Ramdas Athawale
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    नागपुर. ‘शुरुआत में वर्ण व्यवस्था काम पर आधारित थी जो बाद में जन्म आधारित हो गई. इसी वजह से डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर को वर्ण व्यवस्था की विषमता को खत्म करना था, उन्हें हिन्दू धर्म मजबूत करना था. डॉ. बाबासाहब आम्बेडकर पर बहुत अन्याय हुआ जिससे इच्छा के विपरीत उन्होंने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली.’ यह अफलातूनी दावा रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आठवले) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय सामाजिक न्याय मंत्री रामदास आठवले ने पत्र-परिषद में किया.

    धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस कार्यक्रम में शामिल होने पहुंचे आठवले ने कहा कि डॉ. आम्बेडकर को वर्ण व्यवस्था मान्य नहीं थी. दलितों को मंदिरों में प्रवेश वर्जित था. गांव के कुओं से पानी लेने पर पाबंदी थी. इस तरह की कई कड़ी पाबंदियां थीं. इसी वजह से उन्होंने धर्मांतरण करने का निर्णय लिया था. किंतु धर्मांतरण के कारण हिन्दू धर्म का नुकसान न हो, इसलिए उन्होंने ऐसा ही धर्म चुना. इसके बाद 14 अक्टूबर 1956 को अशोका विजयादशमी के दिन बौद्ध धम्म स्वीकारे जाने की जानकारी उन्होंने दी.

    भाजपा को करेंगे मजबूत

    पत्र-परिषद में एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि राज्य मंत्रिमंडल विस्तार में रिपाई को एक मंत्री पद और एक विधान परिषद की जगह मांगी गई है. मुंबई महानगरपालिका के चुनाव में भाजपा, शिंदे गुट और रिपाई की महायुति होगी. इसी महायुति को जीत मिलेगी. इसके लिए राज ठाकरे की भी जरूरत नहीं है. उन्होंने कहा कि रिपब्लिकन पार्टी के अलग-अलग गुटों को एकजुट करने का प्रयास चल रहा है. प्रकाश आम्बेडकर, प्रा. जोगेन्द्र कवाडे, डॉ. राजेन्द्र गवई ने एक साथ आना चाहिए. एकजुटता के बाद भाजपा को मजबूत करेंगे. युति के माध्यम से 3 मंत्री पद प्राप्त किए जा सकेंगे. दीक्षाभूमि को आश्वासित निधि दिलाने का प्रयास करने की जानकारी भी उन्होंने दी. पत्र-परिषद में भूपेश थूलकर, बालु घरडे, विनोद थूल, राजन वाघमारे उपस्थित थे. 

    सत्ता के लिए राजनीति

    आठवले ने स्पष्ट किया कि रिपाई एकजुट होने पर उसकी ताकत बढ़ सकती है लेकिन उसे कभी सत्ता हासिल नहीं हो सकती है. सत्ता के लिए उसे अन्य दलों का साथ लेना होगा. रिपाई एकजुट होकर यदि भाजपा के साथ जाती है तो उसे सत्ता में भागीदारी मिल सकेगी. इसके अलावा भी सत्ता पाने के लिए ही राजनीति करने का ठोस मानस भी उन्होंने जताया. रिपाई की एकजुटता का राग आलापते हुए उन्होंने प्रकाश आम्बेडकर को अध्यक्ष और स्वयं के लिए मंत्री पद पाने की इच्छा भी जताई.