Nagpur High Court
File Photo

    Loading

    नागपुर. डॉक्टर की लापरवाही के चलते नवजात की चंद मिनटों में ही हुई मौत के पुख्ता सबूत होने के बावजूद कार्रवाई नहीं होने पर पीड़ित नितिन कुमार गायकवाड़ ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. याचिका पर सुनवाई के बाद न्यायाधीश सुनील शुक्रे और न्यायाधीश एमडब्ल्यू चांदवानी ने राज्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल (एमएमसी), मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) और डॉ. गणेश महाले को नोटिस जारी कर जवाब दायर करने के आदेश दिए. याचिकाकर्ता की ओर से अधि. फिरदौस मिर्जा और सरकार की ओर से अतिरिक्त सरकारी वकील केतकी जोशी ने पैरवी की. सुनवाई के दौरान अधि. मिर्जा ने कहा कि डॉ. महाले द्वारा संचालित मैटरनिटी होम एंड अस्पताल में गायकवाड़ ने पत्नी को भर्ती कराया था जहां बच्चे को जन्म देने के एक मिनट में ही उसकी मृत्यु हो गई. इसमें पूरी तरह से डॉक्टर की गलती है.

    मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट में खुलासा

    अधि. मिर्जा ने कहा कि मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट में डॉक्टर की लापरवाही का खुलासा पहले ही हो चुका है. सुप्रीम कोर्ट में एक मामले में मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी का गठन किया गया था जिसकी रिपोर्ट में ऐसे समय होने वाली कार्रवाई का भी उल्लेख किया गया है. चूंकि इस मामले में भी डॉक्टर की लापरवाही उजागर हो रही है तो रिपोर्ट के अनुसार इसके परिणामों की जानकारी भी अदालत को दी गई. अधि. मिर्जा ने कहा कि कमेटी द्वारा खामियां निकाली गईं लेकिन 24 मई 2018 को सिविल सर्जन द्वारा भेजे गए पत्र में बच्चे की मृत्यु से संबंध का सीधा इनकार किया गया. यहां तक कि महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल ने अपने रिकॉर्ड में इसे दर्ज तक नहीं किया.

    एमएमसी का विरोधाभासी आदेश

    अधि. मिर्जा ने कहा कि मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी की रिपोर्ट के ठीक विपरीत गलत तरीके से महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल, मुंबई के आदेश हैं. मेडिकल एक्सपर्ट कमेटी के अनुसार डॉ. गणेश महाले ने सजगता से इंट्रापार्टम मॉनिटरिंग नहीं की थी. यही कारण है कि फिटल हायपोक्सिया से नवजात की तुरंत मृत्यु हो गई है. यहां तक कि लेबर रूम के नवजात केअर कॉर्नर में न्यूओनैटल रिस्साइटेशन की सुविधा भी उपलब्ध नहीं थी. इसी तरह से हाई-रिस्क डिलीवरी  के दौरान अति आवश्यक अतिरिक्त पेडियाट्रिशियन भी उपलब्ध नहीं थी. जब कोई परेशानी खड़ी होती है, ऐसे समय इस तरह की सुविधा आवश्यक होती है. पेडियाट्रिशियन होने पर वह स्वयं के नियोनेटल रिससिटेशन किट का उपयोग कर करती है. महाराष्ट्र मेडिकल काउसिल रूल्स-1967 के नियम 62 और 71 (बी) का उल्लंघन करते हुए आदेश जारी किया गया है, जबकि कई तरह की लापरवाही के कई पुख्ता सबूत उपलब्ध हैं. सुनवाई के बाद अदालत ने उक्त आदेश जारी किए.