व्यापारियों से आपसी संवाद के अलावा, हमारा डिपार्टमेंट कॉन्फ्रेंस, सेमिनार, वेबिनार जैसे कार्यक्रमों के जरिये लोगों की शिकायतों, सुझावों को जानने की कोशिश करता रहता है। बड़े करदाताओं के लिए लार्ज टैक्सपेयर यूनिट स्थापित की गई है।

GST विभाग कितना डिजिटल हो रहा है ?

आज की तारीख में ऑडिट और इंवेस्टिगेशन को छोड़ दें तो हमारा सारा काम जीएसटीएन पर होता है जो कि देश भर में एक ही पोर्टल है। आज रजिस्ट्रेशन, रिफंड, रिकवरी, स्क्रुटिनी इत्यादि  पूर्णतया ऑनलाइन हो चुकी है। ऑडिट को ऑनलाइन करने के लिए भी ट्रायल चल रहे हैं। जीएसटी के आने के बाद देश भर में ई-वे बिल, ई-इनवॉइस लागू किया गया है। AI का इस्तेमाल जीएसटी में होने वाली धांधली को रोकने के लिए किया जा रहा है।

GST का कामकाज देखने में शुरुआत में कोई दिक्कत नहीं आई ?

प्रशासनिक सेवा में आने से पहले मैं आरबीआई बतौर मेनेजर और 1 वर्ष तक भारतीय लेखा व लेखा परीक्षा सेवा में काम कर चुकी थी। अर्थशास्त्र व लेखा विषय की जानकारी होने के कारण कोई कठिनाई नहीं हुई। मैं मज़ाक में कहती रहती हूँ कि मेरे नाम का अर्थ ही वित्त या धन है। इसीलिए मेरी ज़िंदगी में कभी आरबीआई, कभी सीएजी तो कभी जीएसटी मेरा वित्तीय ज्ञान बढ़ाने के लिए आते रहते हैं. फिलहाल में अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर भी कर रही हूं, इसलिए जीएसटी विभाग में खुश हूं।

अपने पर्सनल लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ का मैनेजमेंट कैसे करती हैं आप ?

जब हम हर काम को तन-मन से समर्पित होकर करते हैं, हर रिश्ते को पूरी शिद्दत से निभाते हैं। जब हम अपनी निजी जिंदगी और अपनी कार्यालयीन ज़िंदगी दोनों को क्वालिटी टाइम अपना धर्म समझकर देते हैं, तो तालमेल अपने आप बैठ जाता है।