पांधन रास्तों के लिए कोई फंड नहीं, रोडमैप तैयार लेकिन इच्छाशक्ति नहीं

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    • 9466.55 किमी हैं जिले हैं
    • 2-2 करोड़ तात्कालीन पालकमंत्री ने दिये थे

    नागपुर. जिले में कृषि के लिए युवाओं को प्रेरित करने, किसानों को उपज आसानी से परिवहन करने व आवागमन के लिए खेतों में पांधन रोड बनाने के लिए राज्य सरकार द्वारा अलग से निधि देने का कोई प्रावधान ही नहीं है. सरकार वीआर यानी विलेज रोड के लिए जरूर निधि देती है लेकिन पांधन की ओर ध्यान ही नहीं दिया जा रहा है.

    जिले में सभी तहसीलों में पांधन रास्तों का सर्वे तात्कालीन जिप अध्यक्ष रमेश मानकर के कार्यकाल में उन्होंने सभी तहसीलदारों के माध्यम से करवाया था. उस दौरान कुल 9466.55 किमी सरकारी पांधन का प्रस्ताव तैयार कर उन्होंने सरकार से 704.37 करोड़ रुपये की निधि जिले के लिए चार चरणों में मांगी थी. उनके प्रस्ताव को कृषि विकास योजना में शामिल भी किया गया लेकिन वर्ष 2008 का यह प्रस्ताव के लिए अब तक सरकार द्वारा अलग से कोई निधि देने का प्रावधान राज्य या केन्द्र सरकार द्वारा नहीं किया गया.

    विधायकों को मिली थी निधि

    तात्कालीन पालकमंत्री चंद्रशेखर बावनकुले ने अपने कार्यकाल में जिले के ग्रामीण भागों के 6 विधायकों को उनके क्षेत्र में पांधन रास्तों के लिए 2-2 करोड़ रुपये की निधि दी थी. यह पालकमंत्री पांधन सड़क योजना के तहत दिया गया. लेकिन जिला परिषद के पदाधिकारियों या सदस्यों को उनके सर्कल में पांधन के लिए एक रुपया भी नहीं दिया गया. कुछ सदस्यों का कहना है कि विधायकों ने 20-25 लाख रुपये की लागत के पांधन अपने क्षेत्र में बना लिये.

    अगर 5-5 लाख रुपयों के पांधन लिये जाते तो अधिक किसानों को इसका लाभ मिलता. बताते चलें कि जब नितिन राठी उपाध्यक्ष थे तब उन्होंने पांधन के लिए सभी जिप सदस्यों की निधि से 2-2 लाख रुपये का प्रावधान करने का प्रस्ताव आमसभा में रखकर मंजूरी दी थी. उनके कार्यकाल में पांधन पर ध्यान दिया गया था. लेकिन उनके बाद अब बैठे सत्ताधारियों द्वारा इसे गंभीरता से नहीं लिया जा रहा है.

    17 सीडीपी फंड से किया काम

    तात्कालीन जिप उपाध्यक्ष शरद डोणेकर भी किसानों के खेतों में पांधन रोड के पक्षधर थे. उनका कहना था कि अगर पूर्व अध्यक्ष मानकर के प्रस्ताव पर सरकार निधि देती तो अब तक जिले के किसानों की मुख्य समस्या का समाधान हो चुका होता. पांधन के लिए अलग से कोई निधि की व्यवस्था नहीं होने के चलते वे 17 सीडीपी निधि से पांधन के कार्य जनसहभागिता से करवाने का प्रयास कर रहे थे.

    उक्त हेड से 10 लाख रुपये मिलते हैं जिससे 2-2 लाख रुपये के 5 छोटे पांधन के ही कार्य हो पाते थे. वैसे जिले में वे किसानों से चर्चा कर निजी रूप से उनके खेतों में पांधन निर्माण के लिए तैयार करने का काम भी कर रहे थे. उनके बाद तो उनके बाद तो विभाग संभालने वाले उपाध्यक्ष मनोहर कुंभारे की सीट ही ओबीसी आरक्षण रद्द होने के चलते चली गई. वे भी पांधन की ओर विशेष ध्यान देने की बात कहते थे. 

    वीआर में शामिल हो पांधन

    कुछ सदस्यों ने मांग की है कि जिले के 9466 किमी पांधन के लिए अगर सरकार अलग से निधि का प्रावधान नहीं कर सकती तो उसे वीआर यानी ग्रामीण रास्तों में शामिल करे ताकि वीआर हेड के लिए मिलने वाली निधि से पांधन का निर्माण किया जा सके. इस आशय का पत्र पूर्व के पदाधिकारियों ने मंत्रलाय को भी भेजा था. जिले की सड़कों के लिए जो 20-20 वर्षों का प्लान बनता है उसकी अवधि इस वर्ष समाप्त हो रही है. सरकार आगामी 20 वर्षीय योजना में पांधन को वीआर रास्तों में डाले यह मांग अब कुछ सदस्यों द्वारा की गई है.

    कुल 4430 किमी है पांधन

    तहसील निहाय सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की गई थी उसमें जिले की 4430 पांधन रास्तों का समावेश था. जिनकी कुल लंबाई 9466 किमी है. इसमें नागपुर ग्रामीण में 1270 किमी, हिंगना 449 किमी, कुही 864 किमी, मौदा 918 किमी, पारशिवनी 416 किमी, नरखेड 918 किमी, रामटेक 146 किमी, उमरेड 955 किमी, काटोल 883 किमी, भिवापुर 767 किमी, कामठी 441 किमी, सावनेर 781 किमी, कलमेश्वर तहसील में 659 किमी पांधन का समावेश है.

    प्रस्ताव को तब राज्य सरकार के कृषि विभाग ने अपनी योजना में शामिल किया. विभाग ने सभी जिलों को इसी तरह का रोडमैप तैयार करने का निर्देश भी दिया था. पांधन के प्रस्ताव को वर्ष 2008-09 के सी-डैप के प्रस्ताव में शामिल किया गया था लेकिन अब तक इसके लिए सरकार ने अलग से निधि देने का कोई प्रावधान नहीं किया है.