मुंबई में तेज धूप और वायु प्रदूषण से बीमार हो रहे बच्चे

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    मुंबई: खराब हवा की गुणवत्ता और तापमान में अचानक बदलाव के कारण पिछले दो सप्ताह से स्कूली बच्चों को बुखार, गले में खराश और आंखों में लालिमा के मामलों में जोरदार इजाफा हुआ है। बाल रोग विशेषज्ञ अपने बाह्य रोगी विभागों (OPD) में हर दिन ऐसे 70-80 मामले देख रहे हैं। चिंता की एक और बात यह है कि प्रभावित बच्चों (Childrens) को ठीक होने में एक सप्ताह से अधिक का समय लग रहा है। इसके अलावा कोई विशिष्ट उपचार नहीं है और पैरासिटामोल (Paracetamol) सिर्फ लक्षणों को कम करने में मदद करता है।

    विशेषज्ञों ने मामलों में वृद्धि के लिए एडेनोवायरस को जिम्मेदार ठहराया है, जो वयस्कों की तुलना में बच्चों को अधिक प्रभावित करता है। वर्तमान में लगभग 70 प्रतिशत बीमार बच्चे एडेनोवायरस के इन लक्षणों से ग्रसित हैं। इसके अलावा 5 से 15 आयु वर्ग के स्कूली बच्चे सबसे ज्यादा प्रभावित हैं।

     बीमार बच्चों को न भेजें स्कूल

    यदि लक्षण हों तो बच्चों को स्कूल न भेजना मददगार हो सकता है, क्योंकि संक्रमण अन्य बच्चों में फैल सकता है। यह बीमारी छींकने, खांसने और छूने से फैलता है, इसलिए संक्रमण को रोकने का सबसे अच्छा तरीका सामाजिक संपर्क से बचना है। यदि आप बिना हाथ धोए अपने मुंह, नाक, आंख और चेहरे को छूने से बचते हैं तब भी संक्रमण से बचा जा सकता है। 

    अधिक समय तक चलने वाली खांसी और फ्लू जैसे लक्षण 

    डॉ. एल एच हीरानंदानी अस्पताल, पवई के बाल रोग विशेषज्ञ डॉ संजीव आहूजा ने कहा कि इस समय अस्पताल में ऐसे मामले के बाल मरीज बहुत बड़ी संख्या में आ रहे हैं और उनमें से अधिकांश में दो सप्ताह या उससे अधिक समय तक चलने वाली खांसी और फ्लू जैसे लक्षण हैं। उन्होंने कहा कि इस बीमारी की भी विशेषताएं कोविड के समान हैं, डॉ अहूजा ने कहा कि बार-बार होने वाली सर्दी और खांसी वाले कई बच्चों को नेबुलाइजेशन और इनहेल्ड कॉर्टिकोस्टेरॉइड (एंटी-इंफ्लेमेटरी) उपचार की आवश्यकता होती है। भीड़भाड़, वायु प्रदूषण और मास्क न लगाने से यह रोग बढ़ रहा है।

    प्रदूषण में वृद्धि से फैलता है संक्रमण  

    एक निजी अस्पताल के बाल रोग विशेषज्ञ ने बताया कि अस्पताल में रोजाना 10-15 बच्चे एडेनोइड्स और टांसिलाइटिस की शिकायत से ग्रसित पाए जा रहे हैं। तापमान में गिरावट और प्रदूषण में वृद्धि संक्रमण के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है। अधिकांश बच्चों को बुखार के साथ या बिना गले में खराश, खांसी और जुकाम होता है। हम तीन साल से कम उम्र के बच्चों में साइनसाइटिस और हाइपरट्रॉफी के मामलों की तुलनात्मक रूप से अधिक संख्या भी देख रहे हैं। इस बीमारी के लिए बच्चों को ज्यादा दवा की जरूरत नहीं होती है, लेकिन अभिभावकों को याद रखना चाहिए कि ये दवाएं डॉक्टर की सलाह पर ही दी जानी चाहिए।