Book Shops

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गोरेगांव: हर दिन बढ़ रही खाने-पीने की चीजों की कीमतों से परेशान अभिभावकों (Parents) को अब बच्चों को स्कूल में एडमिशन (Admission to School) से लेकर कॉपी-किताब खरीदने की चिंता सताने लगी है। इस वर्ष कॉपी-किताबों के कीमतों में 30 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई हैं। वैसे तो स्कूल (School) 15 से 20 जून के बीच खुल जाएंगे, लेकिन पुस्तक की दुकानों (Book Shops) पर 1 जून से ही कॉपी-किताबों खरीदारी शुरू हो गई हैं। 

पुस्तक की दुकानों पर खरीदारों की भीड़ लगभग 20 जून तक बनी रहेगी। नोट बुक (Note Books) के आकार में काफी बदलाव हुआ है। पहली कक्षा से आठवीं कक्षा तक लिखने के लिए छोटे आकार के हार्डबॉन्ड नोट बुक के स्थान पर अब जंबो साइज के नोट बुक की डिमांड अधिक है। 

कॉलेज के विद्यार्थियों में ए4 लांग बुक की अधिक मांग 

कॉलेज के विद्यार्थियों में लांग बुक की जगह ए4 लांग बुक 172 पेज के नोट बुक की अधिक मांग है। कई इंटरनेशनल स्कूलों में डिजिटल एजुकेशन हो रहा है, इसके बावजूद नोटबुक की डिमांड में कोई कमी नहीं आई है। कोरोना महामारी के दौरान मोबाइल, टैब पर पढ़ाई कर रहे विद्यार्थी अब फिर से नोट बुक पर लिखने लगे हैं।

 व्यवसाय में हुआ तेजी से बदलाव

नोटबुक विक्रेताओं ने बताया कि इस व्यवसाय में अब तेजी से बदलाव हुआ है, पहले रिजल्ट आने के बाद ही अभिभावक बच्चों के साथ दुकानों से वर्ष भर की कॉपी किताब खरीदते थे, लेकिन अब जितनी जरूरत हो उतनी की खरीदारी करते हैं। वहीं, दुकानदार भी 15 दिनों का ही कॉपी किताबों का स्टॉक में रखता है। नोट बुक के व्यवसाय में नवनीत, सुंदरम, क्लासमेट के अलावा सेलो, सेलपेज के आकर्षक नोटबुक बाजार में उपलब्ध हैं। बाजार में परिवर्तन को देखते हुए नवनीत एजुकेशन लिमिटिड ने युवा ब्रांड से पेपर स्टेशनरी में लांग बुक, नोट बुक, ड्राइंग बुक, प्रैक्टिकल बुक आदि सहित स्टेशनरी सामग्री को बाजार में उतारा है।

बस्ते का बोझ कम होगा

बीएमसी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को इस सत्र में बस्ते के बोझ से राहत मिलेगी। इस बार बालभारती के 4 सेट बनाए गए हैं। एक सेट में सभी विषय होंगे, इसके बीच में लिखने के लिए पन्नों को भी जोड़ा गया है। जून से नवंबर पहले सत्र में दो खंड पढ़ाया जाएगा, जबकि नवंबर से ग्रीष्मावकाश से पूर्व शेष दो खंडों को पढ़ाया जाएगा। बीएमसी के स्कूलों में विद्यार्थियों को निःशुल्क बांटने वाली 27 सामान कॉपी-किताब, ड्रेस, बस्ता आदि सभी स्कूलों में आ गया है।

पहले पेपर 80 प्रति रुपए किलो था, अब 120 प्रति रुपए किलो हो गया है। लेबर कास्ट भी बढ़ गया है। हम नोटबुक बनाने के लिए मैन्युफैक्चरर से ए ग्रेड का पेपर लेते हैं। महंगाई का असर है, इसके बावजूद पब्लिक को अच्छी क्वालिटी चाहिए।

-मनोहर समालेटी, सीनियर एरिया सेल्स मैनेजर, नवनीत एजुकेशन लि. स्टेशनरी विभाग

मोदी सरकार के कार्यकाल में शिक्षा व्यवस्था तहस-नहस हो गई है। बच्चों को मुफ्त में शिक्षा देने का भाजपा का नारा झूठा साबित हुआ है। इस मंहगाई के जमाने में कोई अभिभावक अपने बच्चों को 12वीं तक पढ़ा लें तो यहीं बड़ी बात होगी।

-राघवेंद्र शुक्ल, अभिभावक

रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था करने में ही लोग परेशान हैं। बच्चों को स्कूल में एडमिशन दिलाने में काफी पैसा खर्च हो जाता है। बच्चों को पढ़ाने में बड़ी पूंजी लगती है। गरीब परिवारों के लिए निजी स्कूल में बच्चों को पढ़ाना किसी सपने से कम नहीं है।

-रेखा विश्वकर्मा, गृहणी