Nagpur High Court
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    नागपुर. सीआरपीएफ में हवलदार के पद पर रहने के बाद लंबे समय तक अवकाश पर होने से विभाग की ओर से कार्रवाई की गई. इस कार्रवाई को चुनौती देते हुए याचिका भी दायर की गई. विरोध में फैसला होने के बाद इसे चुनौती दी जा सकती थी किंतु चुनौती देने के लिए 14 वर्ष से अधिक का समय बीत जाने का हवाला देते हुए न्यायाधीश अतुल चांदुरकर और न्यायाधीश उर्मिला जोशी ने इतने लंबे समय की देरी को स्वीकार करने से साफ इनकार कर याचिका खारिज कर दी. दादाराव गवई ने याचिका दायर की थी जिसमें जम्मू और कश्मीर के विशेष डीजी को प्रतिवादी बनाया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता एन.एस. वरुलकर ने पैरवी की.

    2004 से अवकाश, नहीं हुई वापसी

    सुनवाई के बाद अदालत ने आदेश में कहा कि 1 फरवरी 1979 को याचिकाकर्ता को सीआरपीएफ में बतौर कांस्टेबल नियुक्त किया गया था. लगभग 23 वर्षों की नौकरी के बाद उसे कांस्टेबल से हवलदार बनाया गया. इसके बाद याचिकाकर्ता ने 14 जून 2004 से 10 जुलाई 2004 तक अर्जित अवकाश की छुट्टी प्राप्त की. अर्जित अवकाश का समय खत्म होने के बावजूद नौकरी पर उसने वापसी नहीं की. गैरकानूनी ढंग से छुट्टियों पर होने के कारण सीआरपीएफ ने उसके खिलाफ जांच शुरू कर दी. छानबीन करने के बाद सीआरपीएफ ने उसे वर्ष 2005 में नौकरी से बर्खास्त कर दिया. 

    बर्खास्तगी के बाद नोटिस और चार्जशीट

    सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से अदालत को बताया गया कि 14 नवंबर 2005 को बर्खास्त करने के बाद उसे कारण बताओ नोटिस और चार्जशीट दी गई. इसके खिलाफ अपील दायर करने के लिए हुई देरी को स्वीकृत करने की अर्जी भी दायर की गई लेकिन 11 जुलाई 2007 को अपील दायर करने के लिए निर्धारित नियमों के अनुसार आवश्यकता से अधिक समय बीत जाने का हवाला देते हुए खारिज कर दिया.

    सेंट्रल रिजर्व पुलिस फोर्स रूल्स 1955 की धारा 25 के तहत इसके खिलाफ पुनर्विचार अर्जी दायर की गई लेकिन इसमें याचिकाकर्ता को 14 वर्ष और 3 माह का समय लग गया. इसकी वजह से 18 फरवरी 2022 को पुनर्विचार अर्जी भी खारिज की गई. 8 जून 2022 को पुन: पुनर्विचार अर्जी दायर हुई. पुनर्विचार अर्जी दायर करने के लिए इतना लंबा समय क्यों लगा, इस संदर्भ में याचिकाकर्ता की ओर से कोई भी संतोषजनक जवाब नहीं दिया गया. लिहाजा अदालत ने राहत देने से साफ इनकार कर दिया.