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    • 2,161 हैं कुल आंगनवाड़ियां
    • 371 के पास खुद की इमारत नहीं
    • 325 में शौचालय नहीं

    नागपुर. शहरी बच्चों की उम्र 2 वर्ष हुई नहीं कि पैरेन्ट्स उन्हें प्री-नर्सरी शालाओं में भेज देते हैं जहां वे तुतलाती भाषा में खेल-खेल में एबीसीडी व गिनती सीखने लगते हैं. यह उनके केजी क्लास की पूर्व तैयारी होती है. ग्रामीण इलाकों के बच्चे ऐसी सुविधा से वंचित रहते हैं इसलिए कुछ वर्ष पूर्व जिला परिषद की प्री-नर्सरी यानी आंगनवाड़ियों में 3 से 6 वर्ष आयुवर्ग के बच्चों को केजी एजुकेशन देने के साथ ही उनके स्वास्थ्य जांच आदि कर पोषण आहार देने का निर्णय लिया गया था. अब वर्तमान सभापति उज्वला बोढारे इन आंगनवाड़ियों को और अपडेट कर उन्हें डिजिटल बनाने पर जोर दे रही हैं.

    उन्होंने बताया कि खनिज निधि से उन्होंने आंगनवाड़ियों को डिजिटल बनाने के लिए निधि की मांग का प्रस्ताव भेजा. फिलहाल तो करीब डेढ़ वर्ष से अधिक समय कोरोना संकट में चला गया और आंगनवाड़ियां बंद रही हैं. बच्चों के घरों तक पोषक आहार पहुंचाने का कार्य विभाग द्वारा किया गया. उन्होंने कहा कि आंगनवाड़ियां जब भी खुलेंगे तो बच्चों अधिक गुणवत्तापूर्ण माहौल मिले यह उनका उद्देश्य है. जिले में कुल 2,161 आंगनवाड़ी हैं जिसमें करीब 50 हजार के लगभग बच्चे आते रहे हैं.

    उधार की इमारतें

    जिले में अभी भी 371 आंगनवाड़ियों के पास खुद की इमारतें नहीं हैं जिसके चलते व उधार की इमारतों में संचालित की जा रही हैं. 5 वर्ष पूर्व तक केवल 1,220 के पास स्वतंत्र इमारतें थीं और तब दावा किया गया था कि 2018 तक सभी की खुद की इमारतें होंगी लेकिन आज भी 1,790 ही खुद की इमारतें हैं. हालांकि कहा जा रहा है कि कई इमारतों का निर्माण कार्य जारी था लेकिन कोरोना काल में निधि के अभाव में सारे कार्य अटक गए. बोढारे ने बताया कि उन्होंने डीपीसी फंड से इमारत निर्माण के लिए निधि का मांग का प्रस्ताव भेजा था. उन्हें पूरी उम्मीद है कि अब सरकार से वह निधि मिलेगी. पूर्व में इमारत निर्माण के लिए सरकार से केवल 4.5 लाख रुपये मिलते थे जो कम होने के चलते ठेकेदारों द्वारा टेंडर ही नहीं भरा जाता था जिसके चलते इस निधि को बढ़ाया गया था. उसके बाद 4-5 वर्षों में 570 इमारतों का निर्माण भी पूरा हुआ है. अभी भी लेकिन 371 आंगनवाड़ियां खुद की स्वतंत्र इमारत का इंतजार कर रही हैं. 

    नावीन्यपूर्ण निधि से यूनिफॉर्म 

    तत्कालीन जिप पदाधिकारियों ने बच्चों को किसी कॉन्वेन्ट स्कूल के बच्चों की तरह स्तरीय बनाने के लिए विभाग की ग्राम पंचायत की 10 फीसदी निधि से नावीन्यपूर्ण योजना के तहत बच्चों को यूनिफॉर्म  देना शुरू किया था. जिसमें ग्रीन पैण्ट, व्हाइट शर्ट, रेड टाई और जूते-मोजे शामिल थे. उमरेड तहसील में यूनिफॉर्म  दिया भी गया था लेकिन फिर वह योजना निधि के अभाव में बंद करनी पड़ी. दरअसल, आंगनवाड़ी बच्चों के लिए गणवेश हेतु सरकार की ओर से कोई निधि का प्रावधान ही नहीं है. अगर स्कूली बच्चों की तरह ही इन बच्चों को भी गणवेश दिया जाए तो आंगनवाड़ियों में बच्चों की संख्या बढ़ सकती है. 

    इमारत निर्माण में कई अड़चनें

    विभाग के अधिकारी ने बताया कि जिले में कुछ आंगनवाड़ियों का निर्माण की कारणों से अटका हुआ है. कुछ गांवों में जमीनें उपलब्ध नहीं हुई तो कुछ गांव पुनर्वसन की प्रक्रिया में भी हैं. फिलहाल की स्थिति में 157 किराये की इमारत में चल रहे हैं. निजी इमारतों में 21 और दूसरी शालाओं में 87 आंगनवाड़ियों को संचालित किया जा रहा है. समाज मंदिरों में 51 और ग्राम पंचायत की भवनों में 23 व अन्य इमारतों में 32 आंगनवाड़ियां संचालित हो रही हैं. 325 में तो बच्चों के लिए शौचालय तक नहीं हैं. 

    262 मिनी आंगनवाड़ी

    जिले में 262 मिनी आंगनवाड़ी हैं जिसमें केवल 39 के पास खुद की इमारत हैं. 223 दूसरे भवनों में संचालित की जा रही हैं. इसमें 49 किराये के कमरों में, 119 दूसरी शालाओं में, 33 समाज मंदिरों में, 4 ग्राम पंचायत भवनों, 4 अन्य इमारतों में संचालित हो रही है. 166 में तो शौचालय भी नहीं है. सभापति बोढारे ने मिनी आंगनवाड़ियों को आंगनवाड़ियों में बदलने का प्रस्ताव प्रशासन को भेजा है.