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नागपुर. मिहान को भी जमीन माफियाओं की नजर लग गई है. कैग ने भी कई कंपनियों के जमीन आबंटन पर सवाल उठा दिए हैं. अगर ये जमीन वापस लेकर इच्छुक लोगों को दी जाए तो निश्चित रूप से मिहान प्रगतिपथ पर आगे बढ़ेगा लेकिन ऐेसा करने के लिए अधिकारियों की इच्छाशक्ति ही नहीं दिखाई दे रही है. इसका मुख्य कारण यह है कि मिहान को लेकर अधिकांश नेतागण ‘चुप्पी’ साध लिए हैं. 

नेताओं की चुप्पी के कारण ही मिहान का यह हश्र हो रहा है. लोग 10-10 वर्षों से जमीन लेकर बैठे हैं और आश्चर्य कि कोई कार्रवाई तक नहीं होती है. मिलीभगत का इससे जीता जागता उदाहरण देखने को नहीं मिल सकता है. आश्चर्य इस बात का भी है कि इन कंपनियों को इकाई शुरू करने के लिए भी कोई पहल नहीं की जा रही है. यही कारण है कि 100-100 एकड़ जमीन लेकर कंपनियां बैठ गई हैं. नेतागण बातें करते हैं लेकिन स्पष्ट निर्देश का अभाव होता है. इसके कारण अधिकारी भी कोई कदम उठाने से बचते रहते हैं. बूटीबोरी का हश्र किसी से छिपा नहीं है. मिहान को पिछले 25 वर्षों में जितना विकास करना था, हो नहीं पाया है. यह जगजाहिर है. कुछ कंपनियों के दम पर हम उछल रहे हैं. 

CM ने किया था उद्घाटन, अब तक नहीं आई कंपनी

विकास आयुक्त द्वारा जिन कंपनियों का एलओए (लेटर ऑफ एलाटमेंट) कैंसल किया गया है उस सूची में इंडो यूको भी शामिल है. कंपनी के पास 135 एकड़ भूखंड है. तब यह दावा किया गया था कि कंपनी स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में भारी बदलाव लाएगी. तब के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इस प्रोजेक्ट का भूमिपूजन किया था. आश्चर्य की बात है कि सीएम के हाथों उद्घाटन होने के बाद भी कंपनी ने निवेश के प्रति इच्छा नहीं जताई. आज तक प्रोजेक्ट परवान नहीं चढ़ पाया और अब एलओए रद्द कर दिया गया है. इसी से प्रोजेक्ट के प्रति गंभीरता का अंदाज लगाया जा सकता है. इस प्रोजेक्ट पर 500 करोड़ से अधिक का निवेश प्रस्तावित था परंतु अब तक पूरा परिसर खाली पड़ा हुआ है. इस भूमिका का सकारात्मक उपयोग नहीं हो पा रहा है. 

डिफेंस क्लस्टर भी कागजों पर 

इसी प्रकार मिहान में डिफेंस कलस्टर बनाने की भी योजना थी. तल्कालीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के कार्यकाल में 35 एकड़ जमीन का आबंटन हुआ था. यहां पर भी ‘बड़े-बड़े’ झाड़ देखे जा सकते हैं. भले ही कंपनी का एलओए रद्द न किया गया हो लेकिन इसका न तो निवेश पर कोई असर पड़ा और न ही किसी को रोजगार मिला. संचालकों ने दावा किया था कि कई करार किए गए हैं और स्थानीय लोगों को प्रशिक्षण दिया जाएगा. परंतु अब तक यह प्रोजेक्ट भी कागजों पर है. संचालक कई कार्यक्रमों में इस प्रोजेक्ट की बखान करते हैं परंतु इस भूखंड में क्या आया और क्या लाभ नागपुर को पहुंचाया गया है, इस पर कुछ भी नहीं कहते हैं. इस ओर भी किसी का ध्यान नहीं जा रह है. 

कैसे बढ़ेगा निवेश और रोजगार

सवाल यही उठता है कि इस प्रकार के एप्रोच से मिहान या नागपुर का भला कैसे हो सकता है. लोग केवल जमीन लेकर रफूचक्कर हो जाते हैं. न तो निवेश आता है और न ही रोजगार का सृजन होता है. भाषणों में बड़े-बड़े दावे किए जाते हैं परंतु वास्तविकता कुछ और रहती है. ऐेसे में अब मिहान को लेकर गंभीर प्रयास करने की जरूरत महसूस होने लगी है.