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    नागपुर. सरकार किसी भी राजनीतिक पार्टी हो, विदर्भ के मेडिकल कॉलेजों के साथ न्याय नहीं होता. भले ही मेयो और मेडिकल में विदर्भभर से मरीज इलाज के लिए आते हैं लेकिन साधन-सुविधाओं के मामले में पीछे ही रखा जाता है. भाजपा सरकार के कार्यकाल में रोबोटिक सर्जरी यूनिट शुरू करने की घोषणा की गई थी. फरवरी २०१९ तक प्रकल्प पूरा होना था लेकिन ‘हाफकिन’ द्वारा खरीदी प्रक्रिया पूरी नहीं किए जाने से अब तक प्रकल्प ठंडे बस्ते में पड़ा है. प्रकल्प की देरी की वजह से अनुमानित लागत भी बढ़ती जा रही है. 

    शासकीय वैद्यकीय महाविद्यालय व अस्पताल में रोबोटिक शल्यक्रिया विभाग तैयार करने की घोषणा भाजपा सरकार ने की थी. बाद में इसे मान्यता मिलने के बाद निधि भी उपलब्ध कराई गई. इसी सरकार के दौरान बायो-फार्मास्युटिकल्स कॉर्पोरेशन लिमिटेड के माध्यम से ही सर्जिकल सामग्री और दवाइयों की खरीदी का नियम बनाया गया. इस वजह से प्रशासकीय मान्यता मिलने के बाद १६.८० करोड़ रुपये हाफकिन की तिजोरी में मेडिकल ने जमा किए. लेकिन प्रकल्प पर काम शुरू नहीं हो सका. इस वजह से इसकी लागत 3.20 करोड़ बढ़ गई. यह निधि भी मेडिकल को दी गई. फिर से इस निधि को हाफकिन को ट्रांसफर किया गया. जिला नियोजन समिति ने मेडिकल के रोबोटिक शल्यक्रिया विभाग के लिए २५ करोड़ देने का निर्णय लिया था. प्रकल्प में देरी की वजह से बाद में मामला हाई कोर्ट भी पहुंचा. न्यायालय ने प्रकल्प जल्द पूरा करने के निर्देश भी दिए थे.

    अत्याधुनिक उपचार पद्धति

    रोबोटिक सर्जरी अत्याधुनिक प्रणाली है. अमेरिका सहित कुछ विकसित देशों में इस तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है. इसके परिणाम भी बेहतर हैं. इसमें मरीज के शरीर ज्यादा चीरफाड़ की आवश्यकता नहीं है. यांत्रिक रोबोट शरीर में 3६० अंश तक घूम सकता है. इससे ऑपरेशन सफल होने की दर अधिक रहती है. यांत्रिकी पद्धति से मरीज को टांके भी लगाए जाते हैं. रक्त अधिक नहीं निकलता. साथ ही वेदना भी ज्यादा सहन नहीं करनी पड़ती. मरीज सर्जरी के बाद मैन्युवल सर्जरी से जल्दी ठीक हो सकता है.

    रोबोटिक यूनिट मेडिकल में जल्द ही शुरू होगा. प्रकल्प के लिए वैद्यकीय शिक्षा विभाग के अधिकारियों से फॉलोअप किया जा रहा है. प्रकल्प के लिए अतिरिक्त निधि भी खनिकर्म महामंडल की ओर से मिली है. इसे हाफकिन को ट्रांसफर किया गया है.

    – डॉ. राज गजभिये, अधिष्ठाता, मेडिकल