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    नागपुर. केंद्र सरकार द्वारा टीबी के खात्मे के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कार्यक्रम चलाया जा रहा है. स्वास्थ्य विभाग हर वर्ष लाखों रुपये खर्च करता है. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में हर दिन मरीजों की जांच की जाती है लेकिन सुविधाओं का अभाव अब भी बना हुआ है. टीबी, फेफड़े व श्वसन विकार का एक ही छत के नीचे उपचार के उद्देश्य से लंग रिसर्च इंस्टीट्यूट का प्रस्ताव सरकार को भेजा गया था लेकिन अब तक प्रस्ताव ठंडे बस्ते में ही पड़ा है. इस बीच राज्य में सत्ता परिवर्तन भी हो गया लेकिन प्रस्ताव को गति नहीं मिल सकी. राज्य के अन्य भागों की तुलना में सर्वाधिक यानी करीब १४ औष्णिक विद्युत प्रकल्प अकेले विदर्भ में है.

    विशेषज्ञों की माने तो विदर्भ में वायु प्रदूषण का स्तर भी अधिक है. प्रदूषण के साथ ही धूम्रपान की आदत की वजह से दमा, फेफड़ों का कैंसर और टीबी के अधिक मरीज मिलते हैं. मरीजों को आधुनिक उपचार के उद्देश्य से मेडिकल में रिसर्च सेंटर बनाने की दिशा में प्रयास शुरू किये गये थे. इसके लिए मेडिकल प्रशासन ने एक प्रस्ताव तैयार किया. १९५ बेड वाला यह देश का पहला केंद्र बनने वाला था.

    २०१६ में श्वसन रोग विभाग ने प्रस्ताव वैद्यकीय शिक्षा व अनुसंधान विभाग को भेजा. उस वक्त प्रस्ताव की कुल लागत करीब 600 करोड़ थी. इसके बाद २०१९ में दूसरा प्रस्ताव भेजा गया. प्रकल्प के लिए टीबी वार्ड परिसर में २५ एकड़ जगह प्रस्तावित की गई. संस्था में 23 विभाग सहित उनके उप विभागों की भी रचना की गई. संस्था के लिए १७ प्राध्यापक, 3४ सहायक  प्राध्यापक, 3१ वरिष्ठ निवासी डॉक्टर, ६७ कनिष्ठ निवासी डॉक्टरों के पद भरने का उल्लेख प्रस्ताव में किया गया लेकिन प्रस्ताव पर सरकार ने गंभीरता नहीं दिखाई और मामला ठंडे बस्ते में चला गया.

    प्रदूषण से बढ़ रही बीमारी 

    विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की रिपोर्ट के अनुसार भारत में एक लाख लोगों में १२७ लोगों की मौत फेफड़े से संबंधित बीमारी से होती है. अन्य राज्यों की तुलना में महाराष्ट्र में यह प्रमाण अधिक है. सिटी में विशेषज्ञ डॉक्टर होने से यहां छत्तीसगढ़, तेलंगाना, मध्य प्रदेश से भी फेफड़े की बीमारी से संबंधित मरीज इलाज के लिए आते हैं. मेडिकल में हर वर्ष फेफड़े के कैंसर वाले 70 से अधिक मरीजों का नाम दर्ज है. यदि सिटी में संस्था साकार होती है तो इससे मध्य भारत के मरीजों को लाभ मिल सकेगा.

    संस्था में प्रस्तावित व्यवस्था

    – श्वसन विभाग – ६० बेड

    – क्षय रोग विभाग – ६० बेड

    -ऑब्सट्रक्टिव एयरवेज डिजीज- १० बेड

    -इंटरस्टीशियल लंग डिजीज-५ बेड 

    -इंटरवेंशनल पल्मोनरीलॉजी -५ बेड 

    -इंटरमीडिएट रेस्पीरेटरी केयर यूनिट -१० बेड

    -चेस्ट शल्यक्रिया विभाग -१० बेड 

    -पेडियाट्रिक पल्मोनोलॉजी-१० बेड