Nagpur High Court
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  • पूर्व इंचार्ज को हाई कोर्ट से राहत, निचली अदालत का फैसला खारिज

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नागपुर. गोसीखुर्द प्रकल्प में कामों को मंजूरी देते समय हुई प्रशासकीय गलतियों के लिए विभाग की ओर से विभागीय जांच की गई. इसी जांच रिपोर्ट के आधार पर पूरे मामले में आरोपी करार दिया गया. निचली अदालत में मामले से बरी करने के लिए दायर अर्जी के समय निर्दोषता के पूरे तथ्य पेश किए गए किंतु निचली अदालत से राहत नहीं दी गई. निचली अदालत के आदेश को चुनौती देते हुए गोसीखुर्द के पूर्व इंचार्ज संजय खोलापुरकर ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

इस पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश रोहित देव ने न केवल निचली अदालत का फैसला रद्द कर दिया, बल्कि याचिकाकर्ता को आरोपों से मुक्त कर दिया. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. श्याम देवानी और सरकार की ओर से सहायक सरकारी वकील कल्याणी देशपांडे ने पैरवी की. याचिकाकर्ता का मानना था कि सीआरपीसी की धारा 173 के तहत जो रिपोर्ट पेश की गई उसमें भी आपराधिक गतिविधियां नहीं, बल्कि प्रशासकीय खामियां दर्शाई गईं.

दायित्व निभाने में असफल रहा याचिकाकर्ता

सरकार की ओर से प्रखर विरोध करते हुए बताया गया कि याचिकाकर्ता अधीक्षक अभियंता के तौर पर गोसीखुर्द प्रकल्प का इंचार्ज रहा है. नियमों के अनुसार नियम और प्रक्रिया का पालन करने की जिम्मेदारी थी किंतु दायित्व निभाने में असफल रहा है. अधिकारों के बाहर जाकर याचिकाकर्ता ने प्रकल्प के कामों की कीमत बढ़ा दी.

वीआईडीसी की कमेटी को कार्य की कीमत 5 प्रतिशत तक ही बढ़ाने के अधिकार है, जबकि 8.6 प्रतिशत कीमत बढ़ाने का निर्णय लिया गया. फलस्वरूप टेंडर की कीमत 3.33 करोड़ तक बढ़ गई. निचली अदालत में विशेष न्यायाधीश याचिकाकर्ता की दलीलों से सहमत नहीं थे. यही कारण है कि 17 नवंबर 2018 को अर्जी ठुकरा दी. सरकार की दलीलों का विरोध करते हुए याचिकाकर्ता की ओर से सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय द्वारा दिए गए कई फैसलों का हवाला दिया गया. 

याचिकाकर्ता को लाभ या राजस्व नुकसान के तथ्य नहीं

सुनवाई के दौरान सरकारी वकील ने कहा कि विशेष न्यायाधीश द्वारा आरोप तय करते समय बचाव पक्ष की दलीलों या मिनी ट्रायल चलाया जाना संभव ही नहीं था. सुनवाई के दौरान चार्जशीट में याचिकाकर्ता की कार्यप्रणाली के चलते राजस्व के नुकसान या याचिकाकर्ता को लाभ पहुंचने का कोई तथ्य उजागर नहीं हुए जिसका सरकारी पक्ष की ओर से विरोध भी नहीं किया गया. अदालत ने आदेश में कहा कि विभागीय जांच की अंतिम रिपोर्ट में 3.33 करोड़ रु. से काम की कीमत बढ़ाने के लिए याचिकाकर्ता पर गैरकृत्य किए जाने के आरोप लगाए गए. यदि दस्तावेजों को खंगाला जाए तो नियमों के अनुसार जुर्म साबित करने के लिए पुख्ता दस्तावेज और तथ्य उपलब्ध नहीं हैं जिससे अदालत ने सदर पुलिस थाना में दर्ज मामले से आरोपी को बरी कर दिया. साथ ही विशेष अदालत के आदेश को खारिज भी कर दिया.