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    • अलग अथॉरिटी बनाकर ही होगा विकास
    • त्रस्त हो चुके हैं स्थानीय उद्यमी भी

    नागपुर. महाराष्ट्र एयरपोर्ट डेवलपमेंट कंपनी (एमएडीसी) अब अपने नाम के अनुसार एयरपोर्ट के विकास पर फोकस कर रही है. राज्य के अलग-अलग हिस्सों में एयरपोर्ट विकास की जिम्मेदारी इसी के पास है, इसलिए एमएडीसी का फोकस मिहान से हट चुका है. मिहान को अगर ‘बूटीबोरी’ होने से बचाना है और औद्योगिकीकरण को गति प्रदान करना है तो इसके लिए अलग से अथॉरिटी बनाना अहम हो गया है. अलग अथॉरिटी के अधिकारी सिर्फ मिहान पर ही फोकस कर सकेंगे और उसके साथ न्याय करेंगे. अन्यथा इसे विकसित होने में और 20 वर्ष का समय लग जाएगा. 

    एमएडीसी के चेयरमैन खुद मुख्यमंत्री हैं. सीएम के पास इतना समय नहीं होता कि मिहान के रोजमर्रा कार्यों की निगरानी या जानकारी रख सकें. इसके बाद दूसरा बड़ा पद है उपाध्यक्ष तथा प्रबंध निदेशक (वीसीएमडी) का. यह पद भी आरंभ से ही मुंबई में है. वीसीएमडी महीना-15 दिनों में एक चक्कर मुंबई से नागपुर का लगा लेते हैं. फिर वही इंतजार की घड़ियां शुरू हो जाती हैं. नागपुर कार्यालय में आरंभ से ही दम नहीं रहा है.

    मुख्य अभियंता या कार्यकारी अभियंता प्रमुख बने रहे हैं जिनके पास कोई पावर ही नहीं है. मार्केटिंग या विकास की सोच का सदा से अभाव रहा है. अगर महत्वाकांक्षी और अहम प्रोजेक्ट का प्रमुख मुख्य या कार्यकारी अभियंता होगा तो विकास के बारे में सहज कल्पना की जा सकती है.

    नागपुर कार्यालय के लिए अलग से मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) या कार्यकारी प्रबंध निदेशक का पद सृजित होता तो मिहान की स्थिति आज ऐेसी नहीं होती. एक बड़ा पद वाला अधिकारी निश्चित रूप से मिहान के साथ न्याय करता. लेकिन अफसोस कि मिहान के बारे में सोचने के लिए किसी के पास वक्त नहीं है और बड़े अधिकारी अपनी रोटी सेंकने में लगे हुए हैं. 

    अब बिजली का झटका देने की तैयारी

    एमएडीसी ने मिहान सेज में 2.97 रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली देने की हामी भरी थी. कुछ समय तक दी भी गई. बाद में इसे 4.39 रुपये प्रति यूनिट कर दिया गया. यह दर भी उद्यमियों ने वहन कर ली. लेकिन अब एमएडीसी ने बिजली की दर 6.50 रुपये प्रति यूनिट करने का प्रस्ताव दिया है. अगर ऐेसा होता है तो मिहान सेज की कंपनियों की कमर टूट जाएगी. इसका हर स्तर पर विरोध हो रहा है. एमएडीसी की नाकामियों के कारण ही यह स्थिति उत्पन्न हुई है.

    बिजली संयंत्र बंद

    मिहान सेज में बिजली आपूर्ति करने के लिए 650 मेगावॉट क्षमता का बिजली संयंत्र लगाया गया था. कुछ दिनों तक इससे बिजली आपूर्ति की गई लेकिन वर्षों से यह प्लांट बंद है क्योंकि बिजली कंपनी अतिरिक्त बिजली मिहान सेज से बाहर बेचने की अनुमति मांग रही थी जो एमएडीसी नहीं दे पाई. परिणाम यह हुआ है कि करोड़ों का प्रोजेक्ट कबाड़ बन गया और उद्योगों का सिरदर्द बढ़ गया. अगर प्लांट चलता तो मिहान सेज के उद्योगों के समक्ष यह स्थिति उत्पन्न नहीं होती. एमएडीसी के अधिकारियों ने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया. 

    एयरपोर्ट का भी देख रहे हश्र (फोटो)

    मिहान ही नहीं, नागपुर एयरपोर्ट का हश्र भी हम पिछले कई वर्षों से देख रहे हैं. निजीकरण की पहल को 10 वर्ष हो गए हैं लेकिन अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है. अलग-अलग अधिकारी आते हैं और चले जाते हैं. सभी अपनी-अपनी हांकते हैं. कोई भी नागपुर में उचित समय नहीं देता. परिणाम सबके सामने हैं. स्थानीय उद्योजकों से मिलने तक का समय अधिकारियों के पास नहीं रहता. ऐेसे में सुझाव देना भी मुश्किल हो जाता है. -सुरेश राठी, VIA अध्यक्ष,

    नागपुर में रहे बॉस 

    जब तक मिहान का बॉस नागपुर में नहीं बैठेगा, विकास की कल्पना करना बेकार है. मुंबई से अतिथि के रूप में अधिकारी आते रहेंगे और जाते रहेंगे. इस प्रोजेक्ट से उन्हें लगाव नहीं हो सकता. हमें भी बार-बार मुंबई का चक्कर का काटना ठीक नहीं लगता. न तो मिहान का प्रमोशन होता है न ही लोग इसके लिए प्रयास कर रहे हैं. समय हद से ज्यादा निकल चुका है, बावजूद इसके किसी को कोई अफसोस नहीं है. इसलिए हमारी मांग है कि एमएडीसी का बॉस उद्योग मंत्री को बनाया जाए और एक उच्च अधिकारी स्थायी रूप से यहां बैठाया जाए.- शिव राव, वेद अध्यक्ष

    स्थानीय लोगों के साथ अन्याय

    सिटी के बीचोंबीच वर्षों से खाली जमीन पड़ी हुई है. बड़ी कंपनियां हड़प कर बैठी हैं. यही जमीन जरूरतमंद स्थानीय लोगों को दी जाती तो कई कंपनियां आज संचालित हो रही होतीं लेकिन मिहान के उद्देश्य पर पानी फेर दिया गया है. एमएडीसी के अधिकारियों की उदासीनता इसके लिए जवाबदार है. एक माह में हमें 5 मिनट का समय मिलता है. फिर हमें अधिकारियों से मिलने के लिए एक माह इंतजार करना पड़ता है. तब तक समस्याएं जस की तस पड़ी रहती हैं. – प्रदीप खंडेलवाल, BMA अध्यक्ष

    कई कंपनियां बंदी की कगार पर

    सुविधाओं के अभाव में कई कंपनियां बंदी की कगार पर पहुंच रही हैं. न तो बुनियादी सुविधाएं हैं और न ही समस्या का निदान करने वाला कोई अधिकारी. न्याय दिलाने के नाम पर लीपापोती चल रहा है. मेरे सहित कई छोटे उद्यमी इकाई बंद करने पर विचार करने लगे हैं. यह नौबत  आए, इससे पहले हमारी सुनवाई होनी चाहिए.- मनोहर भोजवानी, अध्यक्ष, मिहान इंडस्ट्रीज एसो.