मेडिकल : ऑनलाइन सिस्टम बंद होने से बढ़ी मरीजों की दिक्कतें, एक्स-रे अब भी मोबाइल पर

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नागपुर. शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में करीब वर्षभर पहले ऑनलाइन सिस्टम बंद किया गया. कुछ महीनों बाद सिर्फ रजिस्ट्रेशन और बिलिंग की व्यवस्था को ऑनलाइन बनाया गया लेकिन मरीजों की हिस्ट्री, विविध तरह की जांच अब भी ऑनलाइन नहीं हो सकी है. यही वजह है कि एक्स-रे निकालने के बाद मरीज व उनके परिजनों को अपने मोबाइल पर कम्प्यूटर का स्क्रीनशॉट लेना पड़ता है. जिन मरीजों के पास स्मार्ट फोन नहीं होता, उन्हें मदद के लिए भटकना पड़ता है.

मेडिकल में एक्स-रे विभाग चौबीस घंटे कार्यरत रहता है. मरीजों की संख्या अधिक और एक्स-रे मशीन कम होने से मरीजों को लंबा इंतजार करना पड़ता है. विभाग में 2 एक्स-रे मशीनें हैं. वहीं इन्हें चलाने वाले 4 टेक्नीशियन कार्यरत हैं. चारों शिफ्ट वाइज कार्य करते हैं लेकिन अधिकांश समय केवल एक ही मशीन पर एक्स-रे किया जाता है.

ऑनलाइन सिस्टम के वक्त एक्स-रे की रिपोर्ट सीधे डॉक्टरों के कम्प्यूटर पर उपलब्ध हो जाती थी. इस वजह से फिल्म देने की जरूरत नहीं पड़ती थी लेकिन सिस्टम बंद होने के बाद वैद्यकीय शिक्षा व अनुसंधान विभाग ने फिल्म की आपूर्ति ही नहीं की. कुछ इमरजेंसी मरीजों जैसे एमएलसी मामले में ही एक्स-रे फिल्म दी जाती है.

ओपीडी या फिर वार्ड में भर्ती मरीज का एक्स-रे निकालने के बाद परिजनों को कम्प्यूटर स्क्रीनशॉट लेने को कहा जाता है. ऐसे कई मरीज होते हैं जिनके पास स्मार्ट फोन नहीं होता. इस हालत में उन्हें भटकना पड़ता है. मोबाइल पर एक्स-रे की फिल्म खींचने पर कई बार स्पष्टता भी नहीं होती. इस स्थिति डॉक्टर जैसे-तैसे समझ लेते हैं. हालांकि उपचार करने वाले डॉक्टरों को भी परेशानी हो रही है लेकिन सरकार द्वारा पर्यायी व्यवस्था नहीं किये जाने से खामोश है. 

ठेका कर्मियों को भी जेब गरम करने की लगी आदत 

मेडिकल सहित मेयो में वर्ग-4 के ठेका कर्मी नियुक्त किये गये हैं. इनका काम मरीजों को जांच के लिए संबंधित विभाग लेकर जाना और ओटी में मरीजों को लाना ले जाना होता है. देखने में आ रहा है कि कई बार कुछ ठेका कर्मी स्ट्रेचर पर मरीजों को लेकर जाने के लिए पैसे की मांग करते हैं. 100-200 रुपये तक मरीज से लेते हैं. परिजन मजबूरी में पैसे देने तैयार हो जाते हैं.

इसके बाद भी स्ट्रेचर खींचने में परिजनों को मदद करना ही पड़ता है. इस संबंध में वैद्यकीय अधीक्षक के पास कई बार शिकायत की गई लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हुई है. वार्ड में भर्ती मरीजों को अक्सर इस समस्या से गुजरना पड़ता है. दूसरे माले पर भर्ती मरीजों को ग्राउंड फ्लोर पर अक्सर परेशानी होती है. इस हालत में परिजनों के पास कोई विकल्प नहीं होता.