Supreme Court
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नागपुर. राज्य में सत्ता परिवर्तन होते ही नई सरकार द्वारा तत्कालीन सरकार द्वारा मंजूर किए गए काम तथा टेंडर्स पर सिरे से रोक लगा दी गई. इसका प्रभाव विशेष रूप से विपक्षी दलों के विधानसभा क्षेत्रों के विकास पर पड़ा, इस देखते हुए एक के बाद एक कई विधायकों ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. बुधवार को विधायक यशोमति ठाकुर की याचिका पर सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने अदालत को बताया कि औरंगाबाद बेंच द्वारा एक मामले में दिए गए आदेश के आधार पर विधायकों को भले ही अंतरिम राहत मिल रही हो लेकिन इस आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने का सरकार का इरादा है.

सुनवाई के बाद न्यायाधीश अतुल चांदूरकर और न्यायाधीश एमडब्ल्यू चांदवानी ने चूंकि याचिकाकर्ता को राहत जारी है, अत: 4 सप्ताह तक सुनवाई स्थगित कर दी. साथ ही इस बीच किसी तरह की आपत्ति होने पर हाई कोर्ट आने की अनुमति दी. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. एनबी किरताने और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील निवेदिता मेहता ने पैरवी की. 

PWD सचिव ने भेजा पत्र

उल्लेखनीय है कि पीडब्ल्यूडी विभाग द्वारा विकास कार्यों पर रोक लगाने के आदेश दिए गए थे. औरंगाबाद बेंच ने इस आदेश को ही खारिज कर दिया था. बुधवार को सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि पीडब्ल्यूडी विभाग के सचिव की ओर से उन्हें पत्र भेजा गया है जिसमें विभाग ने उक्त जानकारी उजागर की है. उल्लेखनीय है कि विधायक नितिन राऊत, सुनील केदार, विजय वड्डेटीवार, प्रतिभा धानोरकर, राजेन्द्र शिंगने, सुभाष धोटे, जिप सदस्य सलिल देशमुख सहित कई लोगों द्वारा दायर याचिका पर अलग-अलग तो सुनवाई हुई है किंतु सभी को हाई कोर्ट की ओर से राहत प्रदान की गई है. 

‘जैसे थे’ के आदेश

विधायकों की ओर से पैरवी कर रहे वकीलों का मानना था कि 31 मार्च को वित्तीय वर्ष समाप्त हो गया है. राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को देखते हुए मंजूर निधि खर्च नहीं की जा सकी है. हालांकि हाई कोर्ट ने गत समय ही जिन कामों के कार्यादेश जारी कर दिए गए, उन प्रकल्पों की स्थिति ‘जैसे थे’ रखने के आदेश दिए हैं. इसके अलावा जिन प्रकल्पों की टेंडर्स प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई है, कोर्ट की अनुमति के बिना उन्हें रद्द नहीं करने के भी आदेश राज्य सरकार को दिए गए हैं.

याचिका में बताया गया कि गत सरकार के कार्यकाल में उनके चुनाव क्षेत्र के लिए विभिन्न विकास कार्यों को मंजूरी प्रदान की गई. वित्तीय प्रावधान किए जाने के बाद उनके लिए न केवल टेंडर निकाला गए बल्कि संबंधित कामों को अंजाम देने वाली कंपनियों को वर्क ऑर्डर भी जारी किया गया किंतु जैसे ही राज्य में सत्ता बदली, नई सरकार ने बिना किसी कारण एक सिरे से पुरानी सरकार द्वारा मंजूर सभी कामों पर रोक लगा दी.