eople are facing problems due to closure of railway facility, demand to start Godavari and Kamayani

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    नागपुर. करीब 2 वर्ष पहले मध्य रेल नागपुर मंडल से रेलवे यूनियनों में रिटायर्ड कर्मचारियों या अधिकारियों द्वारा प्रमुख पदों को लेकर एक छोटी से लड़ाई का बिगुल बजा था. हालांकि जल्द इसे दबा दिया गया लेकिन एक बार फिर ऐसी ही चिंगारी भड़की है. इसमें पश्चिम मध्य रेलवे (डब्ल्यूसीआर), जबलपुर जोन में रेलवे मजदूर संघ के अध्यक्ष आरपी भटनागर को जोनल कमेटी की उच्च स्तरीय बैठक में प्रस्ताव पारित करके 112 में से 80 वोट देकर पद से हटा दिया गया.

    हालांकि पलटवार में भटनागर ने महासचिव अशोक वर्मा को हटा दिया. इसके बाद से पूरे भारतीय रेलवे यूनियनों में रिटायर्ड कर्मचारियों की मनमानी को लेकर चचाओं का दौर शुरू हो गया क्योंकि भटनागर नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन रेलवेमेन्स के कार्यकारी अध्यक्ष भी है. इसकी वजह रिटायर होने के बाद भी यूनियन पर भटनागर का कब्जा और बढ़ता परिवारवाद बताया जा रहा है. 

    दादा के बाद बेटा, अब पोते की भी एंट्री

    भटनागर पर भी पहले भी परिवार के आरोप लगते रहे हैं. एनएएफआईआर के कार्यकारी अध्यक्ष पर आरोप है कि उन्होंने डब्ल्यूसीआर मजूदर संघ को अपने परिवार की संपत्ति बना दिया है. भटनागर स्वयं रेलवे से काफी वर्ष पहले रिटायर हो चुके हैं. बावजूद इसके वह अपनी ताकत के दम पर यूनियन के अध्यक्ष बने हुए हैं.

    इसके बाद उन्होंने डब्ल्यूसीआर मजदूर संघ के कार्यकारी अध्यक्ष पद अपने बेटे अमित को बैठा दिया. यूनियन के सदस्य रेलकर्मियों की नाराजगी उस समय सीमा पार कर गई जब मजदूर संघ में भटनागर ने अपने पोते की भी एंट्री करा दी. उसे मजदूर संघ का प्रेस प्रभारी बना दिया. खास बात है कि भटनागर अब रेलवे से रिटायर है और उनका बेटा व पोता, दोनों रेलवे में नौकरी नहीं करते. 

    लगे हैं गंभीर आरोप

    • यूनियन में भटनागर ने बेटे अमित को कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया, जबकि बेटे ने कभी रेलवे में नौकरी ही नहीं की.  
    • इससे संघ में वर्षों से काम करने वाले प्रतिनिधियों का हक मारा जा रहा है.
    • वे ट्रेनों में यात्रा करने की बजाए हवाई यात्रा करते हैं इसमें यूनियन को अधिक खर्च आता है.
    • प्रभाव दिखाकर मनमर्जी से अपने गुट के रेलकर्मियों को प्रतिनियुक्ति दिलवाई जाती है. चुन-चुनकर तबादले कराए जाते हैं.

    रेलवे बोर्ड की चुप्पी, समझ से परे

    ऐसा नहीं है कि रेल यूनियनों पर रिटायर्ड कर्मचारियों के कब्जे से रेलवे बोर्ड अंजान है. 31 मई 2013 को बोर्ड ने अपने पत्र क्रमांक 2012/ई (एलआर)3-एलआर-मिस्क/6-(एसबी) में साफ तौर पर लिखा था कि कोई भी व्यक्ति जो कर्मचारी नहीं है या सम्मानपूर्वक सेवानिवृत्त रेलवे कर्मचारी नहीं है, वह महासंघ में कोई पद धारण नहीं करेगा. रे

    लवे से मिलने वाली सुविधाएं सिर्फ महासंघ के पदाधिकारियों को दी जाएंगी. इसी आशय को लेकर मध्य रेल नागपुर मंडल में सेंट्रल रेलवे मजदूर संघ के तात्कालिक मंडल अध्यक्ष विनोद चतुर्वेदी ने रेलवे बोर्ड सचिव को पत्र लिखकर अमित भटनागर को अवैध रूप से एनएफआईआर व रेलवे मजदूर संघ में पद देने और रेलवे की सरकारी सुविधायें देने का विरोध किया था लेकिन बोर्ड इस बारे में एक शब्द भी नहीं कहा.

    NRMU में भी यही हाल

    ऐसा नहीं है कि रिटायर्ड रेलकर्मियों की मनमर्जी केवल रेलवे मजदूर संघ में ही चलती रही है. मध्य रेल नागपुर मंडल के नेशनल रेलवे मजदूर यूनियन समेत अन्य रेल मंडलों में भी ऐसा ही नजारा दिखता है. हालांकि नागपुर मंडल के तहत सीआरएमएस के पदाधिकारियों ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि हमें भटनागर की उपस्थिति से कोई दिक्कत नहीं.

    नागपुर मंडल में जिन्हें दिक्कत थी, वे पहले ही यूनियन बदल चुके हैं. वहीं सीआरएमएस के विरोध एनआरएमयू के पदाधिकारियों ने कहा कि दादा ने पहले बेटे और अब पोते को भी रेलवे यूनियन में सेट कर दिया. हंगामा तो मचना ही था. रेल यूनियन रेलकर्मियों की है किसी जागिर नहीं.