सोलापुर लोकसभा सीट: कांग्रेस के गढ़ में BJP की हैट्रिक की तैयारी, राम सातपुते और प्रणीति शिंदे में होगी कड़ी टक्कर

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नवभारत डिजिटल टीम: देश में लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां तेज हो गई है। सभी पार्टियां जोरो शोरों से प्रचार प्रसार में लगी हुई है। महाराष्ट्र में भी यह लड़ाई देखने को मिल रही है। महाराष्ट्र के 48 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र में से सोलापुर लोकसभा सीट भी काफी महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस सीट का इतिहास देखें तो कांग्रेस का यहां पर वर्चस्व रहा है। सोलापुर लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र महाराष्ट्र में अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीटों में से एक है। इस विधानसभा क्षेत्र की पहली खासियत यह है कि यह सबसे उपेक्षित विधानसभा क्षेत्र है। यह बहुभाषी निर्वाचन क्षेत्र कर्नाटक और तेलंगाना से सटा हुआ है। सोलापुर शहर में ऐसे नागरिक रहते हैं जिनकी मातृभाषा मराठी, तेलुगु और कन्नड़ है। सोलापुर लोकसभा क्षेत्र लिंगायत बहुल क्षेत्र है। उसके बाद पद्मशाली समाज, मुस्लिम अनुसूचित जाति, धनगर समाज का नंबर आता है। यहां का लिंगायत समुदाय परंपरागत रूप से बीजेपी को वोट देता रहा है। इस साल के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर कांग्रेस की प्रणीति शिंदे और बीजेपी के राम सातपुते के बीच कड़ा मुकाबला देखने को मिलने वाला हैं। 

लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र

सोलापुर लोकसभा क्षेत्र में 6 विधानसभा क्षेत्र हैं। इनमें मोहोल, सोलापुर सिटी नॉर्थ, सोलापुर सिटी सेंट्रल, अक्कलकोट, सोलापुर साउथ और पंढरपुर शामिल हैं। इनमें से 4 विधानसभा क्षेत्रों में बीजेपी के विधायक हैं, जबकि सोलापुर सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र में वर्तमान में कांग्रेस की प्रणीति शिंदे विधायक हैं। मोहोल विधानसभा क्षेत्र में एनसीपी अजित पवार गुट के यशवंत माने विधायक हैं। यानी पार्टी विधायकों की संख्या के हिसाब से महायुति के पास 6 में से 5 सीटें हैं। जबकि महाविकास अघाड़ी के पास सिर्फ एक सीट है। इसका फायदा निश्चित तौर पर बीजेपी प्रत्याशी राम सातपुते को होगा।

सोलापुर लोकसभा सीट पर कांग्रेस का दबदबा 

सोलापुर लोकसभा क्षेत्र के इतिहास पर नजर डालें तो यहां शुरू से ही कांग्रेस पार्टी का दबदबा रहा है। शेकाप के शंकरराव मोरे ने इस निर्वाचन क्षेत्र में 1952 में पहला चुनाव जीता था। इस निर्वाचन क्षेत्र में कांग्रेस उम्मीदवार एस। आर। दमानी लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं। उन्होंने यह हैट्रिक 1967, 1971 और 1977 के चुनावों में बनाई थी। 1962 से सोलापुर निर्वाचन क्षेत्र में लगातार 8 बार कांग्रेस उम्मीदवार निर्वाचित हुए हैं। 1996 में बीजेपी उम्मीदवार लिंगराज वाल्याल ने कांग्रेस के इस जीत के रथ को रोका और जीत हासिल की। फिर 1998 में सुशील कुमार शिंदे ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाल दी। सुशील कुमार शिंदे इस सीट से तीन बार 1998, 1999 और 2009 में जीत चुके हैं। 2014 की मोदी लहर में सोलापुर लोकसभा क्षेत्र से बीजेपी के शरद बंसोडे ने जीत हासिल की थी।

सुशील कुमार शिंदे दो बार करना पड़ा हार का सामना 

अब सोलापुर के वर्तमान सांसद जयसिद्धेश्वर स्वामी हैं। उन्होंने 2019 में सुशील कुमार शिंदे को हराया था। उस समय प्रकाश आंबेडकर ने वंचित बहुजन आघाडी से सोलापुर से चुनाव भी लड़ा था। प्रकाश आंबेडकर  की वजह से सुशील कुमार शिंदे की हार हुई थी। तब ऐसी चर्चाएं होती थीं। 2014 में भी सुशील कुमार शिंदे यहां से हार गए थे। यानी पूर्व मुख्यमंत्री सुशील कुमार शिंदे को लगातार 2 बार सोलापुर लोकसभा में हार का सामना करना पड़ा है।

MVA की ओर से कांग्रेस की प्रणीति शिंदे को उम्मीदवार
 
इस बार महाविकास अघाड़ी की ओर से कांग्रेस की प्रणीति शिंदे को उम्मीदवार घोषित किया गया है। प्रणीति शिंदे के पास अपने पिता सुशील कुमार शिंदे की हार का बदला लेने का मौका है। कांग्रेस द्वारा प्रणीति शिंदे की उम्मीदवारी की घोषणा से पहले उनके बीजेपी में शामिल होने की चर्चाएं चल रही थीं। चर्चा थी कि सुशील कुमार शिंदे और प्रणीति शिंदे दोनों बीजेपी में शामिल होंगे। बीच में ये चर्चा तभी हुई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सोलापुर के दौरे पर थे। लेकिन प्रणीति शिंदे ने ये कहकर इन चर्चाओं पर विराम लगा दिया कि कांग्रेस मेरे खून में है। उसके बाद वहीं कांग्रेस के उम्मीदवार हैं।

महायुति से राम सातपुते मैदान में 

महायुति इस निर्वाचन क्षेत्र के लिए उम्मीदवार का परीक्षण कर रही थी। यह तय था कि महागठबंधन में यह सीट बीजेपी के पास होगी। लेकिन वास्तव में उम्मीदवार कौन होगा इसका इंतजार किया जा रहा था। इसकी वजह यह थी कि पार्टी बीजेपी के मौजूदा सांसद सिद्धेश्वरस्वामी से नाराज थी। साथ ही लोगों में उनको लेकर गुस्सा भी था। इसलिए यह तो साफ था कि उनका टिकट कटेगा, लेकिन दूसरा उम्मीदवार मिलने की बात सामने नहीं आ रही थी। आखिरकार बीजेपी ने महायुति से विधायक राम सातपुते को टिकट देने का ऐलान कर दिया है। इसलिए इस सीट पर प्रणीति शिंदे और राम सातुपुते के बीच मुकाबला देखने को मिलेगा।

कौन है राम सातपुते?

राम सातपुते भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और मालशिरस से मौजूदा विधायक हैं। राम सातपुते ने छात्र आंदोलन के माध्यम से राजनीतिक और सामाजिक क्षेत्र में प्रवेश किया। वे मूल रूप से बीड जिले के रहने वाले हैं। पिता गन्ना मजदूर थे। इसलिए उनका परिवार मालशिरास जैसी गन्ना बेल्ट में आ गया और यहीं बस गया। पुणे के फर्ग्यूसन कॉलेज में पढ़ाई के दौरान राम सातपुते अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से जुड़े। तब से उन्होंने छात्र संघ में सक्रिय रूप से काम किया। तब राहुल गांधी ने उनका समर्थन किया था। सातपुते को देवेन्द्र फड़णवीस का करीबी माना जाता है।

दिलचस्प हो सकती है सोलापूर की लड़ाई 

राम सातपुते के टिकट की घोषणा होते ही प्रणीति शिंदे ने एक पोस्ट किया। उस पोस्ट में उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला था कि राम सातपुते निर्वाचन क्षेत्र से बाहर हैं। इसके बाद सातपुते ने अपने प्रचार में कही बार कहा कि वे एक मजदूर के बेटे है, वे मुंह में सोने का चम्मच लेकर पैदा नहीं हुए। ऐसा माना जा रहा है कि इस बार सोलापूर की ये लड़ाई काफी दिलचस्प होने वाली है। पिछले दो चुनावों में सुशील कुमार शिंदे सोलापुर से हार गए थे। लेकिन इस बार वे अपनी बेटी चुनाव  दर्ज कराने के लिए मैदान में उतर गए हैं। उन्होंने प्रचार का भार अपने कंधों पर ले लिया है।
पिछले दो लोकसभा चुनावों पर नजर डालें तो सोलापुर लोकसभा का पेपर बीजेपी के लिए आसान रहा है। दोनों बार बीजेपी द्वारा नया उम्मीदवार उतारने के बावजूद उन्हें भारी सफलता मिली। बीजेपी ने इस साल भी नए उम्मीदवार की घोषणा की है। 

प्रणीति शिंदे और राम सातपुते दोनों युवा नेता हैं। दोनों की बोलने की कला अच्छी है। इसलिए सोलापुर लोकसभा चुनाव में कड़ा मुकाबला होने वाला है। बताया जा रहा है कि प्रणीति शिंदे ने पिछले कई दिनों से विधानसभा क्षेत्र का दौरा कर जनसंपर्क बढ़ा दिया है। लेकिन 2024 से पहले प्रणीति शिंदे ने शायद ही अपना विधानसभा क्षेत्र छोड़ा हो। सोलापुर जिले की राजनीति में उनका प्रभाव भी सीमित है।

विकास के मुद्दे पर ने उदासीनता

इस संसदीय क्षेत्र में विकास के मुद्दे पर नेताओं की लगातार उदासीनता बनी हुई है। उजनी बांध सोलापुर जिले में स्थित है। यह बांध सोलापुर के लोगों और कृषि की प्यास बुझाने के लिए बनाया गया था। लेकिन अभी भी सोलापुर शहर को सप्ताह में एक या दो बार ही पाइपलाइन से पानी मिलता है। उझानी बांध से पाइपलाइन के जरिए शहर में पानी की आपूर्ति की जाती है। समानांतर पाइपलाइनों का मुद्दा कई वर्षों से रुका हुआ है। उनका काम धीरे-धीरे चल रहा है। दूसरी ओर, यहां कोई बड़ा उद्योग और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व्यवस्था नहीं है। इसके साथ ही गुटीय राजनीति और राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी के कारण जिले के विकास में तेजी नहीं आ पा रही है। क्या प्रणीति शिंदे कभी अपने पिता सुशील कुमार शिंदे के प्रभाव वाले सोलापुर निर्वाचन क्षेत्र को वापस कांग्रेस में ले आएंगे? या फिर बीजेपी लिंगायत और पद्मशाल समाज के प्रभुत्व वाले निर्वाचन क्षेत्रों की परंपरा के अनुसार राम सातपुते का समर्थन करेगी? ये अब चुनाव के बाद ही पता चलेगा।