Nagpur High Court
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    नागपुर. जिला परिषद में ठेकेदारों द्वारा एफडी घोटाला किए जाने का मामला उजागर हुआ है. जिसमें गिरफ्तारी से बचने के उद्देश्य से अंतरिम जमानत के लिए 4 ठेकेदारों की ओर से याचिकाएं दायर की गई. याचिकाओं पर लंबी सुनवाई के दौरान सरकारी पक्ष की ओर से पूरजोर विरोध किए जाने के बाद न्यायाधीश अनिल किल्लोर ने ठेकेदारों को जमानत देने से साफ इनकार कर याचिकाएं ठुकरा दीं.

    याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अनिल मार्डिकर, अधि. अनिल धवड, राज्य सरकार की ओर से अधि. वी.ए. ठाकरे, जिला परिषद की ओर से अधि. पी.के. सत्यनाथन ने पैरवी की. मंजूषा कुसुमकर पाटिल, रोशन पंजाबराव पाटिल, पंजाबराव पाटिल, कंचन पंजाबराव पाटिल ने याचिकाएं दायर की थीं.

    काम पूरा होने से पहले बदली एफडी

    अभियोजन पक्ष के अनुसार जिला परिषद में इन ठेकेदारों की ओर से कई ठेले प्राप्त किए थे. कुछ मामलों में इन ठेकेदारों ने काम पूरा होने से पहले ही परफार्मेन्स डिपॉजिट और सिक्योरिटी डिपॉजिट निकाल ली. कुछ मामलों में काम तो पूरा किया लेकिन टेंडर की शर्तों के अनुसार दायित्व काल (डिफेक्ट लाइबिलिटी समय) से पहले ही उक्त निधि निकाल ली. इन याचिकाकर्ताओं पर यह भी आरोप है कि इन्होंने मूल फिक्स  डिपॉजिट  निकालकर उसके बदले मूल फिक्स  डिपॉजिट  की जेराक्स विभाग के दस्तावेजों में रख ली. जिसके बाद जिला परिषद में जमा फिक्स  डिपॉजिट  आदि की रकम निकाल ली.

    इस संदर्भ में मामला उजागर होने के बाद जिला परिषद की ओर से शिकायत दर्ज कराई गई. बचाव पक्ष की ओर से बताया गया कि राज्य सरकार की ओर से अधिसूचना जारी की गई थी. जिसके अनुसार 50 प्रतिशत काम पूरा होने पर एफडी निकालने की स्वतंत्रता प्रदान की गई है. यहां तक कि इस तरह का विवाद होने पर टेंडर की शर्तों के अनुसार शिकायत दर्ज करने के बदले आर्बिट्रेशन की प्रक्रिया करने का विकल्प है. 

    68 लाख रु. पहले ही कर दिए जमा

    बचाव पक्ष की ओर से अदालत को बताया गया कि मंत्री से संबंधित विवाद नहीं था. इसके बावजूद मसले को मंत्री के समक्ष रखा गया था. जिसके बाद बिना छानबीन जिला परिषद की ओर से पुलिस में शिकायत दर्ज कराई गई. पुलिस ने भी अपराध को लेकर सर्वप्रथम जांच करने का सुझाव दिया था. किंतु इसके विपरीत याचिकाकर्ताओं को झूठा फंसाया गया है. बचाव पक्ष का मानना था कि कोर्ट की ओर से अंतरिम जमानत देते समय दिए गए आदेशों के अनुसार 68 लाख रु. जमा किए गए, यहां तक कि ओरिजनल एफडी अब पुलिस के पास है. अत: अंतरिम जमानत पर मुहर लगाने का अनुरोध किया गया. सुनवाई के बाद अदालत ने अंतरिम जमानत पर मुहर लगाने से इनकार कर याचिकाएं ठुकरा दी. 

    विभाग में मदद के बिना संभव नहीं

    दोनों पक्षों को सुनने के बाद अदालत का मानना था कि विभाग के किसी कर्मचारी की मदद के बिना ओरिजनल एफडी निकालकर उसके बदले जेराक्स रख पाना याचिकाकर्ताओं के लिए संभव नही है. अत: इस धोखाधड़ी में कौन शामिल है, इसका खुलासा करने के लिए याचिकाकर्ताओं को पुलिस हिरासत में देना जरूरी है. अदालत ने आदेश में कहा कि याचिकाकर्ता मंजूषा पाटिल ने हाल ही में बच्चे को जन्म दिया है. इसके अलावा अन्य याचिकाकर्ता कंचन पाटिल की उम्र काफी अधिक है. जिससे सहानुभूति के आधार पर इन दोनों की अंतरिम जमानत पर मुहर लगाई गई.