पीढ़ियों से बना रहे हैं रावण का पुतला, परंपरा सहेजने में मुस्लिम कारीगरों का योगदान

Loading

मुंबई: नफरत के बारूद पर भी अमन का फूल खिल सकता है बस ज़रुरत है एक प्रयास की। भारत उन्हीं प्रयासों का नाम है जिसने वैश्विक पटल पर विविधता में एकता की अपनी अनूठी पहचान बनाई है। हिन्दू त्योहारों में मुस्लिम कारीगरों (Muslim Artisans) का योगदान और मुस्लिम त्योहारों में हिन्दुओं की हिस्सेदारी इस देश की तहजीब को कायम रखे हुए हैं। हफीजुद्दीन एक ऐसा नाम है जो पीढ़ियों (Generations) से दशहरा (Dussehra 2023 ) पर रावण दहन के लिए रावण का पुतला (Effigy of Ravana) बना रहे हैं। उनका कहना है कि इस परंपरा को सहेजने की जिम्मेदारी अब उनकी नई पीढ़ी पर है।
 
रामलीला मंचन के आखिरी दिन भगवान राम के हाथों रावण का वध किया जाता है। उसके बाद रावण के विशाल पुतले का दहन कर बुराई पर अच्छाई की जीत का पर्व दशहरा मनाया जाता है। गिरगांव चौपाटी पर करीब 1 दर्जन कारीगर रावण के पुतले को बनाने का काम कर रहे हैं। ग्रेटर नोएडा, दादरी के रहने वाले हफीजुद्दीन का पुतला बनाने का पैतृक पेशा है। उनके इस कारोबार को अब उनका लड़का शेजाद संभाल रहा है। 
 
 
हफीजुद्दीन ने नवभारत को बताया कि वो मुंबई में 2008 से रावण का पुतला बना रहे हैं। उन्होंने कहा कि शहर में चल रहे कई राम लीला मंडलों को भी वे रावण का पुतला सप्लाई करते हैं। मुंबई में रावण के पुतले की ऊंचाई 50 फीट तक होती है। जबकि दिल्ली में रावण का पुतला 70 फीट ऊँचा तक बनाया जाता है। उनके द्वारा दिल्ली और हरियाणा के राम लीला मंडलों में भी रावण का पुतला बनाया जाता है। 
 
महंगाई के मार झेलते कारीगर 
रामलीला में धनुष, तीर, मेघनाथ और कुंभकर्ण के पुतले भी बनाए जाते हैं। हफीजुद्दीन ने बताया कि रावण के पुतले बनाने की सामग्री महंगी हो गई है। एक पुतले को बनाने में करीब 50 हजार रूपये का खर्च आता है। मेटेरियल में 40 से 50  प्रतिशत तक की बढ़ोत्तरी हो गयी है। पुतला बनाने में आने वाले सामान बांस, कागज, जुट, रस्सी, गोंद, पेंट, डिजाइन पेपर काफी मंहगे हो गए हैं। उन्होंने कहा कि रावण का पुतला बनाना उनका व्यवसायिक उद्देश्य है, इस परंपरा को सहेजने की जिम्मेदारी अब नई पीढ़ी पर है।