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    नागपुर. जंगल में शिकार की घटनाएं लगातार बढ़ती जा रही है. शिकारियों के हौसले कितने बुलंद हैं, इसका अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि पेंच जैसे नेशनल टाइगर रिजर्व में भी शिकार की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है. विदर्भ के जंगलों से बाघ, तेंदुआ के अलावा हिरण, नीलगाय, जंगली सुअर, खरगोश, सांप आदि वन्य प्राणियों और उनके अवयवों की तस्करी बड़े पैमाने पर हो रही है.

    इन तस्करों के तार नेशनल और इंटरनेशनल तस्कर गिरोहों से जुड़े हुए हैं. नागपुर जिले से सटते मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के जिलों के लोग भी शिकार की घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं. वन विभाग के अधिकारियों का कहना है कि मुखबिर तंत्र के कमजोर होने के कारण शिकारियों पर नकेल कसना मुश्किल हो रहा है. 

    कितना मिलता है सीक्रेट फंड 

    प्रदेश सरकार की तरफ से पेड़ों की अवैध कटाई, वन्य प्राणियों के शिकार आदि गतिविधियों पर रोक लगाने के उद्देश्य से वन विभाग के अधिकारियों के लिए सीक्रेट फंड का प्रावधान किया गया है. इस राशि से विभागीय अधिकारी अपने मुखबिरों से सूचनाएं प्राप्त करते हैं और आरोपियों को पकड़ने में कामयाब होते हैं. वर्ष 2013 के शासनादेश के अनुसार, वन परिक्षेत्र अधिकारी को 1000 रुपए, उपवनसंरक्षक को 2000 रुपए, मुख्य वनसंरक्षक को 3000 रुपए तथा प्रधान मुख्य वनसंरक्षक और सचिव को 5000 रुपए तक का सीक्रेट फंड दिया जाता है.

    मुखबिरों की जान को खतरा  

     दरअसल, जिन अपराधियों के बारे में सूचनाएं मुखबिर देता है, वे उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं. कई बार आरोपी जंगल के आसपास के गांवों के ही होते हैं. ऐसे में गांव वालों से ही दुश्मनी हो जाती है. इस प्रकार सिर्फ 1000 या 500 रुपए के लिए कोई अपनी जान को जोखिम में डालना नहीं चाहता है. 

    जटिल प्रक्रिया से परेशानी 

    शिकारियों को पकड़ने के लिए वन परिक्षेत्र अधिकारी ही कार्रवाई करते हैं. यदि किसी वारदात के खुलासे के लिए 1000 रुपए से अधिक खर्च होने की संभावना है तो उसके लिए संबंधित वन परिक्षेत्र अधिकारी को अपने आलाधिकारियों से मंजूरी लेनी होगी. वहां से मंजूरी मिलने के बाद ही अधिकारी मुखबिरों को राशि दे सकता है. इस प्रक्रिया में महीनों का समय लग जाता है. जबकि वारदात के बाद आरोपियों को पकड़ने के लिए तत्काल मुखबिरों को सक्रिय करने की जरूरत होती है.

    वन विभाग से जुड़े जानकारों का कहना है कि बाहर के आरोपियों को पकड़ने के लिए प्राइवेट वाहनों से मुखबिरों को भेजना पड़ता है. उनके खाने-पीने और रुकने का खर्च भी वहन करना पड़ता है. आरोपियों को पकड़ने के बाद उनसे पूछताछ होती है. उस दौरान उसे भी भोजन आदि की व्यवस्था करनी होती है. महंगाई के दौर में इसके लिए हजारों रुपए खर्च करने पड़ते हैं. भारी भरकम खर्च और जटिल प्रक्रिया के चलते ही आमतौर पर वन अधिकारी शिकारियों के खिलाफ कार्रवाई करने से परहेज करते हैं. 

    सीक्रेट फंड बढ़ाने की जरूरत

    वन विभाग के अधिकारियों का मानना है कि शिकारियों पर अंकुश लगाने के लिए मुखबिर तंत्र को मजबूत करने की आवश्यकता है. इसके लिए शासनादेश में बदलाव करते हुए वन अधिकारियों के सीक्रेट फंड को बढ़ाया जाना चाहिए. वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 के शेड्यूल के अनुसार श्रेणी 1 एवं 2 के वन्य प्राणियों के लिए 10,000 रुपए तथा श्रेणी 3 ओर 4 के वन्य प्राणियों के लिए 5000 रुपए तक खर्च करने का अधिकार वन परिक्षेत्र अधिकारियों को दिया जाना चाहिए. मुखबिरों की इनाम राशि बढ़ने से वे जोखिम लेने के लिए तैयार होंगे.   

    डेढ़ साल में 150 से अधिक आरोपी गिरफ्तार

    शिकार की बढ़ती घटनाओं को रोकने के लिए जुलाई 2021 में नागपुर में एंटी पोर्चिंग स्क्वाड का गठन किया गया. इस टीम ने डेढ़ साल में ही 32 प्रकरणों में 150 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार करने में सफलता पाई है. इन आंकड़ों के मद्देनजर विदर्भ में शिकारियों का बड़ा नेटवर्क फैले होने की आशंका जताई जा रही है. इनके खिलाफ सख्त अभियान चलाने के लिए मुखबिरों के नेटवर्क का मजबूत होना बेहद जरूरी है.