महाराष्ट्र दिवस विशेष : छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘रोना’ नहीं बल्कि ‘लड़ना’ सिखाया – डॉ सुमंत टेकाडे

डॉ सुमंत ने कहा कि, छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी प्रजा को 'रोना' नहीं बल्कि 'लड़ना' सिखाया। कितना भी बड़ा संकट आए उसका निडरता से सामना करना छत्रपति ने सिखाया है। उनके शौर्य और साहस की गाथाएं पुरे विश्व में जानी जाती है। छत्रपति के बारे में एक उदाहरण देते हुए डॉ सुमंत ने बताया कि, स्वामी विवेकानंद ने छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम और रणनीति धुरंधर श्री कृष्ण से की है।

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नागपुर. आज महाराष्ट्र दिवस पर शिवचरित्र के अभ्यासक और कॉर्पोरेट ट्रेनर डॉ सुमंत टेकाडे ने छत्रपति शिवाजी महारज के शिवचरित्र से लोगों को अवगत किया। डॉ सुमंत ने कहा कि, छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपनी प्रजा को ‘रोना’ नहीं बल्कि ‘लड़ना’ सिखाया। कितना भी बड़ा संकट आए उसका निडरता से सामना करना छत्रपति ने सिखाया है। उनके शौर्य और साहस की गाथाएं पुरे विश्व में जानी जाती है। छत्रपति के बारे में एक उदाहरण देते हुए डॉ सुमंत ने बताया कि, स्वामी विवेकानंद ने छत्रपति शिवाजी महाराज की तुलना मर्यादा पुरषोत्तम श्री राम और रणनीति धुरंधर श्री कृष्ण से की है। उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि, कलियुग में अगर इन दो महापुरुषों का व्यक्तिमत्व किसी एक व्यक्तिमत्व में देखना है, तो वो एक व्यक्तिमत्व यानि छत्रपति शिवजी महाराज है। डॉ सुमंत आज नवभारत-नवराष्ट्र की और से आयोजित महाराष्ट्र दिवस विशेष ‘Lockdown Vibes’ कार्यक्रम में सम्बोधित कर रहे थे। 

डॉ सुमंत ने कहा, इन्ही महापुरुषों के कारण आज महाराष्ट्र को अन्याय के खिलाफ लड़ने वाले राज्य के रूप में देखा जाता है। छत्रपति शिवाजी महाराज ने कम उम्र में ही नेतृत्व की कमान संभाली थी। कम सैन्य होने के बावजूद उन्होंने देश में कई जगह और लगभग 250 किलों पर भगवा लहराया। यह केवल छत्रपति की सकारात्मक सोच ने कर दिखाया। इसलिए डॉ सुमंत कहते है, छत्रपति के व्यक्तिमत्व को समझकर उन्हें अपनेआप में उतारना चाहिए। उनकी हर निति सफलता दिखती है। लोगो की नकारात्मक सोच को ख़त्म कर उचाई प्राप्त करने के विभिन्न तरीके सिखाती है।

डॉ सुमंत शिवचरित्र अभ्यासक के साथ-साथ एक कॉर्पोरेट ट्रेनर भी है। उन्होंने इस समय छत्रपति शिवाजी महाराज के प्रबंधन कौशल पर प्रकाश डाला। छत्रपति का उस समय का कौशल वर्तमान में लोगों को हर क्षेत्र में कैसे काम आ सकता है इस बारें में डॉ सुमंत ने बताया। जानते है उनके प्रबंधन कौशल के बारे में। 

आत्मविश्वास –  डॉ सुमंत ने कहा, छत्रपति का पहला कौशल है आत्मविश्वास। वे कहते है कि छत्रपति शिवाजी महाराज का जब जन्म हुआ तब परिस्थिति बहुत भयानक थी। उस समय लोग लड़ने के लिए तैयार नहीं थे, उनको खड़ा करना और दिग्विजय सेना तक ले जाना यह बहुत ही मुश्किल काम था। लेकिन छत्रपति के आत्मविश्वास ने ये करके दिखाया। इसलिए डॉ सुमंत ने कहा, अगर हम ऐसाही आत्मविश्वास मन में रखकर कार्य किया तो निश्चित रूप से सफलता अपने कदमों में होगी। जीवन में खुद का आत्मविश्वास ही सबसे बड़ी ताकद है। 

नेतृत्व – छत्रपति शिवाजी महाराज का नेतृत्व कौशल बताते हुए डॉ सुमंत कहते है, छत्रपति में नेतृत्व कौशल जबरदस्त था। प्रजा को साथ लेकर चलना, कम सैनिको में भी प्रतिस्पर्धी को धूल चटाना यह छत्रपति में विशेष गुण था।  छत्रपति ‘सुई’ के समान थे. वे लोगों को जोड़ते गए। लोगों की कला को उनके ज्ञान को पहचनकर उन्हें जिम्मेदारियां सौंपते थे। लेकिन वर्तमान में इसके विपरीत नेतृत्व देखने मिल रहा है। डॉ सुमंत ने कहा, आज किसी भी  संस्थानों में इस प्रकार का नेतृत्व  देखने नहीं मिलता। अपनी नौकरी बचाने के लिए टीम मेंबर की बुराई करना, आगेवाले की प्रगति पर जलना यह नेतृत्व के गुण नहीं है। 

जीवन का लक्ष्य – डॉ  सुमंत ने कहा, छत्रपति शिवजी महाराज ने अपनी 15 साल की उम्र में ही अपने लक्ष्य को तय किया था। तब उनको इतनी सफलता मिली। अपने लक्ष का पीछा करते करते उन्होंने 250 से अधिक किलों पर मराठा साम्राज्य का झंडा लहराया। जीवन में सफल होने के लिए लक्ष को तय करना जरुरी है. लेकिन आज किसीका भी कोई लक्ष्य तय नहीं होता। डॉ सुमंत ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए बताया कि, उन्होंने कॉर्पोरेट सेक्टर में 1 हजार से भी अधिक साक्षात्कार लिए है। जब साक्षात्कार के दौरान उन्होंने पूछा कि, आपके जीवन का लक्ष्य क्या है? तब हजार में  से 900 लोग कहते है की हमें नहीं पता। इसलिए जो जहां है वही रहता है। लेकिन जिसका लॉन्ग टर्म लक्ष रखते है वे एक एक सीढ़ी चढ़ते हुए अपने लक्ष को हासिल करते है।

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#LIVE : ‘"शिवाजी महाराज – द मैनेजमेंट गुरु", महाराष्ट्र दिवस विशेष’ विषय पर चर्चा कर रहें हैं, शिव चरित्र अभ्यासक व कार्पोरेट ट्रेनर डॉ. सुमंत टेकाडे.

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इस प्रकार डॉ सुमंत टेकाडे ने शिवचरित्र से अवगत किया। इस समय उन्होंने छत्रपति शिवाजी महाराज प्रबंधन कौशल के बारे में बताया। उनकी शौर्य गाथाएं उदारहण समेत लोगों के सामने रखे। उनकी हर निति का उपयोग जीवन में सफल होने के लिए किया जा सकता है। साथ ही डॉ सुमंत ने छत्रपति की राजमुद्रा का अर्थ बताया। उन्होंने यह भी कहा कि, वर्तमान में छत्रपति की राजमुद्रा सभी संस्थानों, स्कूल, कॉलेज, व्यवसाय के लिए गाइड के रूप के काम कर रही है। 

अंत में विभिन्न प्रश्नों के उत्तर देते हुए डॉ सुमंत ने कहा कि उस समय मुग़ल और आदिलशाही की सत्ता थी इसलिए राज्य में लोगों के जायजाद के कागजात, वतनपत्र देने का अधिकार भी उन्ही के पास था। लेकिन छत्रपति शिवाजी महाराज ने खुद अपने स्वराज्य की निर्मिति की थी। वे जब तक राजा नहीं बनते तब तक इस प्रकार के कागजात, वतनपत्र नहीं दे सकते थे। यह बड़ी समस्या थी। इसलिए छत्रपति ने स्वराज्य की जिम्मेदारी लेते हुए सिंहासन पर बैठने का निर्णय लिया। छत्रपति में एक राजा बनने के लिए सभी गुण थे, वे सबके लोकप्रिय थे, लोगों के प्रति उनके मन में आदर था।